टी. एस. इलियट

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लेख सूचना
टी. एस. इलियट
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 541
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डॉ. प्रमोदकुमार सक्सेना

इलियट, टी.एस. 1948 के नोबेल-पुरस्कार-विजेता टी.एस. इलियट (188-1965) आधुनिक युग की महानतम साहित्यिक विभूतियों में से हैं। 26 वर्ष की आयु में आप अपनी मातृभूमि अमरीका छोड़कर इंग्लैंड में बस गए और 1927 में ब्रिटिश नागरिक बन गए। आपने नाटक, कविता और आलोचना तीनों क्षेत्रों में महान्‌ ख्याति प्राप्त की है तथा आधुनिक युग के प्राय: सभी प्रसद्धि लेखकों को प्रभावित किया है। वे स्वयं डन, एज़रा पाउंड तथा फ्रांसीसी प्रतीकवादी कवि लॉफोर्ज़ द्वारा सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

यद्यपि आपका पहला काव्यसंग्रह 'प्रफ्रूॉक ऐंड अदर आब्जॅरवेशंस' 1917 में प्रकाशित हुआ, तथापि आपको वास्तविक ख्याति 'द वेस्टलैंड' (1922) द्वारा प्राप्त हुई। मुक्त छंद में लिखे तथा विभिन्न साहित्यिक संदर्भो एवं उद्धरणों से पूर्ण इस काव्य में समाज की तत्कालीन परिस्थिति का अत्यंत नैराश्यपूर्ण चित्र खींचा गया है। इसमें कवि ने जान बूझकर अनाकर्षक एवं कुरूप उपमानों का प्रयोग किया है जिससे वह पाठकों की भावना को ठेस पहुँचाकर उन्हें समाज की वास्तविक दशा का ज्ञान करा सके। उसके मत में संसार एक 'मरूभूमि' है-आध्यात्मिक दृष्टि से अनुर्वर तथा भौतिक दृष्टि से अस्त व्यस्त। इसके बाद की रचनाओं में हमें एक दूसरा ही दृष्टिकोण मिलता है जो धार्मिकता की भावना से पूर्ण है और जिसका चरम विकास 'ऐश वेन्सडे' (1930) और 'फ़ोर क्वार्टेट्स' (1944) में हुआ।

आलोचना के क्षेत्र में आपका सबसे महत्वपूर्ण कार्य 17वीं शताब्दी के लेखकों, विशेषकर डन तथा ड्राइडेन की खोई हुई प्रतिष्ठा का पुन: संस्थापन तथा मिल्टन एवं शेली की भर्त्सना करना रहा है। दांते की भी आपने नई व्याख्या की हैं। वैसे तो आपने कई सौ आलोचनाएँ लिखी हैं, परंतु 'द सैक्रेड वुड'(1920), 'द यूस ऑव पोएट्री ऐंड द यूस ऑव क्रिटिसिज्म' (1933) तथा 'आन पोएट्री ऐंड पोएट्स' (1957) विशेष उल्लेखनीय हैं।

आपने अभी तक निम्नलिखित पाँच नाटकों की रचना की है: 'मर्डर इन द कैथीड्रल' (1935), 'फैमिली रियूनियन' (1939), 'द काकटेल पार्टी' (1950), 'द कान्फ़िडेंशल क्लाक' (1955), 'द एल्डर स्टेट्समैन' (1958)। ये सभी पद्य में लिखे गए हैं एवं रंगमचं पर लोकप्रिय हुए हैं। 'मर्डर इन द कैथीड्रल' पर फ़िल्म भी बन चुकी है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ