महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 104 श्लोक 149-156
चतुरधिकशततम (104) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
राजा माननीय पुरूषों का सम्मान और निंदनीय मनुष्यों की निंदा करे। वह गौओं तथा ब्राहम्णों के लिये युद्व करे। उनकी रक्षा के लिये आवश्यकता हो तो प्राणों को भी न्यौछावर कर दे । अपनी पत्नि भी रजस्वला हो तो उसके पास न जाये और न उसे ही अपने पास बुलाय। जब चौथे दिन वह स्नान करले तब रात में बुद्धिमान पुरूष उसके पास जाय। पांचवे दिन गर्भाधान करने से कन्या की उत्पत्ति होती है और छठे दिन पुत्र की अर्थात समरात्रि में गर्भाधान से पुत्र का और विषम रात्रि में गर्भाधान से कन्या का जन्म होता है । इस विधि से विद्वान पुरूष पत्नि के साथ समागम करे। भाई-बन्धु, सम्बन्धी और मित्र इन सबका सब प्रकार आदर करना चाहिये । अपनी शक्ति के अनुसार भांति-भांति की दक्षिणा वाले यज्ञों का अनुष्ठान करना चाहिये। नरेश्वर। तदनन्तर गार्हस्थ्य की अवधि समाप्त हो जाने पर वाणप्रस्थ के नियमों का पालन करते हुए वन में निवास करना चाहिये । युधिष्ठिर। इस प्रकार मैंने तुमसे आयु की वृद्वि करने वाले नियमों का संक्षेप में वर्णन किया है। जो नियम बाकी रह गये हैं, उन्हें तुम तीनों वेदों के ज्ञान में बढ़े-चढ़े ब्राह्माण से पूछ कर जान लेना । सदाचारी कल्याण का जनक और सदाचारी कीर्ति का बढाने वाला है। सदाचार से ही आयु की वृद्वि होती है और सदाचार ही बुरे लक्षणों का नाश करता है । सम्पूर्ण आगमों में सदाचारी श्रेष्ठ बतलाया जाता है। सदाचार से धर्म की उत्पत्ति होती है और धर्म से आयु बढ़ती है । पूर्वकाल में सब वर्णों के लोगों पर दया करके ब्रह्माजी ने यह सदाचार धर्म का उपदेश दिया था। यह यश, आयु और स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाला तथा कल्याण का परम आधार है । नरेश्वर। जो प्रतिदिन इस प्रसंग सुनता और कहता है वह सदाचार व्रत के प्रभाव शुभ लोकों में जाता है।
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