जोज़ेंफ़ एडिसन
जोज़ेंफ़ एडिसन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 237 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | विक्रमादित्य राय |
एडिसन, जोज़ेंफ़ (1672-1719) अंग्रेजी के यह प्रसिद्ध निबंधकार तथा समीक्षक 1 मई, 1672 ई. को पैदा हुए थे और चार्स्टर हाउस नामक स्कूल में उनकी शिक्षा आरंभ हुई थी। 1687 में स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के पश्चात् उन्हें ऊँची शिक्षा के लिए क्वींस कालेज, आक्सफोर्ड, भेजा गया और इस विद्यालय तथा मैगलेन कालेज़ में अपने आवासकाल में उन्होंने साहित्य तथा कवित्व प्रेम का काफी परिचय दिया और तत्कालीन चांस्लर ऑव एक्स्चेकर, मांटेग्यू महोदय की कृपा भी प्राप्त की। उनकी लैटिन कविता से प्रसन्न तथा प्रभावित होकर मांटेग्यू ने तीन सौ पौंड की पेंशन दिलवाई, जिसका उपयोग एडिसन ने कतिपय यूरोपीय देशों के पर्यटन में किया। इंग्लैंड लौटने के पश्चात् बहुत दिनों तक वे बेकार ही रहे परंतु ह्विग पार्टी के सत्तारूढ़ होने के साथ ही उनका भी भाग्योदय हुआ।
अप्रैल, सन् 1709 में रिचर्ड स्टील ने 'टैटलर' नामक पत्रिका का संचालन आरंभ किया और इसी पत्रिका में एडिसन की उस निबंधकला का परिचय मिला जो 'स्पेक्टेटर' के लेखों में पूर्णतया परिमार्जित तथा प्रस्फुटित हुई। इस दूसरी प्रसिद्ध पत्रिका का प्रकाशन 1 मार्च, सन् 1711, से प्रारंभ हुआ था और यह 6 दिसंबर, सन् 1712 तक चलती रही। इसी पत्रिका ने एडिसन को लोकप्रिय बनाया और इसी के माध्यम से उन्होंने धन तथा यश का प्रचुर अर्जन किया। पत्रकारिता के पश्चात् उनका ध्यान रंगमंच की ओर आकृष्ट हुआ और इसके फलस्वरूप उनके दु:खांत नाटक 'कैटो' का सफल अभिनय ड्रूरी लेन थियेटर में हुआ। अगस्त, सन् 1716 में उनका विवाह वार्विक की काउंटेस से हुआ, परंतु इस भद्र महिला के सहवास में एडिसन को मानसिक सुख तथा शांति से हाथ धोना पड़ा। सन् 1718 से ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा; दमा तथा जलंधर रोगों के आक्रमण से उनका शरीर जर्जर हो गया और 17 जून, 1719 को 47 वर्ष की अवस्था में हालैंड हाउस में उनका देहावसान हो गया।
एडिसन शिष्ट, शंतिप्रिय तथा मितभाषी व्यक्ति थे, परंतु काफीहाउस की मित्रगोष्ठी में बातचीत तथा शराब के दौर के साथ हो उनकी जिह्वा में शक्ति तथा स्फूर्ति का संचार होता था और उनकी वाचालता तथा व्यंगात्मक प्रतिभा का बाँध टूट जाता था। साहित्य के इतिहास में उनका स्थान सफल निबंधकारों तथा समीक्षकों में आज तक अक्षुण्ण है। उनकी लेखनी ने आधुनिक गद्य को स्वस्थ्य तथा सबल बनाया और तत्कालीन पाठकों के हृदय में उपन्यास पढ़ने की रुचि का बीजारोपण किया। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पत्रिका 'स्पेक्टेटर' को समाजसुधार का माध्यम बनाया और अपने लेखों में हास्य तथा नैतिकता का सम्मिश्रण करके मध्यमवर्ग के बहुसंख्यक पाठकों के मानसिक, नैतिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक स्तर को उन्नत किया।
एडिसन समाज की प्रचलित कुरीतियों तथा फैशनपरस्त स्त्री पुरुषों के आडंबरों तथा विवेकहीन व्यवहारों पर तो निरंतर व्यंगप्रहार करते ही रहे परंतु साथ ही साथ उन्होंने मनुष्य के उन उदात्त गुणों का भी प्रशंसात्मक निरूपण किया जिनपर व्यक्ति तथा समाज की भित्ति स्थिर रहती है। इन्हीं लेखों में कतिपय साहित्य समीक्षा से भी संबंधित हैं, जिनमें मिल्टन के पैराडाइज़ लास्ट के अध्ययन तथा 'प्लेज़र ऑव इमैजिनेशन', 'ट्रू विट ऐंड फ़ाल्स विट' विशेष उल्लेखनीय हैं। उनकी गद्य शैली के संबंध में डा.जॉन्सन की प्रसिद्ध उक्ति स्मरणीय है 'जो व्यक्ति ऐसी गद्य शैली अपनाना चाहता है जो सरल होते हुए ग्रामीणता से अछूती हो और परिष्कृत होने पर भी आडंबर से दूर हो, उसे रात दिन एडिसन के लेखों का अध्ययन तथा अनुशीलन करना चाहिए।'[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.–जॉन्सन : द लाइव्ज़ ऑव् दि इंग्लिश पोयट्स; एडमंड गॉस : द हिस्ट्री ऑव दि एट्टींथ सेंचुरी लिट्ररेचर; मिंटो : द मैन्युअल ऑव इंग्लिश प्रोज़; ह्यू वाकर: इंग्लिश एसेज़ ऐंड एसेइस्ट्स।