तलमापी

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
तलमापी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 318
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक राम प्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक गुरुनारायण दूबे

तलमापी (Level) यंत्र का उद्देश्य क्षैतिज रेखा को उपलब्ध करना है। पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं की सापेक्ष ऊँचाई निकालने के लिये सर्वेक्षक (Surveyor) तलमापन करता है। इस क्रिया में क्षैतिज दृष्टिरेखा से बिंदुओं की गहराई या निचाई मापकर ही सर्वेक्षक तलमापन से सापेक्ष ऊँचाइयाँ निकालने में सफल होता है। गहराई नापने के लिये अंशांकित छड़ उपयोग में आते हैं। उनपर अंकित मीटर या फुट के 1000 वें भाग तक पढ़ने का प्रयत्न होता है। ऐसे दूर रखे छड़ या गज को स्पष्ट देखने के लिये दूरबीन का प्रयोग होता है। घूमने की क्षमता रखनेवाले तीन ऊर्ध्वाधर पेंचों पर टिकी कुएँ जैसी मनि में पड़ी एक धुरी पर दूरबीन इस प्रकार कसी रहती है कि मनि के केंद्र पर धुरी के घूमने से दूरबीन से प्राप्त दृष्टिरेखा क्षैतिज समतल में धूम सके। दूर देखने की सामान्य दूरबीन और तलमापी में प्रयोग की जानेवाली दूरबीन में विशेष अंतर होता है। इसके नेत्रिका (eye) लेंस और अभिदृश्य (object) लेंस के बीच में एक नए अवयव, क्रूस तंतु (cross wric), का तंतुपट (diaphram) डालकर दृष्टिरेखा निर्धारित कर दी जाती है। इस प्रकार स्थायित्व दी गई रेखा संधानरेखा (Line of Collimation) भी कहलाती है। इस संधानरेखा की क्षैतिजता प्रमाणित करने के लिये दूरबीन के साथ एक पाणसल (spirit level) ऐसे जुड़ा रहता है कि उसका अक्ष (पाणसल की लंबाई के मध्य बिंदु पर स्पर्शी रेखा) दूरबीन की दृष्टिरेखा के समांतर रहता है। अत: जब यंत्र के तलेक्षण अवयव में लगे उर्घ्वाधर पेंचों (levelling head) को जिन्हें क्षैतिजकारी पेंच भी कहते हैं, यथेष्ट रूप से धुमाकर पाणसल का बुलबुला केंद्रित कर दिया जाता है तो दृष्टिरेखा पाणसल के अक्ष के समांतर होने के कारण क्षैतिज हो जाती है। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि तलमापी में पाणसल और दूरबीन सबसे महत्वपूर्ण अवयव हैं और दूरबीन में तंतुपट, जो दृष्टिरेखा निर्धारित करता है।

चित्र:50502-1.jpg
तलमापी

चित्र 1 में एक तलमापी और साथ में सामान्यत: प्रयुक्त तंतुपट दिखाए गए है। तंतुपट में सामान्यत: तीन रेशे क्षैतिज और एक ऊर्ध्व होता है। ऊर्ध्व और बीचवाले क्षैतिज रेशे तंतुपट बनानेवाले गोल छल्ले के समकोण पर काटते व्यास होते हैं। परंतु दो दूसरे क्षैतिज रेशे, मध्यवाले से एक ऊपर और उतनी ही दूरी पर नीचे, छोटे होते है। वैसे तलमापन करने के लिए समकोण पर काटते बड़े दो तंतु ही पर्याप्त है, पर छोटे तंतु तलेक्षक के लिये दो बड़ी महत्वपूर्ण सुविधाएँ पैदा कर दी जाता हैं। पहली, तलक्षण गजों पर क्रूस तंतु के मध्य क्षैतिज सूत्र पर कटनेवाले अंक भी पढ़ लिए जाते हैं। इन तीनों पठनों (readings) का मध्यमान लेने से वह मध्य तंतु पर लिए वाचन के बराबर होना चाहिए। ऐसा होने पर सर्वेक्षक को अपने पठनों की यथार्थता का प्रमाण मिल जाता है और वह आश्वस्त होकर काम करता है। दूसरी सुविधा यह हो जाती है कि ये तंतु इस प्रकार लगाए जाते है कि वे एक निश्चित दूरी पर रखे मापक पर एक निश्चित अंत:खंड काटते हैं। साधारणतया तंतुओं द्वारा काटे गए अंत:खंड और गज की दूरी का अनुपात 1 : 100 होता है, अर्थात्य 100 फुट दूर रखे गज पर अंत:खंड 1 फुट होगा। इस कारण कोई भी पठन लेकर अंत:खंड को 100 से गुणा करने पर यंत्र से गज की दूरी निकल आती है। उदाहरणार्थ, यदि गज पर लिए पठन क्रमश: 2.325, 3.830, और 5.535 हों तो मध्यमान (2.325 + 3.830 + 5.535) ¸ 3 = 11.490 ¸ 4 = 3.830 और दूरी (5.5335 - 2.325) ´ 100 = 309 फुट होगी। यहाँ 100 का अंक स्टैडिया स्थिरांक (Stadia constant) कहलाता है। दूरी ज्ञात करने की सुविधा से यह लाभ होता है कि सर्वेक्षक गज को वांछित दूरी पर रख सकता है और मानचित्र पर लगे तलेक्षण पथ पर गज के स्थानों (staff stations) का आलेखन कर सकता है।

दृष्टिरेखा की क्षैतिजता स्थापित करने में पाणसल की नली की बनावट और अंदर भरे द्रव का बड़ा अधिक पार्थक्य होने पर ही उसे प्रदर्शित करे तो यंत्र अधिक यथार्थ कार्य के लिए उपयोगी नहीं होगा। क्षैतिजता से पार्थक्य को प्रदर्शित करने की क्षमता को पाणसल की सुग्राह्यता कहते हैं। यथार्थ कार्य के लिये प्रयुक्त दृष्टिरेखा का क्षैतिजता से थोड़ा भी पार्थक्य होने पर बुलबुला केंद्रित न हो।

सुग्राह्यता और क्षैतिजकारी पेंचों में ऐसा संबंध रखा जाता है कि जिस यंत्र में अधिक सुग्राह्य पाणसल लगाते हैं उसमें क्षैतिजकारी पेंचों के सूत इतने पतले रहते हैं कि पेंच कि एक चक्कर घूमने में यंत्र का उतार था चढ़ाव बहुत थोड़ा हो। सुग्राह्य पाणसल और मोटे सूत से पेंचों की थोड़ी सी गति में ही बुलबुला इधर इधर तीव्रता से भागता है और अदक्ष सर्वेक्षक को उसे केंद्रित करने में बड़ी कठिनाई होती है।

अधिक यथार्थ कार्य कानेवाले यंत्रों में केवल पाणसल ही अधिक सुग्राह्य नहीं लगाते, वरन बुलबुला केंद्रित होने में थोड़ा अंतर जिसे नंगी आँखे नहीं देख सकतीं, उसे भी देखने की क्षमता पैदा करने के लिये एक उपकरण लगा होता है, जिससे पाणसल के बुलबुले के दोनों सिरों के आधे आधे आवर्घित प्रतिबिंब एक प्रिज्म में दिखाई देते हैं। जब तब बुलबुला केंद्रित नहीं होता तब तक दिखाई देनेवाले अर्ध भाग अलग अलग (चित्र 2 में बाएँ चित्र की भाँति) रहते हैं और जब पूर्णतया केंद्रित हो जाता है तब वे (चित्र 2 मे दाहिने चित्र की भाँति) नियमित वक्र बना लेते हैं।

दूरबीन के साथ पाणसल और तंतुपट जोड़ने में भी ऐसी सुविधा दी रहती है कि यदि किसी प्रकार दृष्टिरेखा और पाणसल के अक्ष का समांतर रहने का संबंध बिगड़ जाए, जिसे संधान (collimation) त्रुटि कहते हैं, तो उसकी परीक्षा और समंजन किया जा सकता है।

तलमापी के प्रकार

उपर्युक्त बातों में सभी यंत्रों में कोई सैद्धांतिक भेद नहीं होता, फिर भी इन यंत्रों का दो आधारों पर वर्गीकरण हुआ है: (1) यंत्र के यथार्थ कार्य काने की क्षमता के आधार पर तथा (2) संधानत्रुटि की परीक्षा के लिये प्रदान की गई सुविधा के आधार पर। पहले वर्गीकरण के अनुसार तलमापी तीन वर्गों में बाँटे गए हैं: यथार्थ (Precision) तलमापी, द्वितीयक (Secondary) तलमापी तथा तृतीयक (Tertiary) तलमापी। दूसरे वर्गीकरण के अनुसार यंत्रों को पाँच वर्गों बाँटा जा सकता है: (1) डंपी (Dumpy) तलमापी, (2) वाई (Wye) तलमापी, (3) उत्क्रमणीय (Reversible), तलमापी (4) कुशिंग का (Cushing), तलमापी तथा (5) अवनामी (Tilting), तलमापी।

चित्र:50502-2.jpg
तलमापी के प्रकार

भिन्न भिन्न तलमापियों के लक्षण - इनका वर्णन नीचे दिया है:

  1. डंपी तलमापी-- यह सबसे सरल, सुगठित और संतुलित होता है। इसकी दूरबीन ऊर्ध्व धुरी से दृढ़ता के साथ जुड़ी रहती है, जिससे दूरबीन न तो अपने अनुदैर्ध्य अक्ष पर धूम सकती हैं और न धुुरी से अलग हो सकती है। अकुशल या प्राशिक्षणार्थी तलेक्षक के हाथों में भी इसमें काई हानि सामान्यत: नहीं होती।
  2. वाई तलमापी -- यह बड़ा कोमल यंत्र होता है। आँग्ल भाषा के वाई (Y) अक्षर सदृश कुर्सी पर इसकी दूरबीन टिकी रहती है और बंधों से कसी रहती है। इससे दूरबीन अपने अनुदैर्ध्य अक्ष पर घुमाई जा सकती है और खोलकर सिरों को उलटकर रखी जा सकती है। इसके दो मुख्य लाभ है: (अ) संघानत्रुटि के परीक्षण में बड़ी सरलता होती है तथा (आ) परीक्षण और समंजन एक कमरे में खड़े रहकर भी किए जा सकते हैं।
  3. उत्क्रमणीय तलमापी -- वाई तलमापी के लाभ और डंपी की दृढ़ता के संयोजन का प्रयास इस यंत्र में देखने को मिलता है। इसकी कुर्सी डंपी के समान दृढ़ होती है, जिसमें दूरबीन अनुदैर्ध्य अक्ष पर धूम भी सकती है और सिरे उलटकर भी रखी जा सकती है।
  4. कुशिंग का तलमापी -- इसकी दूरबीन कुर्सी में दृढ़ता से फँसी रहती है; न तो उसमें घूम सकती है ओर न उठाई जा सकती है। मगर तंतुपट सहित उसके उपनेत्र नेत्रिका लेंस और अभिदृश्य लेंस की स्थितियाँ बदली जा सकती हैं। नेत्रिका लेंस के ऊपर का भाग नीचे और नीचे का ऊपर बदलकर भी लगाया जा सकता है। इससे उत्क्रमणीय तलमापी के लाभ बनाए रखकर यंत्र को और भी दृढ़ बना दिया जाता है।
  5. अवनम्य तलमापी -- इसकी दूरबीन मध्य बिंदु पर कुर्सी से एक क्षैतिज धुरी द्वारा फँसी रहती है, जिससे वह ऊर्ध्व तल में थोड़ी द्वारा फँसी रहती है, जिससे वह उर्ध्व तल मे थोड़ी धूम सके। उसे स्थिर रखने के लिये अभिदृश्य लेंस के नीचे एक स्प्रिंग लगा रहता है और नेत्रिका लेंस एक पेंच पर टिका रहता है। पेंच घुमाने से दूरबीन (मध्य विंदु पर) क्षैतिज अक्ष पर ऊर्ध्व तल में घूमती है, जिससे बुलबुला केंद्रित हो जाता है!

तलमापी को प्रेक्षण योग्य करना

सभी प्रकार के तलमापियों से प्रेक्षण करने से पहले कुछ समंजन आवश्यक होते है, जैसे (1) फोकस करना (Focussing), (2) विस्थापनाभास मिटाना (Removing parallax), (3) क्षैतिजीकरण (Making line of sight horizontal) इत्यादि हैं। उपर्युक्त समंजन, जैसा नाम से विदित है, प्रत्येक प्रक्षण से पहले होने चाहिए। तभी यथार्थ कार्य होगा। संधान रेखा पाणसल अक्ष के समांतर होनी चाहिए। यह समंजन भी आवश्यक होने पर किया जाता है। मगर पाणसल और तंतुपट दूरबीन से दृढ़ता से कसे होने के कारण यह समंजन लंबी अवधि में शायद ही करना पड़े। इस कारण इसे स्थाई समंजन (Permanent adjustment) कहते हैं।

अस्थायी समंजन विधियाँ -- ये निम्नलिखित हैैं :

  1. फोकस करना - दूरबीन के नेत्रिका लेंस को ऐसे घुमाते हैं कि तंतुपट के क्रूस तंतु स्पष्ट दिखाई देने लगें। तदुपरांत दूरबीन पर लगे हुए फोकस पेंच को ऐसे घुमाते हैं कि देखे जानेवाले माप के विभाजन स्पष्ट दिखाई दें।
  2. स्थापनाभास मिटाना - नेत्रिका से दूरबीन में वस्तु का प्रतिबिंब देखते हुए आँखें धीरे धीरे ऊपर नीचे चलाने से यदि प्रतिबिंब क्रूस तंतुओ से हटता दिखाई दे तो फोकस धीमी चाल से पुन: ऐसे घुमाते हैं कि प्रतिबिंब क्रूस तंतु से बिल्कुल हटता न मालूम पड़े।
  3. क्षैतिजीकरण - तलेक्षण गज पर पठन लेने से पहले दृष्टिरेखा क्षैतिज करना आवश्यक है। इसके लिये प्रत्येक यंत्र में उपाय दिया रहता है, फलत: उसके समांतर दृष्टि रेखा, क्षैतिज हो जाती है। हाल में एक तलमापी का आविष्कार हुआ है जो स्वत: क्षैतिजकारी है।

तलमापी से पठन लेते समय यह विश्वास कर लिया जाता है कि पाणसल का बुलबुला केंद्रित कर देने से दृष्टिरेखा क्षैतिज हो गई। यदि ऐसा हो तो दो बिंदुओं पर रखे अंकित गजों पर कहीं से भी पठन लेकर उनका बतर दोनों बिदुओं के बीच सापेक्ष ऊँचाई बताएगा। यदि ऐसा न हो, अर्थात्‌ संघानत्रुटि हो, तो यंत्र के लिए गए पठनों में त्रुटि पैदा होगी। क्योंकि दृष्टिरेखा पाणसल के अक्ष के समांतर न होने के कारण, जब पाणसल का अक्ष क्षैतिज हो जाएगा तो दृष्टिरेखा क्षैतिज समतल से हटी हुई होगी। यह हटाव यंत्र की दूरी के सीधे अनुपात में बढ़ता जाएगा। अत: असमान दूरी पर रखे मापों पर लिए पठनों में असमान त्रुटि होगी। उनका अंतर सही सापेक्ष ऊँचाई नहीं बताएगा। इस कारण यंत्र मापों के मध्य में रखा जाए तो दोनों पठन समान रूप से गलत होंगे और अंतर लेने पर त्रुटि रद्द हो जाएगी। यह बात ऊपर के चित्र से स्पष्ट हो जाएगी।

टीका टिप्पणी और संदर्भ