महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 121 श्लोक 14-17
एकविंशत्यधिकशततम (121) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: एकविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 14-17 का हिन्दी अनुवाद
‘दान देने वाले को जो पुण्य होता है, वही दान लेने वाले को भी ( यदि वह योग्य अधिकारी है तो ) होता है। ( क्योंकि दोनों एक दूसरे के उपकारक होते हैं) एक पहिये से गाड़ी नहीं चलती- प्रतिग्रहीता के बिना दाता का दान सफल नहीं हो सकता।’ ऐसी ऋषियों की मान्यता है। जहाँ विद्वान् और सदाचारी ब्राह्मण रहते हैं, वहीं दिये हुए दान का फल इहलोक और परलोक में मनुष्य भोगता है। जो ब्राह्मण विशुद्ध कुल में उत्पन्न, निरन्तर तपस्या में संलग्न रहने वाले, बहुत दान परायण तथा अध्ययन सम्पन्न हैं, वे ही सदा पूज्य माने गये हैं। ऐसे सत्पुरुषों ने जिस मार्ग का निर्माण किया है, उससे चलने वाले को कभी मोह नहीं होता; क्योंकि वे मनुष्यों को स्वर्गलोक में ले जाने वाले तथा सनातन यज्ञ निर्वाहक हैं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में मैत्रेय की भिक्षा विषयक एक सौ इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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