ट्रैप
ट्रैप
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 199 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | भगवानदास वर्मा |
ट्रैप अंग्रेजी में फंदे को कहते हैं। इंजीनियरी में ट्रैप या फंदा ऐसे उपकरण या उपकरण के भाग को कहते हैं जिससे गंदी नालियों से निकलने वाली गंदी हवा और गैसें कमरे या घर में आने से रुकी रहती हैं।
भूविज्ञान में कई आग्नेय चट्टानों का प्राचीन नाम भी ट्रैप है। ये प्राय: काले रंग की, सूक्ष्म कणोंवाली, और समाक्षारीय होती हैं। साधारणतया इस जाति में बैसाल्ट, डायाबेस तथा ऐंडिसाइट चट्टानें आती हैं। अभ्रक का ट्रैप लैंप्रोफायर की एक जाति है।
ये शिलाएँ क्षैतिज स्तरों में, या जमे हुए लावा के समूहों में पाई जाती हैं। इनके बीच बीच में अपेक्षाकृत कोमल तलछटों के संस्तर होते हैं। निरावरण रहने से कोमल भाग कटकर गिर जाता है तथा कठिन आग्नेय शिलाएँ पहाड़ी के पार्श्वं में बड़ी बड़ी सीढ़ियों के रूप में दिखाई पड़ती हैं।
संयुक्त राज्य अमरीका में शिलाएँ बड़े पैमाने पर निकाली जाती हैं। भारत में दक्षिणी पठार में भी ये प्रसिद्ध चट्टानें हैं। ट्रैप की गिट्टी उत्तम होती है। यह कंक्रीट और सड़क बनाने के लिये, रेल की पटरियों के नीचे डालने के लिये, तथा गहरे पानी में या कोमल मिट्टी में पड़नेवाली नींव पक्की करने के लिये काम आती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ