चिरायत्ता
चिरायत्ता
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 231 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | सत्य प्रकाश |
चिरायता (Swertia chirata Ham) यह जेंशियानेसिई (Gentianaceae) कुल का पौधा है, जिसका प्रेग देशी चिकित्सा पद्धति में प्राचीन काल से होता आया है। यह तिक्त, बल्य (bitter tonic), ज्वरहर, मृदु विरेचक एवं कृमिघ्न है, तथा त्वचा के विकारों में भी प्रयुक्त होता है। इस पौधे के सभी भाग (पंचांग), क्वाथ, फांट या चूर्ण के रूप में, अन्य द्रव्यों के साथ प्रयोग में जाए जाते हैं। इसके मूल को जंशियन के प्रतिनिधि रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।
चिरायते का पौधा हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में 11 हजार फुट का ऊँचाई तक प्राप्त होता है। तना प्राय: 75 से 125 सेंमी. ऊँचा, ऊपरी भाग चौपहल तथा सपक्ष, आधार की ओर गोल तथा वर्ण में पीताभ नीलारुण होता है। पत्तियाँ 3.5- 8.0´ 1.5- 3.5 सेंमी., अवृंत, विपरीत, चतुष्क (decussate), भालाकार, लंबाग्र (acuminate) एवं पाँच शिराओं से युक्त होती हैं। पौधे के सभी भाग स्वाद में अत्यंत तिक्त होते हैं।
पंसारियों के यहाँ यह भेषज 'पहाड़ी चिरायता' के नाम से उपलब्ध होता है। अधिकांशत: यह नेपाल में पाया जाता है, इसलिये इसे 'नेपाली चिरायता' भी कहते हैं। आयुर्वेद का किरात तिक्त नाम भी इसकी पहाड़ी, अर्थात् किरातीय प्रदेश में, उत्पत्ति तथा तिक्त रस का द्योतक है। देशी चिरायता के नाम से प्राय: कालमेघ (Andrographis paniculata) या अन्य तिक्त द्रव्य, जैसे नाय या नई (Enicostema littorale), बड़ा चिरायता या उदि चिरायता (Exacum bicol) और असली चिरायते की अन्य जातियाँ (Species) भारत के विभिन्न भागों में काम में लाई जाती हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ