जोहानेस एकहार्ट
जोहानेस एकहार्ट
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 208 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्रीकृष्ण सक्सेना |
एकहार्ट, जोहानेस जर्मन दार्शनिक। पाश्चात्य रहस्यवादियों में प्रथम। गोथा के पास हौचहीम नगर में एकहार्ट का जन्म हुआ था। पेरिस में उसने धर्म का अध्ययन किया और वहीं से 1302 ई. में मास्टर ऑव थियोलॉजी की उपाधि प्राप्त की। 1307ई. में उसकी नियुक्ति बोहेमिया के विकार जेनरल के पद पर हुई। उपदेश की प्रवीणता तथा अपने व्यावहारिक सुधारों के लिए एकहार्ट की विशेष ख्याति थी। 1311 ई. से उसने पेरिस में अध्यापन कार्य आरंभ किया परंतु 1314 में उसे स्ट्रैसबर्ग भेज दिया गया। वहाँ से उसे कोलोन भेजा गया जहाँ 1326 में वहाँ के आर्चबिशप ने उसके सिद्धांतों के कारण उसके विरुद्ध कार्रवाई की।
एकहार्ट को रहस्यवादी कहा गया है क्योंकि उसने अरस्तू तथा ऐक्विनस के सिद्धांतों को उसी रूप में प्रतिपादित करने का प्रयत्न किया। उसकी शैली कहीं कहीं पर बहुत ही अव्यवस्थित है और भाषा प्रतीकों में उलझी हुई है। उसकी विचारधारा में दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों का वर्णन मिलता है। एक तो ईश्वरीय सत्ता के विषय में और दूसरा जीव और ईश्वर के संबंध के विषय में। ईश्वर की सत्ता सर्वव्याप्त है। ईश्वर की सत्ता के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु का अस्तित्व स्वीकार नहीं किया जा सकता। संसार के प्रत्येक प्राणी का अस्तित्व ईश्वर की सत्ता पर ही आश्रित है। ईश्वर में किसी गुण या विशेषता की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि ऐसा करना उसे ससीम बनाना होगा।
एकहार्ट का विचार है कि यद्यपि ईश्वर प्रत्येक जीव में व्याप्त है, तथापि उसकी सबसे बड़ी अभिव्यक्ति मनुष्य में हुई है, जो सृष्टि का उच्चतम प्राणी है। मानव शरीर में स्थित जीवात्मा का अंतिम लक्ष्य परब्रह्म ईश्वर से एकता प्राप्त करना है। यह तादात्म्य आत्मज्ञान द्वारा ही संभव है जब जीव अपने शुद्ध स्वरूप को समझे और उसमें ईश्वर के अस्तित्व को पहचान ले।
टीका टिप्पणी और संदर्भ