ट्रिनिडैड

अद्‌भुत भारत की खोज
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ट्रिनिडैड द्वीप की स्थिति 10° 3¢ से 10° 5¢ उत्तरी अक्षांश तथा 60° 50¢ से 61° 56¢ पूर्वी देशांतर है। यह ब्रिटिश पश्चिमी द्वीपसमूह का सबसे बड़ा द्वीप है। ऐटलैंटिक महासागर में बेनिज्वीला के उत्तरी-पूर्वी तट से 26.6 किमी. दूर सुदूर दक्षिण में स्थित है। विश्वास किया जाता है कि प्राचीन काल में वह दक्षिणी अमरीका का एक भाग रहा होगा।

खाद्यान्न व निवासी

द्वीप की आकृति वर्गाकार तथा क्षेत्रफल 48,46,04 वर्ग किमी. है जिसके उत्तरी-पश्चिमी तथा दक्षिणी-पश्चिमी कोने में दो प्रायद्वीप हैं। उत्तर तथा दक्षिण में एक द्वीप के मध्य में पर्वतीय श्रृंखलाएँ पूर्व से पश्चिम द्वीप के आर पार फैली हुई हैं। एरिपो पर्वत उत्तर-पूर्व में है जिसकी ऊँचाई 973 मीटर है। यहाँ अनेक तेज तथा छोटी धाराएँ हैं। जलवायु गर्म तथा तर है। औसत ताप 25 डिग्री सें० है। अधिकांश वर्षा जून से दिसंबर तक होती है। अधिकांश भूक्षेत्र जंगलों से ढका हुआ है। खाद्यान्नों के अतिरिक्त कहवा, ईख, केला तथा अन्य गरम और तर जलवायु के फल प्रचुर मात्रा में पैदा होते हैं। यूरोपीय निवासियों में अंग्रेज, फ्रांसीसी, पुर्तगाली तथा स्पेनी मुख्य हैं। आदिवासियों में अफ्रीकी जाति के लोग हैं।

निर्यात की वस्तुएँ

दक्षिण-पश्चिम में स्थित पिच झील से हजारों टन डामर निकाला जाता है। खनिज तेल, चीनी, कहवा, शराब, तथा डामर निर्यात की मुख्य वस्तुएँ हैं। द्वीप में 188.8 किमी. लंबी रेलवे तथा 3742.4 किमी. लंबी सड़कें हैं। यहाँ की राजधानी तथा मुख्य बंदरगाह पोर्टस्पैन है। दूसरा मुख्य नगर तथा बंदरगाह सेन फनरैंडो है। अंग्रेजी अधिकांश लोगों की भाषा है।

इतिहास

1498 की जुलाई में महान नाविक कोलंबस ने ट्रिनिडैड की खोज की। यह नाम भी उसी का दिया हुआ है। 1552 तक यह द्वीप उपेक्षित रहा और स्पेनवालों ने इस पर अधिकार करने की रुचि नहीं दिखाई। इसके बाद धीरे धीरे स्पेन वाले यहाँ आए लेकिन स्थानीय 'इंडियनों' तथा अन्य यूरोपियनों में हुए संघर्ष ने यूरोपियनों का बसना कठिन कर दिया। कुछ दिनों तक यह द्वीप स्पेनी व्यापारियों का केंद्र रहा। दास व्यापार ने जन्म लिया। फिर भी स्पेन के अन्य लोग वहाँ जाने में रुचि नहीं लेते थे। 1783 में स्पेन की सरकार ने अन्य राष्ट्रों के लोगों को बसने की अनुमति दे दी। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत से लोग, विशेषतया फ्रांसीसी, वहाँ पहुँचे और द्वीप नाममात्र को स्पेन का रह गया। 1802 में ट्रिनिडैड अंग्रेजों के अधिकार में आ गया और स्वतंत्र होने तक (31 अगस्त, 1962 तक) वे ही उसके अधिकारी बने रहे।

सांस्कृतिक भिन्नता

ट्रिनिडैड में नीग्रो और भारतीयों ने आर्थिक मामलों में एक दूसरे पर आश्रित होते हुए भी अपनी सांस्कृतिक भिन्नता को नहीं मिटने दिया है। अंतर्विवाहों की संख्या नगण्य है। यह सांस्कृतिक और जातीय अंतर राजनीति में भी भूमिका अदा करता है। नीग्रो प्राय: नगरों में तथा ट्रिनिडौड के उत्तरी, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी स्थानों पर, जहाँ कृषि के लिये अच्छी सुविधाएँ नहीं हैं, बसे हुए हैं। भारतीय अच्छी कृषियोग्य भूमि में बसे हुए हैं, और नीग्रो लोगों की अपेक्षा व्यापार, उद्योग आदि में अधिक संपन्न हैं।

दासप्रथा की समाप्ति

स्नेनी राज्य के काल से 19वीं शताब्दी तक चीन ही यहाँ का मुख्य उत्पादन रहा। 1834 में दासप्रथा के समाप्त होने के कारण श्रमशक्ति का अभाव हो गया। इसके लिये लगभग 1 लाख 50 हजार भारतीयों को बसाया गया। 19वीं शताब्दी के अंत तक कोको का उत्पादन अधिक बढ़ा और उसका निर्यात चीनी से भी अधिक होने लगा। 1910 में दक्षिण ट्रिनिडैड में पेट्रोल प्राप्त हुआ। उस समय से आज तक ट्रिनिडैड की अर्थव्यवस्था में उसका महत्वपूर्ण स्थान है।

अंग्रेज़ों का अधिकार

समीपस्थ द्वीप टोबैगो में सबसे पहले अंग्रेज 1616 में बसने के लिए पहुँचे, किंतु वहाँ के 'इंडियनों' ने उन्हें वहाँ नहीं रहने दिया। अगले 200 वर्षों तक वहाँ अनेक जगहों से लोग आते जाते रहे। अंततोगत्वा 1814 में वहाँ अंग्रेजों का अधिकार हो गया, जो लगभग 150 वर्ष तक बना रहा। इस समय तक टोबैगो पृथक्‌ उपनिवेश के रूप में शासित था, 1888 में ट्रिनिडैड के साथ इसे मिला दिया गया। दोनों साथ ही साथ एक राष्ट्र के रूप में स्वतंत्र हुए।

टीका टिप्पणी और संदर्भ