ज्यामितिय ठोस

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ज्यामितिय ठोस
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 74-77
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक तिलेवर राय

ज्यामितीय ठोस से केवल कुछ विशेष प्रकार की ज्यामितीय संस्थितियाँ हो समझी जाती हैं। यूक्लिडीय त्रिमितीय (three dimentional) अवकाश (space) में बिंदुओं के एक कुलक (set) का ज्यामितीय संस्थितियाँ कहते हैं अन्यत्र बताया गया है कि उस अवकाश को, जिसमें किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की दूरी को समीकरण

य२ + र२ + ल२ = द२ [x2 + y2 + z2 = d2]

से व्यक्त किया जा सके, यूक्लिडीय अवकाश कहते हैं,

मू प२ = मू अ२ + अ ब२ + ब प२ [OP2 = OA2 + AB2 + BP2]

या द२ = य२ + र२ + ल२ [d2 = x2 + y2 + z2]

स्पष्ट है कि यूक्लिडीय अवकाश त्रिमितीय है।

उस ज्यामितीय संस्थिति को ज्यामितीय ठोस या केवल ठोस कहते हैं, जिसका प्रत्येक बिंदु एक ऐसे गोले (sphere) का केंद्र (centre) है, जिसका अंतरंग केवल उसी संस्थिति के बिंदुओं से बना है। संस्थिति के उस बिंदु को जिसको केंद्र मानकर खींचे गए गोले का अंतरंग उस संस्थिति के बिंदुओं के अतिरिक्त कुछ ऐसे बिंदुओं से भी बना हो, जो उस संस्थिति से अलग हैं, परिसीमा बिंदु (boundary point) कहते हैं। इन्हीं परिसीमा बिंदुओं के कुलक को संस्थिति की परिसीमा अथवा ठोस का पृष्ठ (surface) कहते हैं। इस प्रकार परिभाषित परिसीमा और पूर्वपरिभाषित गोले के अंतरंग से बनी हुई किसी भी संस्थिति को ठोस कहते हैं। कुछ ठोस सरल होते हैं, जैसे गोला (sphere), घन (cube), सूचीस्तंभ (pyramid), दीर्घवृत्तज (ellispsoid) आदि; परंतु कुछ ठोस इतने सरल नहीं होते, जैसे वृत्तजवलय (torus) और लंगर (anchor) आदि।

उपर्युक्त सभी ठोसों की सभी परिसीमाएँ बंद पृष्ठ हैं। इन परिसीमाओं के वर्गीकरण से ठोसों का वर्गीकरण (classification) स्वत: ही हो जाता है। बहुफलक (polyhedron) ऐसे ठोस हैं जिनकी आकृतियाँ (shapes) सीमा में (in the limit) किसी भी ठोस की आकृति का निकटतम रूप धारण कर सकती हैं। इसलिये ठोसों के वर्गीकरण के लिये बहुफलकों की परिसीमाओं के लक्षणों (characteristics) का अध्ययन करना आवश्यक है। इसके पूर्व कुछ पदों (terms) की परिभाषाएँ देना भी आवश्यक है।

परिभाषा

किसी ऋजु रेखा के उन बिंदुओं के कुलक को खंड (segment) कहते हैं, जो उसी रेखा के दो बिंदुओं के बीच स्थित हैं। इन दो बिंदुओं को खंड के दो सिरे (ends) कहते हैं।

इन बिंदुओं और खंडों के सीमित कुलक को सरल बहुभुज (simple polygon) कहते हैं, यदि (क) इस कुलक का प्रत्येक बिंदु खंडों के कुलक में से दो और केवल दो खंडों का सिरा हैं, (ख) खंडों के कुलक में से प्रत्येक खंड के सिरे इस कुलक के बिंदु हैं, (ग) इस कुलक के किन्हीं दो अवयवों (बिंदु और खंड) में कोई गुण (property) उभयनिष्ठ नहीं है और (घ) बिंदुओं तथा खंडों के कुलक को कोई उपकुलक (sub-set) प्रतिबंधों (क), (ख) और (ग) को संतुष्ट नहीं करता। इस कुलक के बिंदुओं तथा खंडों को क्रमश: बहुभुज के शीर्ष (vertices) और भुजाएँ (sides) कहते हैं।

यूक्लिडीय समतल ज्यामिति का एक प्रसिद्ध प्रमेय (theorem) है कि किसी समतल (plane) में स्थित प्रत्येक सरल बहुमुख सीमित क्षेत्र के उस अद्वितीय संबद्धप्रदेश (connected region) की समतलीय परिसीमा है, जो समतल में अंतर्विष्ट (contained) है। उस समतल प्रदेश को, जो एक सरल बहुभुज द्वारा इस प्रकार निर्धारित होता है, बहुभुज प्रदेश कहते हैं।

बिंदुओं, खंडों और बहुभुज प्रदेशों के एक सीमित कुलक को बहुफलक (polyhedron) कहते हैं, यदि और केवल यदि (क) इस कुलक का प्रत्येक खंड इसी कुलक के दो और केवल दो बहुभुज प्रदेशों की परिसीमा है और उस कुलक के प्रत्येक बहुभुज प्रदेश की परिसीमा की प्रत्येक भुजा इसी कुलक का खंड है, (ख) इस कुलक का प्रत्येक बिंदु इस कुलक के कम से कम एक खंड का सिरा है और इस कुलक के किसी खंड के सिरे इसी कुलक के बिंदु हैं, (ग) यदि इस कुलक का कोई एक बिंदु व है और इसी कुलक के उन बहुभुज प्रदेशों का कुलक (यूनानी अक्षर 'सिगमा') है, जिनका शीर्ष व है, तब खंडों के कुलक में से प्रत्येक खंड जिसका सिरा व है, कुलक के बहुभुज प्रदेशों में से दो प्रदेशों में से दो प्रदेशों की परिसीमाओं की भुजा है और कुलक के उपकुलक में ये लक्षण नहीं पाए जाते, (घ) इस कुलक के किन्हीं दो अवयवों (बिंदु, खंड या बहुभुज प्रदेश) में कोई उभयनिष्ठ गुण नहीं होता और (ङ) बिंदुओं, खंडों और बहुभुज प्रदेशों के इस कुलक का कोई ऐसा उपकुलक नहीं है जो प्रतिबंधों (क), (ख), (ग) और (घ) को संतुष्ट करे।

बहुफलक के गुणधर्मों (properties) का अध्ययन करने के लिये यह आवश्यक है कि उन गुणधर्मों का मापीय (metrical), अथवा अमापीय (nonmetrical) गुणधर्मों में वर्गीकरण किया जाए। मापीय गुणधर्म ठोसों की आकृतियों तथा आकारों (sizes) की माप बताते हैं और उनके अमापीय गुणधर्मों से यह ज्ञात होता है कि ठोसों के विभिन्न अवयव एक दूसरे के साथ किस प्रकार से संबद्ध हैं।

अमापीय गुणधर्म

बहुफलक की जाति

उस बहुफलक को जो परिपथों (circuits) के किसी कुलक के किन्हीं प (p) परिपथों के अनुदिश काटने पर असंबद्ध नहीं किया जा सकता परंतु जो किन्हीं प+1(P+1) परिपथों के अनुदिश काटने से असंबद्ध हो जाता है, प (p) जाति का बहुफलक कहते हैं। यह दिखाया जा सकता है कि घन, चतुष्फलक (tetrahedron), अष्टफलक (octahedron) और अन्य सामान्य बहुफलकों की जाति शून्य (zero) है। यदि किसी बहुफलक की जाति प (p) है और इसके शीर्षों, कोरों (edges) और फलकों (Faces) की संख्याएँ क्रम से श (v), क (e) और फ (f) हैं, तो ठोस ज्यामिति के एक प्रमुख प्रमेय के अनुसार

श - क + फ = २ - २ प [v - e + f = 2 - 2 p] ...............(1)

और घन आदि शून्य जाति के बहुफलकों से संबंधित इसके संगत प्रमेय के अनुसार श - क + फ = २ - २ [v - e + f = 2] ...............(2)

संख्या श - क + फ [v - e + f] को बहुफलक का लक्षण (characteristic) कहते हैं।

बहुफलक के लक्षण को बहुफलक को संबद्ध करनेवाली संख्या (connectivity number) कहते हैं। यूक्लिडीय त्रिमितीय अवकाश में बहुफलक के लिये यह संबद्ध करनेवाली संख्या धनात्मक स है या शून्य है।

बहुफलक के वर्ग

बहुफलक दो प्रकार के होते हैं:

  1. दिग्वलनीय (orientable)
  2. अदिग्वलनीय (non-orientable).

उन बहुफलकों को, जो एक विशेष अवकाश (यूक्लिडीय) में केवल बिंदुओं, खंडों और बहुभुज प्रदेशों के कुलक माने जाते हैं और जो उपर्युक्त बहुफलक की परिभाषा के अनुसार संपात (incidence) तथा क्रमबद्धता (order) के कुछ नियमों का अनुसरण करते हैं, दिग्वलनीय कहते हैं। जैसा ऊपर बताया गया है, इन बहुफलकों को संबद्ध करनेवाली संख्या धनात्मक (positive) सम (even), या शून्य है। उन बहुफलकों को, जो किसी विशेष अवकाश में बिंदुओं के कुलक नहीं हैं, अदिग्वलनीय कहते हैं। यह दिखाया जा सकता है कि अदिग्वलनीय बहुफलकों को संबद्ध करनेवाली संख्या (connectivity number) कोई धनात्मक पूर्णांक (positive integer) या शून्य है। इस वर्ग के बहुफलकों का गुणधर्म यह है कि इसके पृष्ठ पर कम से कम एक ऐसा बहुभुज है जो उस प्रदेश को, जो बहुफलक पर है जिसमें वह बहुभुज अंतर्विष्ट है, असंबद्ध नहीं कर सकता। अदिग्वलनीय बहुफलकों पर निम्नलिखित समीकरण लागू होता है :

श - क + फ = २ - २ प [v - e + f = 2 - 2 p].

तथा दिग्वलनीय बहुफलकों पर समीकरण (१) और (२) लागू हैं।

बहुफलकों का वर्गीकरण

जाति के अनुसार बहुफलकों का वर्गीकरण करना सरल नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से वर्गीकरण संबंधी अधिक परिष्कृत प्रश्न उठ खड़े होते हैं। वर्गीकरण का उद्देश्य केवल यह होना चाहिए कि इससे प्रत्येक वर्ग का वर्णन इस प्रकार जाए कि केवल एक ही वर्ग के दो बहुफलक, न कि दो विभिन्न वर्गों के दो बहुफलक, तुल्यरूपी (isomorphic) हों। यह सत्य है कि एक ही वर्ग के बहुफलक एक ही जाति के होते हैं, परंतु साथ ही यह भी सत्य है कि एक ही जाति के बहुफलक एक ही वर्ग के नहीं होते। इस प्रकार के वर्गीकरण द्वारा प्राप्त प्रत्येक वर्ग (class) को प्रकार (type) कहते हैं।

यह मानकर कि फ (f) फलक और श (v) शीर्ष (vertices) वाले बहुफलकों के सभी प्रकारों का ज्ञान है, फ+१ (१+१) फलक और श+१ (v+१) शीर्षवाले बहुफलकों के सभी प्रकारों को निर्धारित करने के प्रश्न पर आधारित वर्गीकरण की विधि अधिक व्यापक (general) तथा लाभप्रद (useful) है। उदाहरण स्वरूप फ (f) फलकवाले किसी उत्तल (convex) बहुफलक के उन सब बहुफलकों को, जो किसी एक ही शीर्ष पर मिलते हैं, एक समतल से काटने पर फ+१ (f+१) फलकवाले उत्तल बहुफलक प्राप्त होते हैं। एक विशेष प्रकार के ऐसे बहुफलक होते हैं, जिनके प्रत्येक शीर्ष पर तीन और केवल तीन ही कोरें मिलती है। इस प्रकार के बहुफलकों के कोनों को काटने की प्रक्रिया से उसी विशेष प्रकार के बहुफलक प्राप्त होते हैं। यदि फ (f) फलकवाले ऐसे बहुफलकों के प्रकारों की संख्या (f) द्वारा निरूपित होती है, जिनके शीर्षों पर तीन और केवल तीन ही कोरें मिलती है, तो

y (४) = १, y (५) = १, y (६) = २, y (७) = ५,

y (८) = १४, y (९) = ५०, y (१०) = २३३,

समान रूप से संबद्ध उत्तल बहुफलक

उस बहुफलक को समान रूप से संबद्ध (regularly connected) कहते हैं, जिसके शीर्षों की प्रत्येक जोड़ी, जिनपर इसके दो बहुफलक मिलते हैं, उस बहुफलक के एक ऐसे कोर का सिरा है, जिससे वे दोनों फलक भी मिलते हैं। समान रूप से संबद्ध बहुफलक अपने शीर्षों तथा फलकों के संपाती संबंधों (incidence relations) द्वारा पूर्णरूपेण निर्धारित होता है। साथ ही यदि किसी समान रूप से संबद्ध बहुफलक के किसी एक फलक की परिसीमा हटा दी जाए, तो शेष शीर्षों तथा फलकों का कुलक संबद्ध हो रहेगा; परतु इसका विलोम सत्य नहीं है। समान रूप से संबद्ध बहुफलकों का एक विशेष प्रकार है, जिसको शून्यजाति का बहुफलक कहते हैं। इन विशेष प्रकार के समान रूप से संबद्ध बहुफलकों को उत्तल का सजातीय (convex-like) कहते हैं, क्योंकि ये अपने अवयवों के संपाती संबंधों में उत्तल बहुफलक से भिन्न नहीं हैं। इनसे संबंधित एक प्रसिद्ध प्रमेय है कि उपर्युक्त कथनानुसार प्रत्येक उत्तलक सजातीय (convex-like) बहुफलक किसी चतुष्फलक के अवयवों के सरल प्रतिस्थापन (simple replacement) द्वारा व्युत्पन्न किया जा सकता है।

चूँकि समान रूप से संबद्ध बहुफलक की कम से कम तीन कोरें इसके प्रत्येक शीर्ष तथा प्रत्येक फलक से मिलती हैं, इसलिये जब कुलक शून्य जाति का है

२श £ २क (2v £ 2e) और २फ £ २क (2f £ 2e)

तथा श-क + फ = २ (v-e + f = 2)

जहाँ श (v), क (e) और फ (f) क्रमश: बहुफलक के शीर्षों, कोरों और फलकों की संख्या निरूपित करते हैं।

पिछली समानता से स्पष्ट है कि प्रत्येक उत्तल बहुफलक में कम से कम एक ऐसा फलक है जो ३, ४ या ५ भुजाओं के बहुभुज से घिरा है और कम से कम एक ऐसा शीर्ष है जहाँ ३, ४ या ५ कोरें मिलती हैं तथा जिसका एक फलक त्रिभुजाकार है, या जिसके एक शीर्ष पर केवल तीन ही कोरें मिलती हैं। एक ऐसे बहुफलक, और विशेष स्थिति में उत्तल बहुफलक, का अस्तित्व है, जिसकी कोरों की संख्या ७ (सात) को छोड़कर ५ या ५ से अधिक कोई पूर्णांक संख्या है। ऐसा कोई बहुफलक नहीं है जिसकी कोरों की संख्या सात हो।

मापीय गुणघर्म

बहुफलक के ये गुणधर्म इनके आकार और आकृति पर आधारित हैं। इन गुणधर्मों में से प्रमुख अनुरूपता (congruence) है। यदि दो उत्तल बहुफलक इस प्रकार तुल्यरूपी हों कि उनके संगत फलक अनुरूप हों तो व्यापक अर्थ में बहुफलक अनुरूप होंगे। यह प्रमेय उन बहुफलकों के लिय सत्य नहीं है, जो उत्तल नहीं है।

सम तथा अर्ध सम बहुफलक

बहुफलकों की अनुरूपता से किसी ऐसे बहुफलक के अध्ययन की ओर संकेत मिलता है, जिसके अवयव अनुरूपता के नियमों को संतुष्ट करते हैं। कोई भी बहुफलक समबहुफलक है, यदि और केवल तभी, जब इसके प्रत्येक फलक की परिसीमित करनेवाले बहुभुज के अनुरूप है और इसका प्रत्येक बहुतल कोण (polyhedral angle) सम (regular) है, अर्थात्‌ इसके फलक कोण अन्य फलक कोणों के और द्वितल कोण (dihedral angles) अन्य द्वितल कोणों के अनुरूप हैं। सम बहुफलक केवल पाँच प्रकार के हैं।

सम बहुफलक के व्यापीकरण को आरकिमिडीय बहुफलक (Archimedian polyhedra) कहते हैं। आरकिमिडीय बहुफलक के सभी फलक समबहुभुज द्वारा परिसीमित हैं, परंतु सभी बहुभुज परस्पर अनुरूप नहीं हैं। इनके बहुतल कोण उत्तल तथा परस्पर अनुरूप होते हैं। धर्मसम समपार्श्व ओर समपार्श्वाभ (prismoids) का छोड़कर आर्किमिडीय बहुफलक १३ प्रकार के होते हैं।

समपार्श्व ऐसा बहुफलक है जिसके दो फलक, जिनको आधार कहते हैं, परस्पर समांतर होते हैं और जिसके अन्य फलक समांतर चतुर्भुजों द्वारा परिसीमित होते हैं तथा एक दूसरे के साथ संलग्न होते हैं।


सम तथा अर्धसम बहुफलकों की न्यास संबंधी सारणी
फलक फ (f) शीर्ष श (v) कोर क (e) m m1 m2 n n1 n2 s s1 s2
सम बहुफलक चतुष्फलक (Tetrahedron) 4 4 6 3 4 3
घन (Cube) 6 8 12 4 6 3
अष्टफलक (Octahedron) 8 6 12 3 8 4
द्वादश फलक (Dodecahedron) 12 20 30 5 12 4
आर्किमीडीय बहुफलक (Archemedian Polyhedra) तिर्यक्छिन्न चतुष्फलक (Truncated tetrahedron) 8 12 18 3 4 1 6 4 2
तिर्यक्छिन्न घन (Truncated cube) 14 24 36 8 8 1 8 6 2
तिर्यक्छिन्न द्वादश फलक (Truncated dodecahedron) 32 60 90 3 20 1 10 12 2
तिर्यक्छिन्न विंशति फलक (Truncated icosahedron) 32 60 90 5 12 1 6 20 2
अर्धसम समपार्श्व (Semi-regular prism) n+2 2n 3n 4 n 2 n 2 1
घन अष्टक फलक (Cuboctahedron) 14 12 24 3 8 2 4 6 2
लघुसम चतुर्भुजीय घन अष्टक फलक (Small rhomicuboctahedron) 26 24 48 3 8 1 4 18 3
द्वात्रिंशति फलक (Icosidodecahedron) 32 30 60 3 20 2 5 12 2
अर्ध-सम समपार्श्वाभ (Semi-regular prismoid) 2n+2 2n 4n 3 2n 3 n 2 1
स्नब घन (Snub cube) 38 24 60 3 32 4 4 6 1
स्नब द्वादश फलक (Snub dodecahedron) 92 60 150 3 80 4 5 12 1
दीर्घ समचतुर्भुजीय घन अष्टक फलक (Great rhombicuboctahedron) 26 48 72 4 12 1 6 8 1 8 6 1
लघु समचतुर्भुजीय द्वात्रिंशति फलक (Small rhombicosidodecahedron) 62 60 120 3 20 1 4 30 2 5 12 1
दीर्घ समचतुर्भुजीय द्वात्रिशति फलक (Great rhomicosidodecahedron) 62 120 180 4 30 1 1 6 20 10 12 1

फलकों में से m1 फलक m भुजाओं के बहुभुज द्वारा परिसीमित हैं। प्रत्येक शीर्ष पर m1 फलकों में से m2 फलक मिलते हैं। इसी प्रकार n, n1 n2 s, s1 और s2 की स्थिति हैं। स्पष्ट है कि f = m1 + n1 + s1

टीका टिप्पणी और संदर्भ