नील्स हेनरिक आबेल

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लेख सूचना
नील्स हेनरिक आबेल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 389
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डॉ. रामकुमार

आबेल, नील्स हेनरिक (1803-1829 ई.) नार्वे के गणितज्ञ थे। इनका जन्म 25 अगस्त, 1803 ई. को हुआ। इनकी शिक्षा क्रिस्टिआनिया विश्वविद्यालय (ऑसलो) में हुई। 1825 ई. में राजकीय छात्रवृत्ति पाकर ये गणिताध्ययन के लिए जर्मनी और फ्रांस गए, परंतु आर्थिक कारणों से 1827 ई. में इन्हें नार्वे लौटना पड़ा और वहाँ पर 6 अप्रैल, 1829 ई. को केवल 26 वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हो गई। इतने अल्प समय में भी गणित को आबेल ने अपूर्व देन दी है। समीकरणों के सिद्धांत में इन्होंने पंचघातीय व्यापक समीकरण के हल की असंभवता सिद्ध की; यह ज्ञात किया कि बीजगणित की सहायता से कौन-कौन से समीकरण हल किए जा सकते हैं और उस समीकरण को हल करने की विधि प्रदान की जिसे अब आवेल का समीकरण कहा जाता है। फलनों के सिद्धांत में इन्होंने दीर्घवृत्तीय तथा अब आबेल के फलन कहे जाने वाले फलनों पर अनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान किए। चल-राशि-कलन (इनटेग्रल कैलकुलस) में इनकी प्रसिद्ध देन वे अनुकल हैं जो अब आवेल के अनुकल कहलाते हैं। आवेल के अति दीर्घवृत्तीय अनुकल इन्हीं के विशिष्ट रूप हैं।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-सी.ए.व्यर्कनेस : नील्स हेनरिक आवेल, ताब्लो द सा बी ए सोन आक्स्यों सियाँतिफिक, 1885।