ट्रैंसकॉकेशा
ट्रैंसकॉकेशा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 195 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | काशीनाथ सिंह |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
ट्रैंसकॉकेशा सोवियत संघ के दक्षिण-पश्चिम में फैले हुए कॉकेशा क्षेत्र का वह भाग जो काले सागर से कैस्पियन सागर को संबंद्ध करने वाले कॉकेशा पर्वत के दक्षिण में स्थित है और जिसमें अब तीन सोवियत गणराज्य-जार्जिआ, आर्मीनिया तथा अजरर्बिजान-सम्मिलित हैं।
भौगोलिक क्षेत्रफल
भौगोलिक दृष्टि से रूसी क्रांति (1917) के पहले कूवान तथा टेरेक के स्टेपीज राज्यों एवं स्टाव्रोपोल के स्टेप सरकार को छोड़कर रूसी कॉकेशा के संपूर्ण क्षेत्रों एवं सरकारों को ट्रैंसकॉकेशा के सामूहिक नाम से संबोधित करते थे। अत: इसके अंतर्गत बाकू, एलिसावेतपोल, एरिबान, कुटे तथा टिफ्लिस की ट्रैंसरकारें, बाटुम, दगेस्तान एवं कार्स के प्रांत और काला सागर (शेरनोमोर्स्क) एवं जकातली के फौजी क्षेत्र सम्मिलित थे। प्रथम महायुद्ध के अंत में उक्त क्षेत्र को केवल तीन गणराज्यों-जार्जिया, आर्मीनिया तथा आजरबिजान में संघटित किया गया।
पृथक गणराज्य
12 मार्च, 1923 ई० को सोवियत संघीय समाजवादी गणराज्य समूह के रूप में इन राज्यों की सत्ता स्वीकार की गई। दिसंबर, 1936 में, स्टालिन संविधान लागू होने पर पुन: सोवियत शासनतंत्र के अंतर्गत उन्हें अलग अलग गणराज्य के रूप में सत्ता प्रदान की गई।
जनसंख्या
ट्रैंसकॉकेशा के पश्चिमी क्षेत्र में जार्जिआ (क्षेत्रफल 39,700 वर्ग किमी. है) तथा पूर्व में आर्मीनया (क्षेत्रफल 29,800 वर्ग किमी० है) और आजरबिजान (क्षेत्रफल 86,600 वर्ग किमी० तथा जनसंख्या 41,17,000) फैले हैं।
फ़सल तथा खनिज
गेहूँ तथा अंगूर के अतिरिक्त उक्त क्षेत्र में उपोष्णकटिबंधीय पौधे कपास, धान, रसदार फल, सब्जियाँ, तंबाकू, चाय आदि उगाए जाते हैं। 1941 ई० में उपोष्णकटिबंधीय पौधों की कृषिसंबंधी तथा 1949 ई० में वनविज्ञान संबंधी समस्याओं के समाधान के लिये आजरबिजान में अनुसंधान संस्थाएँ स्थापित की गईं। यह क्षेत्र खनिजों में भी बहुत धनी है और यहाँ तेल तथा मैंगनीज के अतिरिक्त यूरेनियम, लोहा, मोलिब्डिठनम, कोयला, ऐल्यूमिनियम, ताँबा, सीसा, जस्ता, गंधक, चूनापत्थर तथा कई बहुमूल्य धातुएँ प्राप्त होती हैं। सिंचाई तथा औद्योगिक विकास तीव्रता से हो रहा है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ