महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 102 श्लोक 27-40
द्वयधिकशततम (102) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
धृतराष्ट्र ने कहा- महर्षे। जो समस्त प्राणियों में निष्काम है, जो मांसाहार नहीं करते, किसी भी प्राणी को दण्ड नहीं देते, स्थावर-जंगम प्राणियों की हिंसा नहीं, जिनके लिये समस्त अपने आत्मा के ही तुल्य हैं, जो कामना, ममता और आसक्ति से रहित हैं, लाभ हानि, निंदा तथा प्रशंसा में जो सदा सम भाव रखते हैं, ऐसे लोगों के लिये ही यह उत्तर कुरु नामक लोक है; परंतु धृतराष्ट्र को वहां भी नहीं जाना है । गौतम ने कहा- राजन। उससे भिन्न बहुत-से सनातन लोक हैं, जहां पवित्र गंध छायी रहती है। वहां रजागुण तथा शोक का सर्वथा अभाव है। महात्मा राजा सोम के लोक में उनकी स्थिति है। वहां पहुंचकर मैं तुमसे अपना हाथी वापस लूंगा । धृतराष्ट्र ने कहा- महर्षे। जो सदा दान करते हैं, किंतु दान लेते नहीं, जिनकी दृष्टि में सुयोग्य पात्र के लिये कुछ भी अदेय नहीं है, जो सबका अथिथि-सत्कार करते तथा सबके प्रति कृपा भाव रखते हैं, जो क्षमाशील है, दूसरों से कभी कुछ नहीं बोलते है और जो पुण्यशील महात्मा सदा सबके लिये अन्नसत्ररुप हैं, ऐसे लोगों के लिये ही यह सोम लोक है; परंतु धृतराष्ट्र को वहां भी नहीं जाना है । गौतम ने कहा- राजन। सोम लोक से भी ऊपर कितने ही सनातन लोक प्रकाशित होते हैं, जो रजोगुण, तमोगुण और शोक से रहित हैं। वे महात्मा सूर्यदेव के स्थान हैं। वहां जाकर भी मैं तुमने अपना हाथी वसूल करुंगा । धृतराष्ट्र ने कहा- महर्षे। जो स्वाध्यायशील, गुरुसेवा परायण, तपस्वी, उत्तम व्रतधारी, सत्यप्रतिज्ञ, आचार्यों के प्रतिकूल भाषण न करने वाले, सदा उद्योगशील तथा बिना कहे ही गुरु के कार्य में संलग्न रहने वाले हैं, जिनका भाव विशुद्ध है, जो मौन व्रताबलम्बी,सत्यनिष्ठ और वेदवेत्ता महात्मा है, उन्हीं लोगों के लिये सूर्यदेव का लोक है, परंतु धृतराष्ट्र वहां भी जाने वाला नहीं है । गौतम ने कहा- उसके सिवा दूसरे भी बहुत-से सनातन लोक प्रकाशित होते हैं, जहां पवित्र गंध छायी रहती है। वहां न तो रजोगुण है और न शोक ही। महामना राजा वरुण के लोक में वे स्थान। वहां जाकर मैं तुमसे अपना हाथी वापस लूंगा । धृतराष्ट्र ने कहा- जो लोग सदा चातुर्मास्य याग करते हैं, हजरों इष्टियों का अनुष्ठान करते हैं तथा जो ब्राह्माण तीन वर्षों तक वैदिक विधि के अनुसार प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक अग्निहोत्र करते हैं, धर्म का भार अच्छी तरह वहन करते हैं, वेदोक्त मार्ग पर भलिभांति स्थिर होते हैं, वे धर्मात्मा हात्मा ब्राह्माण वरुणलोक में जाते हैं। धृतराष्ट्र को वहां भी नहीं जाना है। यह उससे भी उत्तम लोक प्राप्त करेगा । गौतम ने कहा- राजन। इन्द्र के लोक रजोगुण और शोक से रहित हैं। उनकी प्राप्ति बहुत कठिन है। सभी मनुष्य उन्हें पाने की इच्छा रखते हैं। उन्हीं महातेजस्वी इन्द्र के भवन में चलकर मैं आपसे अपने इस हाथी को वापस लूंगा । धृतराष्ट्र ने कहा- जो सौ वर्ष तक जीने वाला शूरवीर मनुष्य वेदों का स्वाध्याय करता, यज्ञ में तत्पर रहता और कभी प्रमाद नहीं करता है ऐसे ही लोग इन्द्रलोक में जाते हैं। धृतराष्ट्र उससे भी उत्तम लोक में जायेगा। उसे वहां भी नहीं जाना है । गौतम बोले- राजन। स्वर्ग के शिखर पर प्रजापति के महान लोक हैं जो हुष्ट-पुष्ट और शोक रहित हैं। संपूर्ण जगत के प्राणी उन्हें पाना चाहते हैं। मैं वहीं जाकर तुमसे अपना हाथी वापस लूंगा ।
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