चंद
चंद
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 129 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | माता प्रसाद गुप्त |
चंद हिंदी के आदिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते रहे हैं, और उनकी एकमात्र रचना 'पृथ्वीराजरासो' ही उनकी इस कीर्ति का आधार रही है। चंद के संबंध में यह प्रसिद्ध रहा है कि दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट् पृथ्वीराज के राजकवि और बालसखा थे। पृथ्वीराजरासो के रचयिता के अतिरिक्त उक्त महाकाव्य के एक पात्र के रूप में भी वे अवतरित होते हैं और उसकी कथा में एक महत्वपूर्ण भाग लेते हैं। कन्नौजयुद्ध में पृथ्वीराज को कन्नौज वे अपने साथ थवाइत्त (ताँबूलपात्रवाहक) के रूप में लिवा जाते हैं। शहाबुद्दीन गोरी का अंत अंधे हुए पृथ्वीराज के द्वारा गजनी जाकर वही कराते हैं। इन प्रसंगों के अतिरिक्त भी, प्राय: सदैव, वे पृथ्वीराज के साथ दिखाई पड़ते हैं। इन्हीं कारणों से वे पृथ्वीराजरासो के आधार पर न केवल उसके रचयिता बल्कि पृथ्वीराज के मित्र तथा उनके आश्रित राजकवि माने जाते रहे हैं। प्रसिद्धि यहाँ तक रही है कि दोनों का जन्म एक ही दिन हुआ था और मृत्यु तो दोनों की एक ही दिन हुई ही थी।
इधर जब से पृथ्वीराजरासो की ऐतिहासिकता और उसकी प्रामाणिकता पर संदेह उठ खड़ा हुआ है, स्वभावत: चंद के इस व्यक्तित्व पर भी संदेह किया जाने लगा है। यह संदेह सर्वथा निराधार भी नहीं है। पृथ्वीराजरासो के अनेक रूप में रूपांतर मिलते हैं, किंतु उसका एक भी रूप ऐसा नहीं है और न पुनर्निर्मित हो सका है जिसमें अनैतिहासिक विवरण य उल्लेख न मिलते हों। इसलिये 'पृथ्वीराजरासो', जैसा हम अन्यत्र 'पृथ्वीराजरासो' शीर्षक में देखेंगे, पृथ्वीराज के आश्रित किसी कवि की रचना नहीं मानी जा सकती है और पृथ्वीराजरासो के रचिता के रूप में चंद कल्पित व्यक्ति रह जाते हैं। 'रासो' की कथा के पात्र के रूप में चंद का व्यक्तित्व कहाँ तक वास्तविक और कहाँ तक कल्पित है, यह जानने के लिये हमारे पास कोई साधन नहीं है।
कथा का चंद पृथ्वीराज का निर्भीक मित्र और परामर्शदाता है। वह पृथ्वीराज जैसे उग्र स्वभाव के शासक को जिस प्रकार भी संभव देखता है, उचित मार्ग पर ला देता है। नवोढ़ा संयोगिता के साथ विलासमग्न पृथ्वीराज को गोरी के कुचक्रों का स्मरण कराने के लिये वही लिख भेजता है : 'गोरी रत्तउ तुव धरा तुं गोरी अनुरक्त।' 'आँखें निकलवाकर जिसे बंदीगृह में डाल दिया गया है, जो अपना समस्त साहस खो चुका है, उसको लक्ष्यभेद के बहाने गोरी के वध के लिये तैयार वही करता है और उसके द्वारा गोरी का प्राणांत कराता है। ऐसे निर्भीक किंतु प्रबुद्ध सहचर या अनुचर दुर्लभ ही होते हैं। और इसमें संदेह नहीं कि 'रासो' का पृथ्वीराज जो कुछ भी है, अधिकांश में अपने इसी अभिन्न कविमित्र के कारण है। 'रासो' के ताने बान से इस चंद को किसी प्रकार भी अलग नहीं किया जा सकता।
यह चंद भट्ट है, रचना में अनेक बार उसे 'भट्ट' कहा गया है। कहीं कहीं उसे विरछिया भी कहा गया है। पृथ्वीराज के विरद या विरुद का गान करना संभवत: उसका सर्वप्रमुख कार्य था इसीलिये वह 'विरछिया' कहलाया है। उसे 'वरदाई' भी कुछ छंदों में कहा गया है। यह इसलिये कहा गया है कि उसे महादेव अथवा सरस्वती से सिद्धि का वर प्राप्त हुआ था। एक स्थान पर उसे 'चंडिय' भी कहा गया है, और इसी प्रकार एक स्थान पर उसे 'चंड' कहा गया है। उसके ये विशेषण रचना में चित्रित उसके उग्र स्वभाव के कारण उसके नाम के साथ जोड़े गए प्रतीत होते हैं, और उसके नाम के अभिन्न अंग कदाचित् नहीं हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ