जयंतिया और गारो खासी
जयंतिया और गारो खासी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 318 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
जयंतिया और गारो खासी असम के सूरमा काँठे में स्थित प्रदेश जो प्राय: असम के पठार कहे जाते है। यह विस्तार में पूरब-पश्चिम 225 मील लंबा और 70 मील चौड़ा है और इसकी अन्यतम ऊँचाई समुद्रतल से 6000 फुट है : अधिकांश भागों की ऊँचाई 3 और 4 हजार फुट के बीच है। इस प्रदेश में बंगाल के मैदान से दक्षिण और पश्चिम की ओर सीधे उठे हुए हैं। उत्तर की ओर ब्रह्मपुत्र नदी बहती है और मैदान है। पूर्व की ओर पर्वतमाला बरैल पर्वत श्रृंखला के उत्तरपूर्वी और दक्षिणपश्चिमी घुमाव के साथ लगी है; दोनों के बीच कपेती नदी बहती है और उनके बीच विभाजन रेखा का काम करती है।
इस पठार के बीच में गहरी घाटियाँ हैं जिनका दृश्य अत्यंत मनोरम है। इन घाटियों के कारण यह प्रदेश सपाट पर्वतीय चोटी सा बन गया है। दक्षिणी छोर बहुत ही ढालुआँ है और सर्वाधिक ख्यात है। इसी भूभाग में चेरापूँजी है जहाँ संसार में सबसे अधिक वर्षा होती है यहाँ की वर्षा का औसत 400 इंच है। इसी भाग में मुख्य नगर शिलांग भी बसा है। इस भूभाग का तापमान कभी 26.5 से ऊपर नहीं जाता।
इस भूभाग में 3000 फुट की ऊँचाई पर एक विशेष जाति का चीड़ (pine) होता है जो हिमालय अथवा अन्यत्र कहीं नहीं पाया जाता। और यह भूभाग एक प्रकार से इसी वृक्ष के वनों से आच्छादित है। ऊँची पहाड़ियों पर इमारती लकड़ियों के जंगल बिखरे हुए है जिनमें शाहबलूत (Oak), पाँगर (Chest nut) और मैग्नोलिया (magnolias) प्रमुख हैं। वनस्पति विशारदों के मतानुसार इस प्रदेश में सर्वाधिक भाँति की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। अकेले 250 प्रकार के ऑर्किड (Orchid) यहाँ पाए जाते हैं।
नारंगी, अनन्नास और सुपारी खासिया (खासी) लोगों के लिए आय के सबसे बड़े साधन हैं। यहाँ की नारंगी सारे बंगाल में जाती है। अनन्नास की पैदावार अकूत है। आलू की खेती होती है और उसका निर्यात भी होता हैं। मध्य पठार में लोहे की खानें हैं। चेरा पूँजी के आगे अयस्क गलाने की भट्ठियाँ मीलों तक फैली पड़ी हैं, किंतु अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् उनकी प्रतिद्वंद्विता में स्थानीय लोग टिक न सके और ईधन का भी अभाव होने लगा। फलत: यह उद्योग ठप्प हो गया। पहाड़ के दक्षिणी किनारे पर चूने की खदाने हैं। कई जगह अच्छे किस्म का कोयला भी मिलता है।
1833 में अंग्रेजों ने खासी पर अधिकार किया किंतु वहाँ छोटे-छोटे राजे बने रहे। वहाँ इस प्रकार के 25 राज्य थे जो सेभ कहे जाते थे। 1835 में जयंतिया पर अंग्रेजों ने अधिकार किया किंतु वह एक छोटे राज्य के रूप में बना रहा।
इस क्षेत्र का केंद्र अंग्रेजी शासन के अंतर्गत 1864 के पूर्व, चेरापूंजी था। बाद में शिलांग में केंद्र स्थापित हुआ। 1897 में शिलांग में एक भयंकर भूकंप आया था।
आजकल इस प्रदेश का संघटन मेघालय नाम से एक स्वतंत्र प्रदेश के रूप में हुआ है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ