जहाज
जहाज़
जहाज
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 438 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | ओंकार नाथ शर्मा |
समुद्र के आवागमन तथा दूर देशों की यात्रा के लिये जिन बृहद् नौकाओं का उपयोग प्राचीनकाल से होता आया है उन्हें जहाज़ कहते है। पहले जहाज़ अपेक्षाकृत छोटे होते थे तथा लकड़ी के बनते थे। प्राविधिक तथा वैज्ञानिक उन्नति के आधुनिक काल में बहुत बड़े, मुख्यत: लोहे से बने तथा इंजनों से चलनेवाले जहाज़ बनते हैं।
चित्र. क का 1-4
आधुनिक जहाज़ों का वर्गीकरण -
जिस जहाज़ से जो भी काम लिया जाता है। उसी के अनुसार उसकी अभिकल्पना और निर्माण किया जाता है। अत: कार्य के अनुसार जहाज़ों को तीन वर्गों में बाँटते हैं :
- यातायात के जहाज़,
- युद्ध संबंधी जहाज़ तथा
- तटवर्ती और नद्युपयोगी नौकाएँ। इनके भी कई उपवर्ग होते हैं, जिनका हम क्रमानुसार आगे वर्णन करेंगे।
(1)यातायातोपयोगी (Transportation) जहाज़ :
(क) यात्री जहाज़ (Passenger Liners) दुनियाँ के एक बंदरगाह से दूसरे तक यात्रियों को ले जाने का काम करते हैं। इनके द्वारा माल बहुत ही कम ढोया जाता है, क्योंकि इनके अधिकांश भागों में यात्रियों के आवास तथा सुख सुविधा की सभी प्रकार की रचनाएँ बनी होती हैं (देखें चित्र क का 1.)।
(ख) व्यापारी जहाज़ (Merchant Ships) अधिकतर हलका माल ढोने के काम में ही आया करते हैं। अत: इनमें यात्रियों के आवास कक्ष बहुत थोड़े होते हैं। सामान को उठाने धरने के लिये इनपर कुछ क्रेन भी लगे रहते हैं (देखें चित्र क का 2.)।
(ग) माल जहाज़ (Cargo Ships) अक्सर भारी माल ढोने के लिये बनाए जाते हैं। बिखरा हुआ माल, जैस अनाज, कोयला, धातुओं के अयस्क आदि, जिन्हें खुलामाल (Bulk cargo) कहते हैं, डेक के ऊपर बने बड़े बड़े कुएँनुमा गोदामों में भरने के बाद उनका ढक्कन बंद कर दिया जाता है। बँधा हुआ सामान, जिसे पैक माल (General cargo) कहते हैं, गोदामों में चुन दिया जाता है। यंत्रादि बहुधा डेक पर भी लादे जाते हैं, जिसे डेकमाल (Deck cargo) कहते हैं। सामान खाली हो जाने पर ऐसे जहाज़ जब हल्के हो जाते हैं तब उनके निम्नतम (पेंदे के) भाग में बने विशेष कक्षों में मिट्टी, रोड़ी, पानी आदि भर दिया जाता है, जिससे कि वे समुद्र में ठीक सतह पर बैठकर तैर सकें। इस प्रकार के बोझे को नीरम (Ballast) कहते हैं (देखें चित्र क का 3.)।
(घ) टंकी जहाज़ (Tankers) इनमें पेट्रोल, ईधंन, तेल, गुड़ का शीरा आदि भरकर ले जाया जाता है। अत: इनकी रचना में अधिकतर टंकियों का ही भाग रहता है और तरल पदार्थों को निकालने के लिये जहाँ तहाँ पंप भी लगे होते हैं। इन जहाज़ों में इंजन सबसे पिछले भाग में लगाया जाता है, जिससे पेट्रोल आदि में आग लगने की आशंका न रहे। इनमें क्रेन बिलकुल नहीं होते, बल्कि इनके आगे के सिरे से पीछे के सिरे तक एक लंबा पुल अवश्य बनाया जाता है, जिससे समुद्र की लहरों का पानी डेक पर आ जाने के समय कार्यकर्ता एक सिरे से दूसरे सिरे तक आ जा सकें (देखें चित्र क का 4.)।
(2)युद्ध संबंधी जहाज़:
(क) युद्धोपयोगी, सैनिक जहाज़ों (Warships) पर भारी भारी तोपें लगी रहने, चाल बहुत तेज होने तथा चारों तरफ से कवचीय प्लेटों का आवरण चढ़ा रहने स इनके ढाँचों पर भारी प्रतिबल पड़ा करते हैं। केंद्रीय भाग में चिमनी के आस पास ही समस्त आवश्यक अधिरचनाएँ बना दी जाती हैं, जिससे चारों तरफ के खाली भागों में तोपों के गोलों के जाने के लिये निर्बाध जगह रह सके (देखें चित्र ख का 1)।
(ख) वायुयान बाहक (Aircraft Carrier) इनके सपाट डेक पर नाना प्रकार के बम, रॉकेट, तारपीडो और जल सुरंगों से सुसज्जित वायुयान रखे जाते हैं, जो यहीं से उड़ उड़कर शत्रु पर दूर दूर तक सब प्रकार के हमले कर सकते हैं। इन जहाज़ों पर अपनी सुरक्षा के लिये भी कुछ तोपें लगी रहती हैं, लेकिन फिर भी ये जहाज़ बड़े युद्धपोतों की संरक्षा में ही काम करते हैं (देखें चित्र ख का 2.)।
(ग) बड़े विध्वंसक जहाज़ों (Fleetr Destroyers) का काम शत्रु की पनडुब्बियों से बड़े युद्धपोतों की रक्षा करना, शत्रु पर तारपीडों से हमला करना तथा अपने जंगी बेड़े के आगे आगे चलक अग्रदूत का सा काम करना होता है। आकार में छोटे होने के कारण साफ मौसम में तो ये जहाज़ अच्छी तेज गति से चल सकते हैं, लेकिन तूफानी मौसिम में इन्हें बड़ी सतर्कता बरतनी पड़ती है (देखें चित्र ख का3.)।
चित्र. ख का 1-5
(घ) पनडुब्बियाँ (Submarines) शत्रु के युद्धपोतों, माल जहाज़ों तथा सेनावाहक जहाज़ों पर छिट पुट हमले करके उन्हें परेशान कर सकती हैं। ये पानी में डुबकी लगाकर अपने जंगी बेड़ों से बहुत आगे तक जाकर वहाँ की खबरें भी ले आती हैं। (देखें चित्र ख का 4.)।
(ङ) सुरंग निवारक (Mine Sweeper) जहाज़ शत्रु द्वारा बिछाई गई विस्फोटक समुद्री सुरंगों को अपने जंगी बेड़े के आगे आगे साफ करते चलते हैं। अपनी सुरक्षा के लिये इनपर कुछ तोपें भी लगी होती हैं (देखें चित्र ख का 5.)।
(च) क्रूज़र जहाज़ (Cruiser) युद्धपोतों से छोटे होने पर भी सब प्रकार के युद्धों में स्वतंत्रता पूर्वक भाग ले सकते हैं। इनमें आक्रमणात्मक तथा पैतरा बदलने की व्यवस्था रहती है एवं इनकी गति बहुत अच्छी होती है। इनके टरेटों (turrets) पर माध्यम नाप की तोपें लगी होती हैं, जो सब ऋतुओं में अच्छा काम करती हैं (देखें चित्र ग)।
श्
श्
चित्र. ग क्रूज़र जहाज़़
(छ) इनके अतिरिक्त शत्रु को हानि पहुँचाने के लिये उसके समुद्र के निकट सुरंगें बिछानेवाले (Mine Layers) जहाज़ भी बनाए जाते हैं। सुरंगें बिछाने का काम हवाई जहाज़ों, जंगी जहाज़ों और पनडुब्बियों आदि से भी लिया जा सकता है। जंगी नौबेड़ों के साथ युद्ध सामग्री और तेल पहुँचानेवाले तथा सेनावाहक जहाज़ भी रहा करते हैं।
(3) तटवर्ती तथा नद्युपयोगी नौकाओं के वर्ग में डूबते हुए जहाज़ों को निकालनेवाले पोत (Dredgers and Tugs) समुद्री तार बिछाने तथा उनकी मरम्मत करनेवाले (Cable Ships), तटवर्ती यात्रोपयोगी छोटे जहाज़ (Steamers), भोजन सामग्री ले जानेवाले (Frozen Meat Carriers), मत्स्य नौकाएँ (Trawlers) और घाट-यान-नौकाएँ (Ferries) आदि मुख्य हैं।
जहाज़ के ढाँचों पर पड़नेवाले प्रतिबल (stresses)-
प्रत्येक जहाज़ के ढाँचे की अभिकल्पना (design) इस प्रकार से की जाती है कि उसके इंजनों, प्रणोदित्रों अथवा पैडल व्हीलों, सहायक यंत्रों तथा पंचों आदि के चलने के कारण और विशेषकर समुद्री लहरों के कारण जो विकृतियाँ तथा प्रतिबल पड़ें, उन्हें वह सह ले। जहाज़ों के चलते समय जब सामने की हवा का मुकाबिला करना होता है। उस समय यदि जहाज़ की चौड़ाई के बराबर लंबी लहरें उठने लगती हैं, तो कई बेर कोई एक ही बड़ी लहर बीच में जहाज़ को अधर में उठा ले सकती है। तब जहाज़ के आगे और पीछे क सिरे ठीक उसी प्रकर से लटकते रहेंगे जैसे कि किसी लदी हुई शहतीर को बीच में से सहारा देकर उठा लिया हो। जहाज़ का इस दशा को उत्तलन (ऊपर को उठा लिया जाना, hogging) कहते हैं (देखें चित्र घ)। कभी कभी ऐसा भी होता है कि जहाज़ का आगे और पीछे का सिरा तो लहरों पर टिक जाता है और बीच का स्थान खाली हो जाता है, ठीक वैसा ही जैसे कोई लदी हुई शहतीर दोनों सिरों पर टिकी हो। इस परिस्थिति में जहाज़ के ढाँचे पर पड़नेवाले प्रतिबलों को अवतलन (sagging) कहते है (देखें चित्र च)। कभी कभी इन दोनों परिस्थितियों का मिश्रण भी हो जाता है, जिसमें पड़नेवाले प्रतिबल कर्तन (shear stress) कहलाते हैं (देखें चित्र छ)। जब हवा तिरछी चलती है तब कभी कभी जहाज़ के ढाँचे में मरोड़ प्रतिबल (twisting strains) पड़ते हैं (देखें चित्र ज)। जब बगली हवा चलती है तब पार्श्वीय विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं (देखें चित्र झ)। इसके अतिरिक्त पानी में डूबे रहनेवाले भाग पर समुद्री पानी का भी अत्यधिक दाब पड़कर ढाँचे को चिपकाने की प्रवृत्ति दिखाता है (देखें चित्र ट)। सबसे अधिक तथा विकट प्रकार की विकृतियाँ तो आगे और पीछे के सिरों पर उस समय पैदा होती हैं जब जहाज़ में माल के विषम लदान और लहरों के प्रभाव तथा पानी के उत्प्लावक बल के कारण जगह जगह पर नमन घूर्ण (bending moments) पैदा होने लगते हैं।
लहरों द्वारा पड़नेवाली विकृतियों की गणना करते समय मान लिया जाता है कि प्रत्येक लहर की लंबाई जहाज़ की चौड़ाई के बराबर और उनकी ऊँचाई लंबाई के वें भाग के उराबर है।
जहाज़ के ढाँचे की अभिकल्पना करते समय उसके प्रत्येक अवयव (जो ढले इस्पात का होता है अथवा मुलायम इस्पात की छड़ों, ऐंगल आयरनों, चैनलों, गर्डरों और प्लेटों आदि को आपस में रिबटों द्वारा बैठाकर अथवा विभिन्न प्रकार के जोड़ों द्वारा कसकर बनाया जाता है) की रचना ऐसी करते हैं कि उसपर जो भी प्रतिबल पड़े, सब में समविभाजित होकर इस प्रकार से समस्त ढाँचे में फैल जाए कि प्रत्येक अवयव पर आनेवाले झटकों को अवयव मिलकर सह लें।
जहाज़ के ढाँचे के प्रधान अवयव -
ये चित्र ठ के क और ख में आरेखीय विधि से दिखाए गए हैं। जहाज़ का पठाण (नौतल, keel) लोहे या ढले इस्पात द्वारा तीन प्रकार से बनाया जाता है, यथा इकहरी मोटी छड़ों, चपटी पट्टियों अथवा प्लेटों द्वारा। यही सबसे नीचे रहनेवाला बुनियादी अवयव है, जिसके सहारे समस्त ढाँचा खड़ा किया जाता है।
चित्र. घ, च, छ, ज, झ, और ट
चित्रों में दी हुई संख्याएँ १ से ६ तक इन चित्रों को क्रमवार प्रदर्शित करती हैं।
मरिया (Keelson) एक से अधिक तथा विभिन्न आकार के बनाए जाते हैं। इनमें से जो प्रमुख होता है वह जहाज़ के पेंदे की मध्य रेखा पर खड़ा लगया जाता है। सब मिलकर समस्त पेंदे को सहारा देते हैं। पठाण के आगे के सिरे मल्लजोड़ (Scarph) द्वारा (देखें चित्र ठ का ग)।
ऊपर को उठा हुआ जो अवयव ढले हुए इस्पात का बनाकर जोड़ा जाता है वह दुंबाल (Stern) कहलाता है। इसी में खाँचे बनाकर बीचवाला मरिया और बाहरी खोल के प्लेट बैठाकर जड़ दिए जाते हैं। पीछे की तरफ ढले इस्पात का जो खड़ा अवयव इसी प्रकार जोड़ा जाता है वह दुंबाल स्तंभ या कुदास (Sternpost) कहलाता है। रडर को सहारा देने के लिये और यदि एक या तीन प्रणोदित्र (propeller) युक्त जहाज़ हों तो मध्यवर्ती प्रणोदित्र के घूमने के लिये भी इसी में जगह बनाई जाती है१ जहाज़ के समस्त ढाँचे की रचना पंजरनुमा होती है (देखें चित्र सं. ठ का क, और ड का नीचे का भाग)। पंजर के समस्त अंग ऐंगल आयरन और पट्टियों द्वारा ही बनाए जाते हैं। ये पंजर दोहरे होते हैं, एक भीतरी और दूसरा बाहरी। उन्हें आपस में संयुक्त करने की तरकीब चित्र ठ के घ में दिखाई गई है। जिन स्थानों पर जहाज़ का निचला फर्श टिकता है, वे बाहरी और भीतरी पंजरों के बीच में खड़े लगाए जाते हैं (देखें चित्र ड, ढ और न) इन्हें मरिया अथवा फ्लोर्स भी कहते हैं। इनके कारण पेंदा बहुत ही दृढ़ हो जाता है। जहाज़ की दोनों बगलियों के पंजरों को दृढ़ता प्रदान करने के लिये, उनके बीच में लंब पट्टियाँ तथा आड़ी स्थूणाएँ (धरनें) लगा दी जाती हैं। लंब पट्टियाँ जहाज़ के पंजर से ऐंगल प्लेटों के साथ रिवेटों द्वारा जड़ दी जाती हैं। संपूर्ण जहाज़ का पंजर कई खंडों में बनाकर प्रत्येक पंजर के ऊपरी सिरे पर भी एक एक धरन लगा दी जाती है, जो ऊपरी डेक के प्लेट को सहारा देती है।
जिन जहाज़ों में एक से अधिक डेक होते हैं, उनमें प्रत्येक डेक को सँभालने के लिये प्रत्येक खंड में एक एक स्थूणा लगाई जाती है। ऊपरी डेक सदैव इस्पात की प्लेटों का बनाया जाता है और उसपर लकड़ी के तख्ते बैठा दिए जाते हैं। नीचे के डेक लकड़ी के तख्तों से ही बनाए जाते हैं। कुछ जहाज़ों में नीचे के डेक भी इस्पात की प्लेटों से बनाते हैं। यह सब उपयोग पर निर्भर करता है। जहाज़ के पंजर की आड़ी धरनों के बीच, उन्हें सहारा देने के लिये एक एक खंभा भी इस्पात का लगा दिया जाता है। जिन जहाज़ों की चौड़ाई अधिक होती है उनके मध्य खंभे के दोनों ओर एक खंभा और लगा दिया जाता है। मालवाहक जहाज़ों के गोदामों में अधिक खुली जगह की आवश्यकता पड़ा करती है। अत: उनमें खंभे न लगाकर अन्य प्रकार की युक्तियों से काम लिया जाता है। चित्र ढ में इस प्रकार का एक खंभा दिखाया गया है, जबकि चित्र ड की रचना में एक भी खंभा नहीं लगाया गया है।
नितल पट्टिकाएँ (Bilge Keels) -
ये जहाज़ के बाहरी आवरण से बाहर की ओर निकली रहती हैं। (देखें चित्र ड और न)। कारण जहाज़ के खोल (hull) की लुंठनगति (rolling) में काफी अवरोध होता है, जिससे लुंठनगति बिलकुल तो नहीं रुकने पाती, परंतु
चित्र. ठ.
काफी कम हो जाती है। जहाज़ के पेंदे पर पूरी लंबाई भर में, इस्पात के प्लेटों को ब्रैकटों द्वारा जड़कर, उनसे भीतें (bulk-heads)
चित्र. ड
बनाकर जलाभेद्य कमरे बना दिए जाते हैं, जिनकी ऊँचाई दोतले पेंदे से लेक समुद्री पानी की सतह तक होती है। ये कमरे बड़े उपयोगी होते हैं, क्योंकि जब कि दुर्घटनावश जहाज़ के आवरण में कहीं छेद हो जाता हैं, तब समुद्री पानी केवल उसके निकटवर्ती कमरे में ही भरकर रह जाता है और शेष जहाज़ सुरक्षित रहता है। कई बार जहाज़ की लंबाई की दिशा में लदे हुए माल का संतुलन ठीक करने के लिये किसी उपयुक्त कमरे में जान बूझकर भी पानी भर दिया जाता है। कई पुराने प्रकार के जहाज़ों में तो ये कमरे इस प्रकार के बने होते थे कि एक से दूसरे में जाने के लिये उनकी छत में बने छेद में चढ़कर दूसरे के छेद में उतरना होता था (देखें चित्र त)। आधुनिक जहाज़ों में उनकी दीवारों में ही दरवाजे लगा दिए जाते हैं। (देखें चित्र थ)। ये छेद और दरवाजे रबर की पट्टियाँ तथा क्लैंप लगाकर बिलकुल जलाभेद्य बना दिए जाते हैं।
व्यापारी जहाज़ों में अधिक से अधिक तीन डेक होते हैं। एक डेकवाले जहाज़ की ऊँचाई पठाण से डेक तथा १५ फुट, दो डेक वाले जहाज़ की ऊँचाई पठाण से ऊपरी डेक तक २४ फुट और तन डेकवाले की ३५ फुट के लगभग रहती है। लेकिन बड़े समुद्री पोतों और माल जहाज़ों की समग्र ऊँचाई इससे अधिक हो जाती है।
जहाज़ों का बाहरी आवरण-
यह इस्पात की चादरों का बना होता है और उसकी मोटाई, जहाज़ के परिमाण, उसमें भरे जानेवाले माल तथा जिस भाग में वह जड़ा जाता है वहाँ के पानी के दबाव के अनुपात से निश्चित की जाती है। जहाज़ के पेंदे और अडवाल से नीचे के प्लेट, जिन्हें पेरज (Gunwale) भी कहते हैं सबसे मोटे रखे जाते हैं। मंदान तथा कुदास की निकटवर्ती प्लेटें भी काफी मोटी होती हैं। इनकी अधिक से अधिक मोटाई एक इंच होती है। आवरण प्लेटों की मोटाई इंच के २०वें भाग में नापने की प्रथा है।
चित्र. ढ
==जहाज़ की चौड़ाई -== जहाज़ के मध्य भाग में नीचे की तरफ सबसे अधिक चौड़ाई रहती है, जिसे धरन नाप (moulded breadth) कहते हैं। इसके ऊपर की तरफ चौड़ाई क्रमश: कम होती जाती है, जिसे जहाज़ के मध्य भाग का भीतरी झुकाव (Tumble home)
श्
चित्र. त.
कहते हैं। इसे ऊपर के डेक से एक ही तरफ को नापा जाता है। आगे
श्
श्
श्
श्
चित्र. थ
तथा पीछे के सिरों के निकट, नीचे की ओर, जहाज़ की चौड़ाई क्रमश:
चित्र. द
कम होती जाती है, जिससे वहाँ के परिच्छेद की आकृति V आकार की हो जाती है। इस नीचे से ऊपर बढ़ती चौड़ाई को जहाज़ का अपसरण (flare अथवा flam) कहते हैं। चित्र द. में जहाज़ की अनुदैर्ध्य आकृति, क च, ख छ और ग ज रेखाओं पर उसकी तीन अनुप्रस्थ काटें तथा नीचे की तरफ प्लान दिखाकर जहाज़ की विविध परिभाषाएँ और भागों के नाम सूचित किए गए हैं। यात्री जहाज़ - चित्र घ. में एक बड़े यात्री जहाज़ के विविध डेकों का विन्यास आरेखीय विधि से दिखाया गया है है। इनमें उनका मुख्य ढाँचा, दोहरा पंजर और लंब पट्टियाँ आदि मध्य डेक तक ही समाप्त हो जाती हैं। विहार डेक (Promenade deck) तथा नौका डेक (Boat deck) की अधिरचना ऊपरी ढाँचे के रूप में उपरले और खुले डेक पर कर दी जाती है। बड़े यात्री जहाज़ माल जहाज़ों की अपेक्षा अधिक भारी होने के साथ ही समुद्र की सतह से अधिक ऊँचे भी तैरते रहा करते हैं। अत: उन्हें अधिक दृढ़ तथा सावधानी से बनाना पड़ता है, जिससे कोई दुर्घटना हो जाने पर भी समुद्री पानी उनमें प्रवेश न कर सके।
युद्धपोतों की बनावट -
तारपीडो नौकाओं तथा युद्धपोतों के पंजरों की बनावट तो उसी ढंग की होती है जैसी यात्री जहाज़ों की लेकिन उन्हें इतना दृढ़ बनाया जाता है कि वे बड़े बड़े इंजनों की चाल, तोपों के दागे जाने, अथवा जहाज़ की चाल को बारंबार आगे पीछे करके पैतरा बदलते समय होनेवाले कंपनों के प्रभाव की सह सकें। इनकी पठाण चपटे प्लेटों से बनाकर उसके आगे पीछे के सिरों को मंदान और कुदाल की झिरियों में डालकर मोड़ दिया जाता है। फिर उन्हें मल्ल जोड़ द्वारा पक्का भी कर दिया जाता है। बाहरी और भीतरी पठाण प्लेटों को पंजर के साथ टक्करी जोड़ (butt joint) द्वारा कसकर, नीचे की तरफ बाहरी आवरण प्लेटों की कोरों को पठाण के साथ ही जड़ देते हैं। हथियारों के गोदामों में इंजन और यंत्रों की ऊँचाई की सतह तक सुरक्षा के लिये इस्पात का मोटा कवच प्लेट लगा दिया जाता है। सबसे आगे की पोतभीत (bulk-head) तथा दुंबाल (stern) के बीच कुछ
चित्र. ध
खाली जगह छोड़ दी जाती है, जिसे टक्कर पीतभीत (Collision Bulkhead) कहते हैं। चित्र ड और ढ में एक क्रूजर और बेड़ा विध्वंसक
चित्र. न
जहाज़ की अनुप्रस्थ काट दिखाई है, जिससे उनकी बनावट का बहुत कुछ ज्ञान हो सकता है। चित्र ड में जलनकि (water tube) तथा
चित्र. प
बायलर लगाने की विधि दिखाई गई है। चित्र प की क, ख और ग आकृतियों में विशिष्ट स्थानों को रेखांकित करके क्रमश: मानव आवास, माल और युद्धसामग्री तथा यंत्रादि के उपयुक्त् स्थानों का निर्देश किया गया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
सं. ग्रं.- ए. ई. सीटन : ए मैनुएल ऑव मैराइन इंजिनियरिंग; ए मैनुएल ऑव सीमैनशिप, खंड १, (प्रकाशक: ऐडमिरैल्टी ऑफिस, लंदन) तथा सी. एच. थिरकैल: मैराइन इंजीनियरिंग।