महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 127 श्लोक 1-19
सप्तविंशत्यधिकशततम (127) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
अग्नि, लक्ष्मी, अंगिरा, गार्ग्य, धौम्य तथा जमदग्नि के द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन
अग्नि देन ने कहा – जो मनुष्य पूर्णिमा तिथि को चन्द्रोदय के समय चन्द्रमा की ओर मुँह करके उन्हें जल की भरी हुई एक अंजलि घी और अक्षत के साथ भेंट करता है, उसने अग्निहोत्र का कार्य सम्पन्न कर लिया । असके द्वारा गार्हपत्य आदि तीनों अग्नियों को भलीभाँति आहुति दे दी गयी। जो मूर्ख अमावस्या के दिन किसी वनस्पति का एक पत्ता भी तोड़ता है, उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है।
जो बुद्धिहीन मानव अमावस्या तिथि को दन्तधावन काष्ठ चबाता है, उसके द्वारा चन्द्रमा की हिंसा होती है और पितर भी उससे उदिग्न हो उठते हैं।
पर्व के दिन उसके दिये हुए हविष्य को देवता नहीं ग्रहण करते हैं । उसके पितर भी कुपित हो जाते हैं और उसके कुल में वंश की हानि होती है। लक्ष्मी बोलीं – जिस घर में सब पात्र इधर-उधर बिखरे पड़े हों, बर्तन फूटे और आसन फटे हों तथा जहाँ स्त्रियाँ मारी-पीटी जाती हों, वह घर पाप के कारण दूषित होता है । पाप से दूषित हुए उस गृह से उत्सव और पर्व के अवसरों पर देवता और पितर निराश लौट जाते हैं – उस घर की पूजा नहीं स्वीकार करते। अंगिरा ने कहा – जो पूरे एक वर्षतक करंज (करज) वृक्ष के नीचे दीपदान करे और ब्राह्मीबूटी की जड़ हाथ में लिये रहे, उसकी संतति बढती है। गार्ग्य ने कहा – सदा अतिथियों का सत्कार करें, घर में दीपक जलायें, दिन में सोना छोड़ दे।
मांस कभी न खाय। गौ और ब्राह्मण की हत्या न करे तथा तीनों पुष्कर तीर्थों का प्रतिदिन नाम लिया करे। यह रहस्यसहित श्रेष्ठतम धर्म महान फल देने वाला है। सैकड़ों बार किये हुए यज्ञ का फल भी क्षीण हो जाता है; किंतु श्रद्धालु पुरूषों द्वारा उपर्युक्त धर्मों का पालन किया जाय तो वे कभी क्षीण नहीं होते। यह परम गोपनीय रहस्य की बात सुनो । श्राद्ध में, यज्ञ में, तीर्थ में और पर्वों के दिन देवताओं के लिये जा हविष्य तैयार किया जाता है, उसे यदि रजस्वला, कोढी अथवा वन्ध्या स्त्री देख ले तो उनके नेत्रों द्वारा देखे हुए हविष्य को देवता नहीं ग्रहण करते हैं तथा पितर भी तेरह वर्षों तक असंतुष्ट रहते हैं।
श्राद्ध और यज्ञ के दिन मनुष्य स्नान आदि से पवित्र होकर श्वेत वस्त्र धारण् करे । ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराये तथा महाभारत (गीता आदि) का पाठ करे । ऐसा करने से उसका हव्य और कव्य अक्षय होता है। धौम्य बोले – घर में फूटे बर्तन, टूटी खाट, मुर्गा, कुत्ता और अश्वत्थादि वृक्ष का होना अच्छा नहीं माना गया है। फूटे बर्तन में कलियुग का वास कहा गया है । टूटी खाट रहने से धन की हानि होती है । मुर्गे और कुत्ते के रहने पर देवता उस घर में हविष्य नहीं ग्रहण करते तथा मकान के अंदर कोई बड़ा वृक्ष होने पर उसकी जड़ के अंद साँप, बिच्छू आदि जन्तुओं का रहना अनिवार्य हो जाता है; इसलिये घर के भीतर पेड़ न लगावे। जमदग्नि बोले – कोई अश्वमेध या सैकड़ों बाजपेय यज्ञ करे, नीचे मस्तक करके वृक्ष में लटके अथवा समृद्धिशाली सत्र खोल दे; किंतु जिसका हृदय शुद्ध नहीं है, वह पापी निश्चय ही नकर में जाता है; क्योंकि यज्ञ, सत्य और हृदय की शुद्धि तीनों बराबर हैं। (प्राचीन समय में एक ब्राह्मण) शुद्ध हृदय से ब्राह्मण को सेर भर सत्तू दान केरके ही ब्रह्मलोक को प्राप्त हुआ था। हृदय की शुद्धि का महत्त्व बताने के लिये यह एक ही दृष्टान्त पर्याप्त होगा।
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