थियोफिल गौतिए
थियोफिल गौतिए
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 49 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | तुलसी नारायण सिंह |
थियोफिल गौतिए (Gautier, Theophile) फ्रेंच १८११-८२ गौतिए बहुमुखी प्रतिभा के लेखक थे। सर्वप्रथम इन्होंने चित्रकला का अध्ययन किया। इस क्षेत्र में इन्होंने अच्छी सफलता भी अर्जित की। बाद में इन्होंने साहित्य को अपनी प्रतिभा की अभिव्यक्ति का माध्यम चुना और उच्च कोटि की कविताएँ और उपन्यास लिखे। लेकिन इनके साहित्य पर भी चित्रकला का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है। मूर्त सौंदर्य के ये अनन्य उपासक थे। किसी भी वस्तु के संबंध में लिखते समय इन्होंने उसके बाह्य उपकरणों को अत्यधिक महत्व दिया। इनकी धारणा थी कि विभिन्न कलाओं के बीच कोई मौलिक भेद नहीं है। साहित्य, चित्रकला और शिल्पकला पाठक या दर्शक के ऊपर एक सा ही प्रभाव डालती हैं। सभी कलाओं के प्रति हमारी प्रतिक्रिया समान होती है। भेद केवल अभिव्यक्ति के माध्यम का होता है। जहाँ कवि या उपन्यासकार शब्दों का प्रयोग करता है, चित्रकार रंग और तूलिका तथा मूर्तिकार पत्थर या मिट्टी का। इनकी कविताएँ, जो दो संग्रहों में निकलीं,[१] इस सिद्धांत की सत्यता सिद्ध करती हैं।
गौतिए पारनासियन शैली के कवियों में आते हैं। १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मलार्म, वर्लेन प्रभृति कवियों ने फ्रांसीसी कविता की परंपरा को छोड़ एक नई दिशा की ओर संकेत किया। इन्होंने कविता में भाव पर नहीं वरन् रूपविधान पर जोर दिया। गौतिए में भी इस शैली की कविता के सारे गुणदोष मिलते हैं। शैली और रूपविधान की दृष्टि से इनकी कविताएं उच्च कोटि की हैं। काव्यशास्त्र की कसौटी पर वे सर्वथा निर्दोष उतरती हैं। लेकिन भावों की गहराई उनमें नहीं है। गौतिए ने उपन्यास भी लिखे। इनके दो महत्वपूर्ण उपन्यास मैदामाएले दि मा पिन और कैप्टेन फ्रेकाज हैं। इन उपन्यासों द्वारा हमें इनकी अद्भुत वर्णनशैली का परिचय मिलता है। लेकिन ऊँचे दर्जे की प्रतिभा के होते हुए भी गौतिए उपन्यासकार के रूप में बहुत ऊँचा नहीं उठ पाए। व्यक्तियों एवं वस्तुओं का अलग अलग वर्णन ये खूबी के साथ कर पाते हैं लेकिन सबको सामूहिक रूप देकर जीवन का व्यापक चित्र ये नहीं प्रस्तुत कर पाते।
गौतिए ने कला का एक नया सिद्धांत दिया जिसके अनुसार कला में सौंदर्य की उपलब्धि केवल रूप के जरिए हो सकती है। कलाकार को राजनीतिक, सामाजिक या नैतिक वितंडा में कतई नहीं पड़ना चाहिए। ये समस्याएँ दूसरों की हैं, कलाकार की नहीं। इन्होंने कला कला के लिये का नारा दिया जिसका व्यापक प्रभाव न केवल फ्रांस में बल्कि इंग्लैंड और बहुत दिनों तक युरोप के अन्य देशों में भी रहा।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एस्पाना १८४५, और एरामेल्स और कैमकॉस १८५२