महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 146 श्लोक 1-18

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षट्चत्वारिंशदधिकशततम (146) अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर: षट्चत्वारिंशदधिकशततमअध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

पार्वतीजी के द्वारा स्त्री-धर्म का वर्णन नारदजी कहते हैं- ऐसा कहकर महादेवजी स्वयं भी पार्वतजी के मुँह से कुछ सुनने की इच्छा करने लगे। अतएव स्वयं भगवान शिव ने पास ही बैठी हुई अपनी प्रिय एवं अनुकूल भार्या पार्वती से कहा। श्रीमहेश्वर बोले- तपोवन में निवास करने वाली देवि! तुम भूत और भविष्य को जानने वाली, धर्म के तत्व को समझने वाली और स्वयं भी धर्म का आचरण करने वाली हो। सुन्दर केशों और भौंहों वाली सती-साध्वी हिमवान्- कुमारी! तुम कार्यकुशल हो, इन्द्रियसंयम और मनोनिग्रह से भी सम्पन्न हो। तुममें अहंता और ममता का सर्वथा अभाव है, अतः वरारोहे! मै। तुमसे एक बात पूछता हूँ। मेरे पूछने पर तुम मुझे मेरे अभीष्ट विषय को बताओ। ब्रह्माजी की पत्नी साध्वी हैं। इन्द्रपत्नी शची भी सती हैं। विष्णु की प्यारी पत्नी लक्ष्मी पतिव्रता हैं। इसी प्रकार यम की भार्या धृति, मार्कण्डेय की पत्नी धूमोर्णा, कुबेर की स्त्री ऋद्धि, वरूण की भार्या गौरी, सूर्य की पत्नी सुवर्चला, चन्द्रमा की साध्वी स्त्री रोहिणी, अग्नि की भार्या स्वाहा और कश्यप की पत्नी अतिति- ये सब-की-सब पतिव्रता देवियाँ हैं। देवि! तुमने इन सबका सदा संग कियाहै और इन सबसे धर्म की बात पूछी है। अतः धर्मवादिनि धर्मज्ञे! मैं तुमसे स्त्रीधर्म के विषय में प्रश्न करता हूँ और तुम्हारे मुख से वर्णित नारीधर्म आद्योपान्त सुनना चाहता हूँ। तुम मेरी सहधर्मिणी हो। तुम्हारा शील-स्वभाव तथा व्रत मेरे समान ही है। तुम्हारी सारभूत शक्ति भी मुझसे कम नहीं है। तुमने तीव्र तपस्या भी की है। अतः देवि! तुम्हारे द्वारा कहा गया स्त्रीधर्म विशेष गुणवान् होगा और लोक में प्रमाणभूत माना जायगा। विशेषतः स्त्रियाँ ही स्त्रियों की परम गति हैं। सुश्रोणि! संसार में भूतल पर यह बात सदा से प्रचलित है। मेरा आधा शरीर तुम्हारे आधे शरीर से निर्मित हुआ है। तुम देवताओं का कार्य सिद्ध करने वाली तथा लोक-संतति का विस्तार करने वाली हो। अनिन्दिते! नारी की कही हुई जो बात होती है, उसे ही स्त्रियों में अधिक महत्व दिया जाता है। पुरूषां की कही हुई बात को स्त्रियों में वैसा महत्व नहीं दिया जाता। शुभे! तुम्हें सम्पूर्ण सनातन स्त्रीधर्म का भलीभाँति ज्ञान है,अतः अपने धर्म का पूर्णरूप से विस्तारपूर्वक मेरे आगे वर्णन करो। उमा ने कहा- भगवन्! सर्वभूतेश्वर! भूत, भविष्य और वर्तमानकालस्वरूप सर्वश्रेष्ठ महादेव! आपके प्रभाव से मेरी यह वाणी प्रतिभासम्पन्न हो रही है- अब मैं स्त्रीधर्म का वर्णन कर सकती हूँ। किंतु देवेश्वर! ये नदियाँ सम्पूर्ण तीर्थों के जल से सम्पन्न हो आपके स्नान और आचमन आदि के लिये अथवा आपके चरणों का स्पर्श करने के लिये यहाँ आपके निकट आ रही हैं। मैं इन सबके साथ सलाह करके क्रमशः स्त्रीधर्म का वर्णन करूँगी। जो व्यक्ति समर्थ होकर भी अहंकारशून्य हो, वही पुरूष कहलाता है। भूतनाथ! स्त्री सदा स्त्री का ही अनुसरण करती है। मेरे ऐसा करने से ये श्रेष्ठ सरिताएँ मेरे द्वारा सम्मानित होंगी। ये नदियों में उत्तम पुण्यसलिला सरस्वती विराजमान हैं, जो समुद्र में मिली हुई हैं। ये समस्त सरिताओं में प्रथम (प्रधान) मानी जाती हैं। इनके सिवा विपाशा (व्यास), वितस्ता (झेलम), चन्द्रभागा (चनाव), इरावती (रावी) शतद्रू (शतलज), देविका, सिन्धु कौशिकी (कोसी), गौतमी (गोदावरी), यमुना, नर्मदा तथा कावेरी नदी भी यहाँ विद्यमान हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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