घन आनंद

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लेख सूचना
घन आनंद
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 107
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक विश्वनाथ प्रसाद मिश्र

घन आनंद ये 'आनंदघन' नाम स भी प्रसिद्ध हैं। अनुमान से इनका जन्मकाल सं. 1730 के आसपास है। इनके जन्मस्थान और जनक के नाम अज्ञात हैं। आरंभिक जीवन दिल्ली तथा उत्तर वृंदावन में बीता। जाति के कायस्थ थे। साहित्य और संगीत दोनों में इनकी असाधारण गति थी। कहा जाता है कि ये शाहंशाह मुहम्मदशाह रँगीले के दरबार में मीरमुंशी थे और सुजान नामक नर्तकी पर आसक्त थे। एक दिन दरबारियों ने बादशाह से कह दिया कि मुंशी जी गाते बहुत अच्छा हैं। उसने इनका गाना सनने की हठ पकड़ ली। पर ये गाना सुनाने में अपनी अशक्ति का ही निवेदन करते रहे। अंत में बादशाह से कहा गया था कि यदि सुजान बुलाई जाय ये गाना सुनाएँगे। वह बुलाई गई और इन्होंने उसकी ओर उन्मुख होकर सचमुच गाया और ऐसा गाया कि सारा दरबार मंत्रमुग्ध हो गया। बादशाह ने आज्ञा की अवहेलना के अपराध में इन्हें दिल्ली से निष्कासित कर दिया। सुजान ने इनका साथ नहीं दिया। वहाँ से वे वृंदावन चले गए और निंबार्क संप्रदायाचार्य श्रीवृंदावनदेव से दीक्षा ग्रहण की। इनका सखीभावसूचक नाम 'बहुगुनी' था। मथुरा पर अहमदशाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के समय, सं. 1813 में, ये मार डाले गए।

ये प्रेमसाधना का अत्यधिक पथ पार कर बड़े बड़े साधकों की कोटि में पहुँच गए थे। यमुना के कछारों और ब्रज की वीथियों में भ्रमण करते समय ये कभी आनंदातिरेक में हँसने लगते और कभी भावावेश में अश्रु की धारा इनके नेत्रों से प्रवाहित होने लगती। नागरीदास जैसे श्रेष्ठ महात्मा इनका बड़ा संमान करते थे।

हिंदी में इनकी निम्नलिखित 41 कृतियाँ ज्ञात हैं- सुजानहित, कृपाकंदनिबंध, वियोगबेलि, इश्कलता, यमुनायश, प्रीतिपावस, प्रेमपत्रिका, प्रेमसरोवर, व्राजविलास, रसवसंत, अनुभवचंद्रिका, रंगबधाई, प्रेमपद्धति, वृषभानुपुर सुषमा, गोकुलगीत, नाममाधुरी, गिरिपूजन, विचारसार, दानघटा, भावनाप्रकाश, कृष्णकौमुदी, घामचमत्कार, प्रियाप्रसाद, वृंदावनमुद्रा, व्राजस्वरूप, गोकुलचरित्र, प्रेमपहेली, रसनायश, गोकुलविनोद, मुरलिकामोद, मनोरथमंजरी, व्राजव्यवहार, गिरिगाथा, व्राजवर्णन, छंदाष्टक, त्रिभंगी छंद, कबित्तसंग्रह, स्फुट पदावली और परमहंसवंशावली। इनका ' व्राजवर्णन' यदि ' व्राजस्वरूप' ही है तो इनकी सभी ज्ञात कृतियाँ उपलब्ध हो गई हैं। छंदाष्टक, त्रिभंगी छंद, कबित्तसंग्रह- स्फुट वस्तुत: कोई स्वतंत्र कृतियाँ नहीं हैं, फुटकल रचनाआं के छोटे छोटे संग्रह है। इनके समसामयिक व्राजनाथ ने इनके 500 कवित्त सवैयों का संग्रह किया था। इनके कबित्त का यह सबसे प्राचीन संग्रह है। इसके आरंभ में दो तथा अंत में छह कुल आठ छंद व्राजनाथ ने इनकी प्रशस्ति में स्वयं लिखे। पूरी 'दानघटा' 'घनआनंद कबित्त' में संख्या 402 से 414 तक संगृहीत है। परमहंसवंशावली में इन्होंने गुरुपरंपरा का उल्लेख किया है। इनकी लिखी एक फारसी मसनवी भी बतलाई जाती है पर वह अभी तक उपलब्ध नहीं है।

हिंदी के मध्यकालीन स्वच्छंद प्रवाह के प्रमुख कर्ताओं में सबसे अधिक साहित्यश्रुत घनआनंद ही प्रतीत होते है। इनकी रचना के दो प्रकार हैं : एक में प्रेमसंवेदना क अभिव्यक्ति है, और दूसरे में भक्तिसंवेदना की व्यक्ति। इनकी रचना अभिधा के वाच्य रूप में कम, लक्षणा के लक्ष्य और व्यंजना के व्यंग्य रूप में अधिक है। ये भाषाप्रवीण भी थे और व्राजभाषाप्रवीण भी। इन्होंने व्राजभाषा के प्रयोगों के आधार पर नूतन वाग्योग संघटित किया है।[१]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं. ग्रं. : घनानंद ग्रंथावली (विश्वनाथप्रसाद मिश्र) प्रसाद परिषद की ओर से वाणीवितान, ब्रह्मनाल, वाराणसी, संवत्‌ 2009 द्वारा प्रकाशित।