जेम्स कुक
जेम्स कुक
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 52-53 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | पद्मा उपाध्याय |
कुक, जेम्स (1728-1779 ई.)। भू-अन्वेषक और अंग्रेजी नौसेना के कप्तान। इंग्लैंड के यार्कशायर प्रांत में मार्टन ग्राम के किसान के घर 28 अक्टूबर, 1728 को उनका जन्म हुआ। 12 वर्ष की उम्र में एक बिसाती की दुकान पर नौकर हुआ। यह कार्य उन्हें आकृष्ट न कर सका, अत: प्राय: वह अपने स्वामी की चोरी समुद्र के किनारे भाग जाते और मुग्ध होकर नाविकों से सुदूर नगरों के अद्भुत निवासियों की कहानियाँ सुना करते। फलत: वे समुद्री यात्रा की ओर आकृष्ट हुए। अपना सामान बाँध और दुकान से एक शिलिंग चुराकर भाग निकले। हिवट्बी में एक कोयला ढोने वाले नाविक के यहाँ नौकरी की। अगले 15 वर्षों तक वह नार्वे तथा बाल्टिक के समुद्री किनारे पर आने जानेवाले छोटे जहाजों पर कार्य करते रहे।
27 वर्ष की आयु में वे जहाज के नाविक बने और इंग्लैंड-फ्रांस युद्ध के समय रायल नेवी में नियुक्त हुए। उन्हें कनाडा में सेंट लारेंस के कष्टप्रद सर्वेक्षण का कार्य मिला। फ्रांसीसियों के संभावित आक्रमण के निरंतर खतरे के अंतर्गत कार्य करते हुए उन्होंने क्वेबेक से समुद्र तक के नदीमार्ग का मानचित्र बनाया जो बाद में अंग्रेजी बेड़े के अब्राहम हाइट्स पर आक्रमण के समय पथप्रदर्शक बना।
1762 में उन्होंने न्यूफाउंडलैंड के समुद्रतट का सर्वेक्षण किया और मानचित्र के क्षेत्र में उसकी प्रशंसा हुई। अनुभव से उन्होंने गणित में भी क्षमता प्राप्त की जो उनके कार्य में बड़ा सहायक सिद्ध हुआ। 1766 में जब उन्हें न्यूफाउंडलैंड के तटीय प्रदेश का सर्वेक्षण करने के लिए भेजा गया तब उन्होंने 5 अगस्त, 1766 के सूर्यग्रहण की वैज्ञानिक गणना से संसार को आश्चर्यान्वित कर दिया। उसके इस शोध ने रायल सोसाइटी का ध्यान आकर्षित किया। यह उनके जीवन का प्रतिभाशाली मोड़ था।
रायल सोसाइटी के सदस्य आस्ट्रेलिया की खोज में अधिक दिलचस्पी रखते थे। अत: उसकी खोज का उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य कुक को सौंपा गया। आस्ट्रेलिया के लिए पिछली शताब्दी में कई खोजें हो चुकी थीं, परंतु स्थिति अभी ज्यों-की-त्यों बनी थी। 1768 की 25 अगस्त को वह 83 व्यक्तियों के साथ इंडेवर नामक जहाज पर तीन वर्ष की यात्रा पर निकला। 1769 में वह ताहिती पहुँचा जहाँ उसने शुक्र का सौर मंडल में प्रवेश देखा। वह दक्षिण की ओर बढ़ता गया और आस्ट्रेलिया को ढूँढ़ता न्यूजीलैंड जा पहुँचा। डेढ़ मास की निरंतर यात्रा के पश्चात भूमि का दर्शन आह्लादक था, परंतु वहाँ के निवासी बर्बर निकले; द्वीप के भीतर जाकर खोज करना संभव न हो सका।
कुक ने उत्तरी तथा दक्षिणी द्वीपों की यात्रा की और समुद्री मार्ग निश्चित किया। उन्होंने रानी चारलोटी नामक द्वीप पर अधिकार कर एक सैनिक समारोह किया। न्यूजीलैंड से आगे बढ़कर वह 20 वें दिन आस्ट्रेलिया पहुँचा। पूर्वी किनारे पर उसे असंख्य प्रकार की अनजानी जड़ी बूटियाँ मिलीं जिससे उसने उसका नाम वनस्पति की खाड़ी (बॉटनी बे) रखा। पूर्वी तट पर यात्रा करते हुए उसका जहाज बड़ी कठिनाई के साथ एक नदी के मुहाने में पहुँचा। आस्ट्रेलिया छोड़ने से पहले उसने फिर एक सैनिक समारोह किया और पूर्वी आस्ट्रेलिया पर सम्राट् जार्ज के अधिकार की घोषणा की। बिना रक्तपात के एक बड़े महाद्वीप पर अधिकार इतिहास की एक अपूर्व घटना थी। न्यूगिनी होता हुआ वह उत्तमाशा अंतरीप के मार्ग से स्वदेश लौटा और कमांडर बना दिया गया।
13 जुलाई, 1772 को वह प्लीमथ से फिर समुद्री खोज के लिए निकला। दो जहाज लेकर, जिनपर 193 व्यक्ति थे, वह पहले उत्तमाशा की ओर बढ़ा और दक्षिण पूर्व की ओर अंटार्कटिक समुद्र की ओर निकल गया। दक्षिणी प्रशांत सागर की खोजकर उसने यह सिद्ध किया कि उधर कोई महाद्वीप नहीं है। उसकी यह यात्रा बर्फ की चट्टानों से भरे तूफानी समुद्रों की थी और दोनों जहाज समुद्री धुंध के कारण विलग हो जाते थे। न्यूजीलैंड, डस्की वे तथा रानी चारलोटी घूमता वह उस क्षेत्र की यात्रा करता रहा। मार्ग में अपूर्व हरे भरे द्वीपों तथा उनके आश्चर्यजनक निवासियों को देखता, वैज्ञानिक खोज करता वह 1775 की 27 जुलाई को जब प्लीमथ लौटा तब वह मारक्विस, टोंगा तथा न्यू हेब्रीडीज़ द्वीपसमूहों को फिर से खोज और न्यू कैलेडोनिया, नारफ ाक तथा पाइन द्वीपों को देख और दक्षिणी प्रशांत सागर की लहरों को अपने पतवारों से चंचल बना चुका था।
तीन वर्षों में कुक ने 60 हजार मील की यात्रा की। इस काम में उसके नाविकों में केवल एक की ही मृत्यु हुई। उस समय की संकटपूर्ण समुद्री यात्रा की यह अपूर्व विजय थी फलत: समुद्री यात्राओं की मृत्यु के कारण की उसने वैज्ञानिक जाँच की और खोजपूर्ण लेख प्रकाशित किया जिसमें स्वास्थ्य के कुछ सधारण परंतु आधारभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। रायल सोसाइटी ने उसे कैपले पदक प्रदान किया। उसकी द्वितीय यात्रा का ही परिणाम प्रशांत सागर का वर्तमान मानचित्र है। बर्फीले अंटार्कटिक सागर का जो विवरण उन्होंने प्रस्तुत किया वह एक शताब्दी पश्चात् ध्रुवों की खोज करने वाले साहसी नाविकों का प्रेरणा स्रोत बना। वह पदोन्नति करना ग्रीनिच अस्पताल का कप्तान बना तथा रायल सोसाइटी ने उसे सदस्यता प्रदान की।
1776 ई. में कुक ने अपनी तृतीय एवं अंतिम यात्रा आरंभ की। इस यात्रा का उद्देश्य प्रशांत सागर से अटलांटिक सागर जाने का मार्ग ढूंढ़ निकालना, नई दुनिया को पुरानी दुनिया से जोड़ना था। दो जहाज उसके साथ थे। वह उत्तमाशा अंतरीप की राह तस्मानिया, न्यूजीलैंड, टौंगा, ताहिती होता हुआ परिचित मार्ग से बढ़ा वह हवाई द्वीप समूहों की ओर पहुँचा। उसने उन्हें सैंडविच द्वीपसमूह का नाम दिया। लार्ड सैंडविच उस समय सेना के अध्यक्ष और कुक के मित्र थे। वह अमेरिका के पश्चिमी तटों से होता उत्तर की ओर अनजाने बर्फीले समुद्रों में बढ़ता गया और तटीय प्रदेशों का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करता एक ऐसे स्थान पर जा पहुँचा जहाँ 12 फुट ऊँ ची बर्फ की दीवार उसका मार्ग रोके खड़ी थी। कुक ने उसका नामकरण बर्फीला अंतरीप किया। लौटते समय वह साइबेरिया के उत्तरी पूर्वी किनारे से होता हवाई लौटा। एक सप्ताह पश्चात् फिर यात्रा आरंभ की परंतु तूफान के कारण उसे लौटना पड़ा। हवाई के निवासियों ने उनकी एक नाव चुरा ली। वह कुछ साथियों के साथ नाव वापस माँगने के लिए किनारे उतरा। स्थानीय निवासियों के साथ विवाद बढ़ा और उनकी बढ़ती संख्या देखकर उसके साथी उसे अकेला छोड़ जहाज पर भाग गए। स्थानीय निवासियों ने उसे मारकर जला डाला। अब उसकी कुछ हड्डियाँ ढूँढ़कर एक स्मारक बना दिया गया है। परंतु उसका वास्तविक स्मारक तो उसके द्वारा बनाया प्रशांत सागर का मानचित्र है। उसका बनाया मानचित्र आज भी ग्रीनिच की वेधशाला में देखा जा सकता है।