नक्शा खींचना

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लेख सूचना
नक्शा खींचना
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 6
पृष्ठ संख्या 218
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक राम प्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1966 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक गुरुनारायण दुबे

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नक्शा खींचना (Map Drawing) मनुष्य को उसकी भौमिक परिस्थितियों से साक्षात्कार कराने का सबसे सरल माध्यम है। भूपृष्ठ पर स्थित प्राकृतिक विवरण, जैसे पहाड़, नदी पठार, मैदान, जंगल आदि और सांस्कृतिक निर्माण, जैसे सड़कें, रेलमार्ग, पुल, कुएँ धार्मिक स्थान, कारखाने आदि का सक्षिप्त, सही और विश्वसनीय चित्रण नक्शे पर मिलता है।

(1) पक्की सड़क, मील के पत्थर और बस्ती, (2) कच्ची सड़क; (3) पगडंडी; (4) गाड़ी का रास्ता; (5) छोटापुल; (6) पाएदार पुल; (7) कटान में सड़क; (8) अभिरक्षी बाँध पर सड़क; (9) बड़ी लाइन का रेल मार्ग; (10) छोटी लाइन का रेल मार्ग; (11) नहर, दूरी के पत्थर और शाखाओं सहित; (12) टूटी फूटी भूमि में नाला; (13) दलदल; (14) तालाब (बनाया हुआ); (15) प्राकृतिक तालाब या पोखरा; (16) समोच्च रेखाएँ; (17) बड़ी नदी; (18) ताड़ (19) पंखिया ताड़, (20) खजूर, (21) केला (22) चीड़, (23) भाऊ, (24) सुपाड़ी, (25) अन्य, (26) सेहुड़, (27) बाँस, (28) घास, (29) टेलीफोन और तार की लाइनें; (30) बिजली की लाइनें तथा (31) कृषि सीमाएँ या खेतिहर क्षेत्र।

नक्शे की इस व्याख्या से तीन प्रश्न उठ खड़े होते हैं : (1) ऐसे विशाल और विस्तृत भूपृष्ठ का छोटे कागज पर कैसे प्रदर्शन हो? (2) गोल भूपृष्ठ को बिना विकृति के समतल पर कैसे चित्रित किया जाए? (3) भूपृष्ठ की अधिकांश प्राकृतिक और कृत्रिम वस्तुएँ त्रिविमितीय होती हैं, अत: उनका समतल पर कैसे ज्ञान कराया जाए?

पहली समस्या का समाधान कागज की एक इकाई दूरी पर पृथ्वी की कई इकाई दूरी को प्रदर्शित करके किया गया है, अर्थात्‌ किन्हीं भी दो विंदुओं की भौमिक दूरी को नक्शे पर एक निश्चित अनुपात में प्रदर्शित करते हैं, जैसे नक्शे पर 1 इंच = 1 मील 2 मील, 4 मील या 50 मील इत्यादि, या 1 इकाई (इंच या सेंटीमीटर) = 1,000, 10,000, 25,000 50,000 (इंच या सेंटिमीटर) इत्यादि। इसे अनुपात के रूप में 1 : 1,000, 1 : 25,000 आदि भी लिख सकते हैं। इस प्रकार की अभिव्यक्ति नक्शे का पैमाना कहलाता है।

दूसरी समस्या का ग्राह्य समाधान मानचित्र प्रक्षेप (map projection) से किया गया है, जिसमें अक्षांश (latitude) एवं देशांतर (longitude) मानचित्र के प्रयोग की सुविध के अनुकूल समतल पर प्रक्षिप्त कर लिए जाते हैं (देखें चित्र 3.)।

प्रक्षेप का अर्थ समझने के लिए कल्पना करें कि काच के एक गोले पर अपारदर्शी रंग से अक्षांश तथा देशांतर रेखाएँ खींची हैं। गोले पर एक स्पर्शी समतल या समतल के रूप में विकसित हो जानेवाली सतहें, जैसे शंकु (cone) या बेलन (cylinder), रखी हैं (देखें चित्र 1) और गोले के केंद्र पर प्रकाश का एक बिंदु-सा है इस अवस्था में स्पर्शी सतह पर बनी छाया अक्षांश या देशांतरों का प्रक्षेप कहलाएगी। भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रक्षेप, जिनमें किसी पर क्षेत्रफल, किसी पर दिशा एवं दूरी और किसी पर आकृतियाँ सही बनती हैं, इसी प्रकार की एक या दूसरी सतह पर तैयार किए जाते हैं। इनमें समतल पर त्रैज्य (Gnomonic) प्रक्षेप, त्रिविम (stereographic) प्रक्षेप, बेलन और कैसिनी (Cassini) का प्रक्षेप, मर्केटर (Mercator) के प्रक्षेप और शंकु पर बहुशंकुक (polyconic) प्रक्षेप सर्वाधिक प्रयुक्त होते हैं। सर्वेक्षित भूमि के विस्तार और भू पृष्ठ पर उसकी स्थिति के अनुसार प्रक्षेप का चयन किया जाता है।

तीसरी समस्या का समाधान, विवरण (detail) के लिए सांकेतिक चिह्नों का प्रयोग कर, किया गया है। सांकेतिक चिह्नों के निर्धारण में यह ध्यान रखा जाता है कि वे बिना किसी अतिरिक्त टिप्पणी के उस वस्तु का परिचय दे सकें जिसके वे प्रतिनिधि हों, तथा मानचित्र पर बनाने की दृष्टि से सरल और सूक्ष्म हों। यहाँ चित्र 2. में मानचित्रों पर प्राय: प्रयुक्त होने वाले सांकेतिक चिह्न दिखाए गए हैं। इन चिह्नों का आकार मानचित्र के पैमाने पर निर्भर करता है। मानचित्र के पैमाने जैसे-जैसे छोटे होते जाते हैं वैसे-वैसे कम महत्व के विवरण छोड़ दिए जाते हैं और चिह्न भी छोटे होते जाते हैं, जैसे भारत के भौगोलिक मानचित्र, गाँव, छोटी नदियाँ, वनस्पति आदि नहीं दिखाए जाते और नगर केवल बिंदुओं या छोटे वृत्तों से प्रदर्शित किए जाते हैं।

सांकेतिक चिह्नों के विषय में एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि अन्य विवरणों को लंबाई और चौड़ाई, अर्थात्‌ दो विस्तारवाले सांकेतिक चिह्नों से दर्शाना कठिन नहीं, किंतु पहाड़ी तथा उभरी भूमि का मानचित्र पर सही परिचय कराना विशेष महत्व रखता है। उभरी भूमि (ground relief) का प्रदर्शन चार प्रकट से होता है : (1) समोच्च रेखाओं (contouring) से, (2) रेखाच्छादन (hachuring) से (देखें चित्र 4), (3) छाया (shading) से तथा (4) प्रदर्शन (layering) स्तर से। इनमें समोच्च रेखाओं का उपयोग सबसे अधिक होता है।

कार्यक्षेत्र में किए गए सर्वेक्षण के पटलचित्र, या पटलचित्रों, या हवाई सर्वेक्षणों का ब्लू प्रिंट मोटे कागज पर से बनाया जाता है। यह मानचित्र की सबसे पहली प्रति होती है। इसके बाद लिथो मुद्रण द्वारा वांछित संख्या में प्रतियाँ तैयार कर ली जाती हैं। ब्लू प्रिंट पर सबसे पहली प्रति हाथ से तैयार करने का प्रमुख कारण यह है कि पटलचित्र, या हवाई सर्वेक्षण खंड (air survey section), पर हाथ से किए गए रेखण की त्रुटियाँ निकल जाएँ और मानचित्र सुंदर और सुघड़ कलाकृति बन जाए। इसके लिए जो उपकरण (देखें चित्र 5.) प्रयुक्त होते हैं, वे निम्नलिखित हैं :

  1. रेखण लेखनी (Drawing pen) - यह किसी के सहारे या स्वतंत्र सीधी रेखाएँ खींचने का उपकरण है।
  2. फिरकी कलम (Swivel Pen) - यह हाथ से वक्र रेखाएँ खींचने का उपकरण है। प्रधानत: समोच्च रेखाएँ खींचने में इसका प्रयोग होता है।
  3. मार्ग लेखनी (Road Pen) - यह दो सीधी समांतर रेखाएँ साथ साथ खींचने की लेखनी है। यह प्रधानत: सड़कों के रेखण में प्रयुक्त होती है।
  4. वृत्त लेखनी (Circle Pen) - यह वृत्त या चाप खींचने की लेखनी है।
  5. समांतर रेखनी (Parallel Ruler) - यह सीधी और समांतर रेखाएँ खींचने की लेखनी है।

6. फ्रांसीसी वक्र (French Curves) - यह वक्र रेखाएँ खींचने का सहायक उपकरण है।
7. पड़ी परकार (Beam Compass)
8. परकर (Divider) - ये दोनों दूरी नपाने के उपकरण हैं।
9. अनुपाती परकार (Proportional Compass) - यह आनुपातिक दूरी लगाने में प्रयोग में आता है।
10. लोहे की निब (Crowquill Nib) - यह हाथ से सूक्ष्म रेखाएँ खींचने के काम में प्रयुक्त होती है।

शुद्ध रेखाएँ मानचित्र के वांछित पैमाने से ड्योढ़े पैमाने पर किया जाता है, जिसे फोटोग्राफी द्वारा घंटा कर वांछित पैमाने का मानचित्र प्राप्त कर लिया जाता है। इससे यह लाभ होता है कि उपर्युक्त सहायक उपकरणों द्वारा भी यदि रेखण में कुछ त्रुटियाँ आ गई हों तो वे लघुकरण में इतनी छोटी रह जाएँ कि आँख को न खटकें। रेखण करते समय नक्शानवीस अभिवर्धक लेंस का भी उपयोग करता है, जिससे वह बुराइयों को बड़ा देखकर साथ साथ दूर करता जाता है। संपूर्ण रेखण तो काले रंग में होता है, किंतु प्रकाशन के समय पहचानने की सुविधा के लिए भिन्न-भिन्न विवरण भिन्न-भिन्न रंगों में छापे जाते हैं। रंगीन मुद्रण का साधारण नियम निम्नलिखित है : सांस्कृतिक निर्माण (मानव निर्मित वस्तुएँ) काले या लाल रंग में, जलाकृतियाँ नीले रंग में, उभर आकृतियाँ भूरे रंग में, तथा वनस्पतियाँ हरे रंग में दिखाई जाऐं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ