टामस क्रेनमर
टामस क्रेनमर
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 220 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | त्रिलोचन र्पेत |
टामस क्रेनमर (1489-1556 ई.)। इंग्लैंड के आर्चबिशप (प्रधान धर्माधिकारी)। नाटिंघमशायर के ऐसलैक्टन नगर में एक साधारण परिवार में 2 जुलाई, 1498 को जन्म। 14 वर्ष की आयु में केंब्रिज के जीसस कॉलेज में प्रवेश किया और वहाँ धर्मशास्त्र, यूनानी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया। 1523 ई. में धर्माचार्य के रूप में उनका दीक्षा संस्कार हुआ। पाँच वर्ष तक उन्होंने केब्रिज में ही धर्मशास्त्र के अध्ययन के पद कार्य किया। 1528 में नगर में महामारी के प्रकोप के कारण अन्यत्र चले गए। इस बीच उनका इंग्लैंड के राजा हेनरी अष्टम के कमिश्नरों से सपंर्क हुआ जो राजम हिषी कैथरीन के विवाह-संबंध-विच्छेद के प्रश्न पर विचार कर रहे थे। क्रेनमर ने यह व्यक्त किया कि दैवी विधान के प्रतिकूल होने के कारण बड़े भाई की विधवा के साथ विवाह संबंध अवैध है और इस मामले पर इंग्लैंड का धर्मन्यायालय निर्णय दे सकता है; विश्वविद्यालयों का मत भी इस संबंध में प्राप्त किया जा सकता है, पोप क ा निर्णय आवश्यक नहीं हैं। राजा ने उसने इस विषय पर निबंध लिखने और शास्त्रवचनों, धर्माचार्यों के विचारों तथा धर्मसभा (कौसिल) के निर्णयों से अपने मत की पुष्टि करने को कहा। क्रेनमर ने अविलंब यह निबंध तैयारकर राजा के पास भेज दिया। राजा उसकी विद्वत्तापूर्ण रचना से संतुष्ट हुआ। उसको टौंटन का आर्चडिकन और अपना पुरोहित नियुक्त किया और अपने मत के प्रतिपादन के लिये आक्सफ़र्ड और केंब्रिज विश्वविद्यालयों के विद्वानों को भी भेजा। किंतु राजा संबंधविच्छेद का निर्णय पोप से ही चाहता था। उसने 1530 ई. में क्रेनमर को अपने कानूनी सलाहकार के रूप में पोप के पास रोम और 1531 ई. में राजदूत नियुक्तकर राजमहिषी के भतीजे सम्राट् चार्ल्स पंचम के पास जर्मनी भेजा। वह उनसे तो संबंधविच्छेद की स्वीकृति प्राप्त करने में सफल नहीं हुआ पर इटली और जर्मनी के कई धर्माचार्यों ने उनके मत की पुष्टि की। जर्मनी में क्रेनमर ने प्रसिद्ध धर्मसुधारक ओसिंडर की भतीजी मार्गरेट ऐन से गुप्तविवाह कर लिया। उसका यह कार्य तात्कालीन धर्मव्यवस्था के अनुकूल न था। स्वदेश लौटने पर वह दंड पा सकता था। हेनरी को शीघ्रातिशीघ्र संबंधविच्छेद के पक्ष में निर्णय की आवयश्कता थी और इस कार्य के लिये क्रेनमर एक उपयुक्त साधन था। अत: हेनरी ने उसको इंग्लैंड का आर्चविशप (प्रधान धर्माधिकारी) नियुक्त कर दिया। क्रेनमर ने 20 मार्च, 1533 ई. को यह नया पदभार ग्रहण किया और शीघ्र ही यॉर्क तथा कैंटरबरी की धर्मपरिषदों का आयोजनकर उनसे हेनरी और कैथरीन के विवाह की वैधता पर पोप के निर्णय का खंडन करा दिया। 1536 और 1540 ई. में भी राजा के विवाह-संबंधविच्छेद का निर्णय क्रेनमर ने तो दिया ही था; इंग्लैंड की धर्मव्यवस्था से पोप के निष्कासन और उसके स्थान पर देश के राजा को धर्मव्यवस्था के परम प्रमुख का पद दिलाने के 1534 ई. के सर्वशक्तिमत्ता का कानून (ऐक्ट ऑव सुप्रिमेसी) बनवाने में भी प्रमुख रूप से प्रेरक और सहायक रहा।
क्रेनमर धर्मसुधार के तत्कालीन विचारों से प्रभावित था। पोप की सर्वशक्तिमत्ता के खंडन और धर्मग्रंथों के देशी भाषाओं में अनुवाद के प्रश्न पर वह यूरोप के धर्मसुधारकों से सहमत था। राजा से उसने यह आज्ञा प्राप्त की कि देशभाषा में लिखी बाइबिल की एक प्रति प्रत्येक गिरजाघर में उपयुक्त स्थान पर पठनार्थ रखी रहे और स्वयं अंग्रेजी में बाइबिल का नया अनुवाद किया। यह महान बाइबिल 1540 में देशवासियों को उपलब्ध हो गई। क्रेनमर के अनुवाद में धर्मसुधार की प्रवृत्ति की स्पष्ट आभास था। 1540 और 1545 ई. के बीच क्रेनमर उपासना आदि धर्म संबंधी पुस्तकों के संशोधित संस्करण तैयार और प्रकाशित कराने मेंं व्यस्त रहे।
हेनरी की मृत्यु के बाद क्रेनमर ने 1547 ई. में उसके उत्ताराधिकारी एडवर्ड छठें का राज्यभिषेक कराया। धर्मव्यवस्था के सुधार कार्य में राज्य के दोनों संरक्षकों समरसेट और नार्थंबरलैंड का उसने साथ दिया। हेनरी के समय और उससे पूर्व के सुधारबाधक कानूनों की समाप्ति दोनों नई प्रार्थनापुस्तकों और धर्मव्यवस्था संबंधी 42 नियमों (फ़ाट्टी टू आर्टिकिल्स) की रचना तथा कानून द्वारा उन्हें कार्यान्वित कराने में क्रेनमर सहायक बने। 1547 ई. में जो धर्मोपदेश प्रकाशित हुए, उनमें मुक्ति, श्रद्धा, शुभकर्म और स्वाध्याय संबंधी उपदेश उसने स्वयं लिखे थे। जर्मन भाषा में उपलब्ध धर्म प्रश्नोत्तरी का अंग्रेजी में अनुवाद कर उसने उस पुस्त्क को अगले वर्ष ही सर्वसाधारण के लिये सुलभ कर दिया था। 1550 ई. में उसने कैथोलिक धर्म के पदार्थपरिवर्तन संबंधी प्रमुख सिद्धांत का खंडन किया; ऑक्सफ़र्ड में एक कमीशन के समक्ष कहा कि यदि ईसा के जन्म के हजार वर्ष की अवधि तक के किसी भी धर्माचार्य के कथन से यह सिद्ध किया जा सके कि ‘पदार्थपरिवर्तन’ के संस्कार से सचमुच ही ईसा के शरीर का आविर्भाव होता हैं तो मैं अपना मत त्याग दूँगा।
हेनरी अष्टम की मृत्यु के बाद रानी मेरी ने क्रेनमर को पदच्युत कर दिया और उसपर राजद्रोह का अभियोग लगाया। मेरी को उत्तराधिकार से वंचित करने की एडवर्ड छठें के समय के सभी धर्म, नियम और कानून समाप्त करा दिए तथा पून: कैथालिक धर्म की देश में स्थापना की और पोप को इंग्लैंड की धर्मव्यवस्था का परम प्रमुख मान लिया। धर्मव्यवस्था के परिवर्तन करने की पार्लमेंट और राज्याधिपति का अधिकार क्रेनमर मानता था। कैथालिक धर्म की पुन: स्थापना पार्लमेंट के कानून से हुई थी। अत: क्रेनमर को विवश होकर यह व्यवस्था माननी पड़ी। उसने अपने पूर्वविचारों का खंडन भी किया, किंतु रानी ने उसे क्षमा नहीं किया। उसको जीवित जला देने का दंड दिया गया। जब उसके अग्निप्रवेश का अवसर आया तो दुर्बलता के क्षणों में किए अपने खंडनों को मानने से उसने इनकार किया और जिस हाथ से खंडन की बात लिखी थी, सबसे पहले उसको ही एकत्र समुदाय के समक्ष सहर्ष अग्नि को सौंप दिया। यह घटना 21 मार्च, 1556 ई. को ऑक्सफ़र्ड में घटी। क्रेनमर मरकर भी अमर हो गया। इस वीरतापूर्ण बलिदान ने प्रोटस्टैंट धर्म की नींव को दृढ़ किया। मेरी के बाद ही एलिजाबेथ प्रथम के शासन के दूसरे ही वर्ष 1559 ई. में प्रोटस्टैंट सिद्धांतों पर आधारित ऐंग्लिकन धर्मव्यवस्था को इंग्लैंड ने अपना लिया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ