जान क्लीवलैंड़
जान क्लीवलैंड़
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 239 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
जान क्लीवलैंड (1613-1658 ई.) अंग्रेज कवि और व्यंगलेखक। लौबरा में जन्म। 14 वर्ष की अवस्था में कैब्रिज के क्राइस्ट चर्च में भरती हुआ और 1634 में सेंट जान्स कालेज का फेलो नियुक्त हुआ। कैंब्रिज के निर्वाचन क्षेत्र से ओलिवर क्रामवेल के विरुद्ध पार्लामेंट की सदस्यता के लिये खड़ा हुआ। प्यूरिटन दल के सफल होने पर आक्सफोर्ड चला आया। इस समय तक वह व्यंगलेखक के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका था अत: राजा ने उसे आदर प्रदान किया और वह उनके साथ 1645 में नेवार्क गया। नेवार्क में वह जज एडवोकेट रहा और 1646 में नगर की रक्षा में सक्रिय भाग लिया। वह कट्टर रायलिस्ट था। जब स्काट लोगों ने राजा चार्ल्स प्रथम को पार्लमेंट के सुपुर्द कर दिया तो उसने अपना क्षोभ 1647 में ‘द रिबेल स्काट’ लिखकर प्रकट किया। अपनी इन भावनाओं के कारण उसे 1655 ई. में जेल भुगतना पड़ा। जीवन के अंतिम दिनों में वह लंदन आकर रहने लगा।
क्लीवलैंड अध्यात्मवादी धारा का कवि था। उसकी अधिकांश रचनाएँ व्यंगात्मक हैं। उसकी कविताओं का एक संग्रह ‘द पोयम्स’ नाम से प्रकाशित हुआ। कलात्मक दृष्टि से ‘एलेजी आन बेन’ जानसन एक सुंदर रचना है। समासामयिकों के बीच उसकी लोकप्रियता मिल्टन की अपेक्षा अधिक थी। उसकी लोकप्रियता का पता उसकी रचनाओं के असंख्य संस्करणों से लगता है और उन्हें सत्रहवीं शती की जनरुचि का मापदंड कहा जाता है। 29 अप्रैल, 1658 ई. को उसकी मृत्यु हुई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ