जोकिम, फ्लोरिसका

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

जोकिम, फ्लोरिसका (११४५-१२०२ ई.) १२वीं ईसवीं शती का इटालियन रहस्यवादी धर्मशास्त्री थे। छोटी अवस्था में ही कुस्तुनतुनिया की तीर्थयात्रा में प्रत्येक दसवें व्यक्ति को महामारी से मरते देख उसके मन को बड़ी ठेस लगी। इटली लौटकर कुछ काल तपश्चर्यापूर्ण तीर्थभ्रमण एवं एकांतवास के पश्चात्‌ वह संन्यासी हो गया। कुछ समय के उपरांत उसने फियोर में सैन जियोवानी का मठ स्थापित किया, उसमें फ्लोरेंसिस पंथ प्रारंभ किया, तथा उसकी स्वतंत्र नियमावली बनाई, जिसे इनोसेंट तृतीय ने जोकिम की मृत्यु के दो वर्ष बाद १२०४ में मान्यता प्रदान की।

जोकिम ने सात ग्रंथों की रचना की। इनमें ईसाई धर्मसंघ-चर्च में प्रचलित भ्रष्टाचार की ओर उसकी बढ़ती हुई सांसारिकता की कड़ी आलोचना करते हुए उसने पोप का विरोध किया। साथ ही पोप के विरुद्ध क्रांति करनेवाले फ्रांसिस्कनों को अंत में जीत की आशा दिलाई। इतिहास को तीन युगों में विभाजित किया-

  1. जौन बैप्टिस्ट के पिता जकारियास तक का नियमयुग अथवा (एज ऑव लॉ) पितायुग।
  2. इंजीलयुग अथवा पुत्रयुग
  3. अंत में अध्यात्मयुग जो ध्यान का युग अर्थात्‌ सर्वोच्च संन्यासयुग होगा एवं पूर्णतया पूर्वी रहस्यवाद में वर्णित परमानंद की ओर ले जाएगा। संन्यासियों के पंथ के अबाध्य दैवीज्ञान के सम्मुख ईसाई धर्मसंघ की गद्दी नष्ट हो जायगी। पृथ्वी एक विशाल पूर्ण मठ रूप हो जायगी। तभी मानवजाति को वास्तविक विश्राम मिलेगा। मनुष्य शब्द का दास नहीं रहेगा। स्वतंत्रता से नित्यधर्म का पालन कर सकेगा।

जोकिम के विचार इटली तथा फ्रांस में बहुत फैले, विशेषतया कट्टर धर्म के विरोधियों में। फ्रांसिस्कन अध्यात्मवादियों ने घोषणा कर दी कि जोकिम द्वारा वर्णित अंतिम युग सेंट फ्रांसिस से आरंभ हो गया। बड़े बड़े विद्वान्‌ इस न्याय तथा शांति के युग के स्वप्न देखने लगे। दाँते ने जोकिम को 'स्वर्ग' में आदर का स्थान दिया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ