चित्रदुर्ग
चित्रदुर्ग
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 221 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भोलानाथ तिवारी |
चित्रगुप्त यमलोक के लिपिक जो हर मनुष्य के पाप पुण्य का लेखाजोखा रखते हैं। ब्रह्मा को काय (काया) से उत्पन्न होने के कारण ये कायस्थ कहे गए हैं, तथा इन्हें कायस्थों का आदिपुरुष कहा गया है। कायस्थों की विभिन्न शाखाओं के प्रवर्तक नागर, माथुर, गौड़, श्रीवास्तव तथा सोन आदि इनके पुत्र कहे जाते हैं। ये कलम और दावात लिए हुए पैदा हुए थे। कायस्थ लोग यमद्वितीया को इनकी पूजा करते हैं। भीष्म पितामह ने इन्हीं की पूजा करके इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त किया था। एक मत से ये चौदह यमराजों में से एक हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ