चंपारन जिला

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लेख सूचना
चंपारन जिला
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 148
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक कृष्ण मोहन गुप्त

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चंपारन जिला भारत के बिहार राज्य के उत्तरी पश्चिमी कोने पर तिरहुत डिवीजन में है। इसका क्षेत्रफल 3,553 वर्ग मील और जनसंख्या 30,06,211 (1961) है। उत्तर में नेपाल, पश्चिम में गंडक नदी और पूर्व में बागमती नदी है। उत्तर और उत्तर-पश्चिम में हिमालय की सोमेश्वर और दून श्रेणियों को छोड़कर शेष भाग में नदियों की मिट्टी से निर्मित समतल मैदान हैं। सोमेश्वर किले की ऊँचाई समुद्रतल से 2,884 फुट है और इन पर्वतश्रेणियों के पूर्वी छोर पर भिकना थोरी दर्रा है, जिससे नेपाल में जा सकते हैं। ये दोनों पर्वतीय श्रेणियाँ लगभग 364 वर्ग मील स्थान घेरती हैं, जिनमें घने जंगल हैं। शेष भूमि में खेती होती है। इसमें प्रवाहित होनेवाली मुख्य नदियाँ, गंडक, बड़ी गंडक, घनौती, बागमती और लेलवागी हैं। जिले के केंद्रीय भाग में 139 वर्ग मील में फैली झीलों की एक श्रृंखला है। यहाँ धान, गेहूँ, जूट, जौ, मक्का, तेलहन और ईख की खेती की जाती है। जंगलों से लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं। धान कूटने, ईख पेरने और तेल पेरने के कारखाने हैं। सूती वस्त्र बुनने का गृहउद्योग भी उल्लेखनीय है। एक समय यह बिहार में नील उत्पादन का प्रमुख केंद्र था। सूखे से फसलों की रक्षा के लिये त्रिवेणी और धाका (Dhaka) नहरें बनाई गई हैं। त्रिवेणी नहर गंडक से निकलकर उत्तरी क्षेत्रों को और धाका नहर लाल बुकाया नदी से निकलकर पूर्वी भाग में लगभग 13,000 एकड़ भूमि सींचती है। नेपाल से अधिकांश व्यापार इसी जिले के द्वारा होता है।

जिले का प्रशासन केंद्र मोतीहारी नगर, जनसंख्या 32,620, (1961), है जो व्यापार और शिक्षा का भी केंद्र है। बेतिया, जनसंख्या 39,990, (1961) मोतिहारी का एक उपप्रभाग है। रक्सौल में चुंगी दफ्तर है, जहाँ से नेपाल की सीमा प्रांरभ हो जाती है। इसी जिले में प्रसिद्ध सैनिक केंद्र सुगौली है, जहाँ सन्‌ 1857 की जनक्रांति में भीषण हत्याकांड हुआ था। 1815 ई. में इसी स्थान पर नेपाल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। महान सम्राट् अशोक ने अपनी नेपाल की यात्राओं की स्मृति के लिये इसी जिले में नंदनगढ़, अराराज और रामपुरिसा में शिलालेख लगवाए थे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ