ग्लाइकोल

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लेख सूचना
ग्लाइकोल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 86
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक शिव योगी वर्मा

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ग्लाइकोल (Glycol) द्वि-हाइड्राक्सि ऐलकोहलों को ग्लाइकोल के नाम से संबोधित किया जाता है। इनकी उत्पत्ति किसी हाइड्रोकार्बन के दो हाइड्रोजन परमाणुओं को दो हाइड्राक्सिल समूहों से प्रतिस्थापित करके हो सकती है, पर दोनों हाइड्राक्सिल समूह भिन्न भिन्न कार्बनों से संयुक्त होने चाहिए। हाइड्राक्सिल समूहों के पारस्परिक स्थानों के विचार से इन्हें ऐल्फा-, बीटा-, गामा-, अथवा डेल्टा-ग्लाइकोलों में श्रेणीबद्ध किया जाता है।

इस वर्ग का सबसे सरल यौगिक एथिलीन ग्लाइकोल है, जिसे केवल ग्लाइकोल भी कहते हैं। इसका रासायनिक सूत्र, हाऔ. का हा२° का हा२° औहा। (HO-CH2-CH2-OH) है। यह सुंगधित तैलीय द्रव है, जिसका क्वथनांक १९७.५° सें. तथा गलनांक- १७.४° सें. है। आपेक्षित धनत्व ०° सें. पर १.१२५ है। यह ग्लिसरीन की भाँति मीठा तथा पानी और ऐलकोहल के साथ मिश्र्य है। औद्योगिक विधि में इसे एथिलीन गैस से, जो पेट्रोलियम भंजन का एक उपजात है, प्राप्त करते है। हाइपोक्लोरस अम्ल की अभिक्रिया से यह एथिलीन क्लोरोहाइड्रिन में बदलता है, जिसे दूधिया चूने के साथ गरम करके एथिलीन ग्लाइकोल प्राप्त करते हैं। इसके गुणधर्म प्राथमिक ऐलकाहलों से मिलते है। हाइड्राक्सिल समूह को हैलोजेन से, अथवा हाइड्राक्सिल के हाइड्रोजन को ऐल्किल समूहों, अथवा क्षार धातुओं से, प्रतिस्थापित किया जा सकता है। आक्सीकरण पर पहले यह ग्लाइकोलिक अम्ल तथा पश्चात्‌ आक्सैलिक अम्ल देता है। नाइट्रिक और सल्फ्यूरिक अम्लों की अभिक्रिया से एथिलीन डाइनाइट्रेट, एक तैलीय विस्फोटक द्रव[१] प्राप्त होता है, जिसे नाइट्रोग्लिसरीन की भाँति विस्फोटक के रूप में प्रयुक्त करते हैं। एथिलीन ग्लाइकोल को पानी में मिलाने पर पानी का हिमांक गिर जाता है। इसलिये उद्योगों में इसका विस्तृत उपयोग हिमीकरण निवारण के लिये होता है।

इनके उच्च सजातीय, ऐल्फा प्रोपिलीन ग्लाइकोल, का हा३. का हा. औहा. का. हा.२ औ हा (CH3. CH. OH. CH2 OH) तथा २,३ ब्यूटिलोन ग्लाइकोल, काहा३. काहा. (औहा) काहा३ (CH3. CH (OH). CH (OH)CH3) भी चाशनी सदृश द्रव हैं और इनकी प्राप्ति प्रोपिलीन तथा ब्यूटिलीन से होती है। कुछ संकीर्ण ग्लाइकोल भी कीटोनों के वैद्युद्विश्लेषि अपकरण पर प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार ऐसीटोन से एक ग्लाइकोल, जिसे पिनैकोल[२] कहते हैं, प्राप्त होता है। इसका गलनांक ३८° सें. है और ये सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ आसवन करने पर एक कीटोन, पिनैकोलीन देता है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. क्वथनांक ११४-११६° सें.
  2. टेट्रा मेथाइल एथिलीन ग्लाइकोल