महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 126 श्लोक 17-37
षड्विंशत्यधिकशततम (126) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
बलदेवजी ने कहा- जो मनुष्यों को सुख देने वाला है तथा मूर्ख मानव जिसे जानने के कारण भूतों से पीड़ित हो नाना प्रकार के कष्ट उठाते रहते हैं, वह परम गोपनीय विषय मैं बता रहा हूँ; उसे सुनो। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात; काल उठकर गाय, घी, दही, सरसों और राई का स्पर्श करता है, वह पाप से मुक्त हो जाता है। तपस्वी पुरुष आगे श्या पीछे से आने वाले सभी हिंसक जन्तुओं को त्याग देते- उन्हें छोड़कर दूर हट जाते हैं । इसी प्रकार संकट के समय भी वे उच्छिष्ट वस्तु का सदा परित्याग ही करते हैं। देवता बोले- मनुष्य जल से भरा हुआ तॉंबे का पात्र लेकर उत्तराभिमुख हो उपवास का नियम ले अथवा और किसी व्रत का संकल्प करे। जो ऐसा करता है, उसके ऊपर देवता संतुष्ट होते हैं और उसकी सारी मनोवांछा सिद्ध हो जाती है; परन्तु मंदबुद्धि मानव ऐसा न करके व्यर्थ दूसरे-दूसरे कार्य किया करते हैं। उपवास का संकल्प लेने और पूजा का उपचार समर्पित करने में ताम्रपात्र को उत्तम माना गया है । पूजन-साम्रगी, भिक्षा, अर्ध्य तथा पितरों के लिये तिल-मिश्रित जल ताम्रपात्र के द्वारा देने चाहिये अन्यथा उनका फल बहुत थोड़ा होता है। यह अत्यन्त गोपनीय बात बताई गयी है।
इसके अनुसार कार्य करने से देवता संतुष्ट होते हैं। धर्म ने कहा- ब्राह्मण यदि राजा कर्मचारी हो, वेतन लेकर घण्टा बजाने का काम करता हो, दूसरों का सेवक हो, गोरक्षा एवं वाणिज्य व्यवसाय करता हो, शिल्पी या नट हो, मित्रद्रोही हो, वेद न पढ़ा हो अथवा शूद्र जाति की स्त्री का पति हो, ऐसे लोगों को किसी तरह भी देवकार्य (यज्ञ) और पितृकार्य (श्राद्ध) का अन्न देते हैं, उनकी अवनति होती है तथा उनके पितरों को भी तृप्ति नहीं होती। जिसके घर से अतिथि निराश लौट जाता है, उसके यहॉं से अतिथि का सत्कार न होने के कारण देवता, पितर तथा अग्नि भी निराश लौट जाते हैं। जिसके यहाँ अतिथि का सत्कार नहीं होता, उस पुरूष को स्त्रीहत्यारों, गोघातकों, कृतध्नों, ब्रह्मघातियों और गुरूपत्नीगामियों के समान पाप लगता है। अग्नि बोले – जो दुर्बुद्धि मनुष्य लात उठाकर अससे गौका, महाभाग ब्राह्मण का अथवा प्रज्वलित अग्नि का स्पर्श करता है, उसके दोष बता रहा हूँ, सब लोग एकाग्रचित्त होकर सुनों।
ऐसे मनुष्य की अपकीर्ति स्वर्ग तक फैल जाती है । उसके पितर भयभीत हो उठते हैं । देवताओं में भी उसके प्रति भारी वैमनस्य हो जाता है तथा महातेजस्वी पावक उसके दिये हुए हविष्य को नहीं ग्रहण करते हैं। वह सौ जन्मों तक नरक में पकाया जाता है । ॠषिगण कभी उसके उद्धार का अनुमोदन नहीं करते हैं। इसलिये अपना हित चाहने वाले श्रद्धालु पुरूष को गौओं का, महातेजस्वी ब्राह्मणका तथा प्रज्वलित अग्नि का भी कभी पैर से स्पर्श नहीं करना चाहिये । जो इन तीनों पर पैर उठाता है, उसे प्राप्त होने वाले इन दोषों का मैंने वर्णन किया है। विश्वामित्र बोले – देवताओं ! यह धर्मसम्बन्धी परम गोपनीय रहस्य सुनो, जब भाद्रपदमास के कृष्णपक्ष में त्रयोदशी तिथि को मधा नक्षत्र का योग हो, उस समय जो मनुष्य दक्षिणाभिमुख हो कुतप काल में (मध्याह्न के बाद आठवें मुहूर्त में) जब कि हाथी की छाया पूर्व दिशा की ओर पड़ रही हो, उस छाया में ही स्थित हो पितरों के निमित्त उपहार के रूप में उत्तम अन्न का दान करता है, उस दान का जैसाविस्तृत फल बताया गया है, वह सुनो । दान करने वाले उस पुरूष ने इस जगत में तेरह वर्षों के लिये पितरों का महान श्राद्ध सम्पन्न कर दिया, ऐसा जानना चाहिये।
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