महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 90 श्लोक 16-32

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नवतितमो (90) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: नवतितमो अध्याय: श्लोक 16-32 का हिन्दी अनुवाद


जो मूर्ख मनुष्य जान-बूझकर वैसे पंक्तिदूषक ब्राह्माणों को श्राद्ध में अन्न का दान करते हैं, उनके पितर परलोक में निश्‍चय ही उनकी विष्ठा खाते हैं। इन अधम ब्राह्माणों को पंक्ति से बाहर रखने योग्य जानना चाहिये। जो मूढ़ ब्राह्माण शूद्रों को वेद का उपदेश कराते हैं, वे भी अपांक्तेय (अर्थात पंक्ति बाहर) ही हैं। राजन ! काना मनुष्य पंक्ति में बैठे साठ मनुष्यों को दूषित कर देता है। जो नपुंसक है, वह सौ मनुष्यों को अपवित्र बना देता है। तथा जो सफेद कोढ़ का रोगी है, वह वैठे हुए पंक्ति में जितने लोगों का देखता है, उन सबको दूषित कर देता है। जो सिर पर पगड़ी और टोपी रखकर भोजन करता है, जो दक्षिण की ओर मुख करके खाता है तथा जूते पहने भोजन करता है उनका वह सारा भोजन आसुर समझना चाहिये। जो दोष- दृष्टि रखते हुए दान करता है और जो बिना श्राद्ध के देता है, उस सारे दान को ब्रह्माजी ने असुरराज बलि का भाग निश्चित किया है। कुत्तों और पंक्तिदूषक ब्राह्माणों की किसी तरह दृष्टि न पड़े इसके लिये सब ओर से घिरे हुए स्थान में श्राद्ध का दान करें और वहां सब ओर तिल छीटें। जो श्राद्ध तिलों से रहित होता है, अथवा जो क्रोधपूर्वक किया जाता है, उसके हविष्य को यातु धान (राक्षस) और पिशाच लुप्त कर देते हैं। पंक्तिदूषक पुरुष पंक्ति में भोजन करने वाले जितने ब्राह्माणों को देख लेता है, वह मूर्खदाता को उतने ब्राह्माणों के दानजनित फल से वंचित कर देता है । भरतश्रेष्ठ ! अब जिनका वर्णन किया जा रहा है, इन सबको पंक्तिपावन जानना चाहिये। इनका वर्णन इसलिये करूंगा कि तुम ब्राह्माणों की श्राद्ध में परीक्षा कर सको।। विद्या और व्रदव्रत में स्नातक हुए समस्त ब्राह्माण यदि सादाचार में तत्पर रहने वाले हों तो उन्हें सर्वपावन जानना चाहिये । अब मैं पांक्तेय ब्राह्माणों का वर्णन करूंगा। उन्हीं को पंक्तिपावन जानना चाहिये। जो त्रिणाचिकेत नामक मन्त्रों का जप करने वाला, गार्हपत्य आदि पांच अग्नियों का सेवन करने वाला, त्रिसुपर्ण, नामक (त्रिसुपर्णमित्यादि) मन्त्रों का पाठ करने वाला है तथा ‘ब्रह्ममेतु मा्’ इत्यादि तैत्तिरीय-प्रसिद्व आदि छहों अंगों का ज्ञान रखने वाला है ये सब पंक्तिपावन हैं। जो परम्परा से वेद या परविद्या का ज्ञाता अथवा उपदेशक है, जो वेद के छन्दोग शाखा का विद्वान है, जो ज्येष्ठ साममन्त्र का गायक, माता-पिता के वश में रहने वाला और दस पीढि़यों से श्रोत्रिय (वेदपाठी) है, वह भी पंक्तिपावन है । जो अपनी धर्मपत्‍नीयों के साथ सदा ऋतुकाल में ही समागम करता है, वेद और विद्या के व्रत में स्नातक हो चुका है, वह ब्राह्माण-पंक्ति को पवित्र कर देता है। जो अथर्ववेद के ज्ञाता, ब्रह्मचारी, नियमपूर्वक व्रत का पालन करने वाले, सत्यवादी, धर्मशील और अपने कर्तव्य-कर्म में तत्पर हैं, वे पुरुष पंक्तिपावन हैं। जिन्होंने पुण्य तीर्थों में गोता लगाने के लिये श्रम-प्रयत्न किया है, वेदमन्त्रों के उच्चारणपूर्वक अनेकों यज्ञों का अनुष्ठान करके अवभृथ-स्नान किया है; जो क्रोध रहित, चपलता रहित, क्षमाशील, मन को वश में रखने वाले, जितेन्द्रिय और सम्पूर्ण प्राणियों के हितैषी हैं, उन्हीं ब्राह्माणों को श्राद्ध में निमन्त्रित करना चाहिये। क्योंकि ये पंक्तिपावन हैं; अतः इन्हें दिया हुआ दान अक्षय होता है। इनके सिवा दूसरे भी महान भाग्यशाली पंक्तिपावन ब्राह्माण हैं, उन्हें इस प्रकार जानना चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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