मधु कैटभ
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मधु कैटभ
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 9 |
पृष्ठ संख्या | 135 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | रामज्ञा द्विवेदी |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1967 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मधुकैटभ असुरों के पूर्वज पुराणप्रसिद्ध राक्षसद्वय। इनकी उत्पत्ति कल्पांत तक सोते हुए विष्णु के कानों की मैल (महा., शांति, 355/22; दे. भा. 1-4) अथवा पसीने (विष्णु धर्म. 1-15) या क्रमश: रजोगुण और तमोगुण (महा. शांति., 355/22; पद्म. सृ., 40) से हुई थी। जब ये ब्रह्मा को मारने दौड़े तो विष्णु ने इनका वध कर दिया। तभी से विष्णु मधुसूदन और कैटभजित् कहलाए। मार्कंडेय पुराण के अनुसार उमा ने कैटभ को मारा था जिससे वे कैटभा कहलाईं। महाभारत और हरिवंश पुराण का मत है कि इन असुरों के मेदा के ढेर के कारण पृथ्वी का नाम मेदिनी पड़ा था। पद्मपुराण के अनुसार देवासुर संग्राम में ये हिरण्याक्ष की ओर थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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