तातार

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लेख सूचना
तातार
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 331
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
स्रोत डी० एस० मिट्सकी : शा, ए सोशल हिस्ट्री (१९२१)
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक अमजद अली, डी० एस० मिट्सकी

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तातार इस शब्द को तातर तत्तार, तत्तर तथा तारतार भी लिखा जाता है। विभिन्न समयों में इसका विभिन्न भाव रहा है। कुछ लोगों का विचार है कि प्राचीन काल में मध्य एशिया की तातार नामक नदी के संबंध से तातार कहे जाने लगे। इसके विपरीत कुछ सज्जनों का कथन है कि वास्तव में तातार तुर्की नस्ल के ऐसे राजकुमार का नाम था, जिसके एक भाई का नाम मंगोल था। इस कारण तातार राजकुमार के वंशवाले तातार कहे जाने लगे और मंगोल राजकुमार के वंशवाले मंगोल कहलाए। नई शोधों ने इन दोनों दृष्टिकोणों को गलत प्रमाणित कर दिया है किंतु कोई निश्चित तथ्य अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। जो हो, इस बात पर तो सभी एकमत हैं कि इस शब्द से एक जाति से तात्पर्य है। अब तक के कुल ज्ञात साक्ष्यों में सबसे प्राचीन आठवीं शती के तुर्की भाषा के उर्खूनी लेख हैं जिनमें 'तीस तातारों' तथा 'नौ तातारों' का उल्लेख है। उन्हीं लेखों से यह भी प्रमाणित हुआ है कि उस समय इस शब्द का संबंध तुर्को से नहीं प्रत्युत मंगोलों से या किसी मंगोली शाखा से जोड़ा जा रहा था। उस काल में तातार बैकाल झील के दक्षिण पश्चिम में बसे हुए थे और उत्तूकान प्रदेश, जिसका उल्लेख उर्खूनी लेखों में तुर्कों के निवासस्थान के रूप में बार बार हुआ है, ११वीं शती ईसवीं में तातारियों के देश में सम्मिलित था। उस समय तातारियों की मातृभाषा तुर्कों से भिन्न थी परंतु उनके बहुत से समुदाय तुर्कों के साथ साथ विभिन्न स्थानों को चले गए और एक सीमा तक सब तुर्क हो गए।

१३वीं शती ईसवी में मंगोल विजयों के समय चीन, रूस, पश्चिमी युरोप तथा इस्लामी संसार में विजेताओं को तातार कहते थे। यही नाम चंगेज खाँ के पूर्वजों के लिये भी प्रयुक्त हुआ है। परंतु चंगेज खाँ की विजयों के अनंतर बहुत से लोग ' जिन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी, अपने को मंगोल कहने लगे और चंगेज खाँ के राज्य के बाद मंगोलिया तथा मध्य एशिया में तातार शब्द का प्रयोग पूर्णत: उठ गया तथा उसक स्थन पर 'मंगोल शब्द चल पड़ा, जिसे स्वयं चंगेज खाँ ने शासकीय ढंग से चलाया था। इसमर भी यूरोपवाले इन्हें तातार ही कहते रहे और आलतून उर्दू (अर्थ है सुनहला झुंड; तात्पर्य बातूखाँ तथा बुर्क: खाँ के राज्यों से है।) के राज्य तथा बाद में इस प्रदेश के दूसरे शासनकालों के लोगों को भी तातार ही कहा गया, यद्यपि इन लोगों ने १४वीं शती ईसवी में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था।

इसके बादवाले समय में रूस तथा पश्चिमी यूरोप में उसमानी तुर्कों के सिवा सभी शुद्ध तुर्कों के लिये 'तातार' शब्द प्रयुक्त होने लगा और चीनी मंगोलों को भी तातार कहने लगे। अब विशिष्ट जातीय नाम के रूप में तातार शब्द का प्रयोग वॉल्गा नदी के आसपास में तुर्की बालनेवालों के लिये ही होता है, जो काजान से अस्त्राखान तक, क्रीमिया या करीम और साइबीरिया के एक भाग में बसे हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ