महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 204-212

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चतुर्दश (14) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 204-212 का हिन्दी अनुवाद

जिस भगवान में ब्रह्मा और विष्‍णु से भी उत्‍तम ऐश्‍वर्य है, वह परमेश्‍वर महादेव के सिवा दूसरा कौन है ? यह बताओ तो सही । दैत्‍यों ओर दानवों के प्रमुख वीर हिरण्‍यकशिपु आदि में जो तीनों लोकों पर आधिपत्‍य स्‍थापित करने और अपने शत्रुओं को कुचल देने की शक्ति सुनी गयी है, उस पर दृष्टि पात करके मैं यह पूछ रहा हूं कि देवेश्‍वर महादेव के सिवा दूसरा कौन ऐसा है जो दिति के पुत्रों को इस प्रकार अनुपम ऐश्‍वर्य सम्‍पन्‍न कर सके ? दिशा, काल, सूर्य, अग्नि, अन्‍य ग्रह, वायु, चन्‍द्रमा और नक्षत्र – ये महोदेव जी की कृपा से ही ऐसे प्रभावशाली हुए हैं । इस बात को तुम जानते हो, अत: तुम्‍ही बताओं, परमेश्‍वर महादेव जी के सिवा दूसरा कौन ऐसी अचिन्‍त्‍य शक्ति से सम्पन्‍न है ? यज्ञ की उत्‍पति और त्रिपुरा का विनाश भी उन्‍हीं के द्वारा सम्‍पन्‍न हुआ है । प्रधान-प्रधान दैत्‍यों और दानवों को आधिपत्‍य प्रदान करने और शत्रुमर्दन की शक्ति देने वाले भी वे ही हैं । सुरश्रेष्‍ठ पुरंदर ! कौशिकवंशावतंस इन्‍द्र ! यहां बहुत-सी युक्तियुक्‍त सूक्तियों को सुनाने से क्‍या लाभ ? आप जो सहस्‍त्र नेत्रों से सुशोभित हैं तथा आपको देखकर सिद्ध, गन्‍र्धर्व, देवता और ऋषि जो सम्‍मान प्रदर्शित करते हैं, वह सब देवाधिदेव महादेव के प्रसाद से ही संभव हुआ है । जिस भगवान में ब्रह्मा और विष्‍णु से भी उत्‍तम ऐश्‍वर्य है, वह परमेश्‍वर महादेव के सिवा दूसरा कौन है ? यह बताओ तो सही । दैत्‍यों ओर दानवों के प्रमुख वीर हिरण्‍यकशिपु आदि में जो तीनों लोकों पर आधिपत्‍य स्‍थापित करने और अपने शत्रुओं को कुचल देने की शक्ति सुनी गयी है, उस पर दृष्टि पात करके मैं यह पूछ रहा हूं कि देवेश्‍वर महादेव के सिवा दूसरा कौन ऐसा है जो दिति के पुत्रों को इस प्रकार अनुपम ऐश्‍वर्य सम्‍पन्‍न कर सके ? दिशा, काल, सूर्य, अग्नि, अन्‍य ग्रह, वायु, चन्‍द्रमा और नक्षत्र – ये महोदेव जी की कृपा से ही ऐसे प्रभावशाली हुए हैं । इस बात को तुम जानते हो, अत: तुम्‍ही बताओं, परमेश्‍वर महादेव जी के सिवा दूसरा कौन ऐसी अचिन्‍त्‍य शक्ति से सम्पन्‍न है ? यज्ञ की उत्‍पति और त्रिपुरा का विनाश भी उन्‍हीं के द्वारा सम्‍पन्‍न हुआ है । प्रधान-प्रधान दैत्‍यों और दानवों को आधिपत्‍य प्रदान करने और शत्रुमर्दन की शक्ति देने वाले भी वे ही हैं । सुरश्रेष्‍ठ पुरंदर ! कौशिकवंशावतंस इन्‍द्र ! यहां बहुत-सी युक्तियुक्‍त सूक्तियों को सुनाने से क्‍या लाभ ? आप जो सहस्‍त्र नेत्रों से सुशोभित हैं तथा आपको देखकर सिद्ध, गन्‍र्धर्व, देवता और ऋषि जो सम्‍मान प्रदर्शित करते हैं, वह सब देवाधिदेव महादेव के प्रसाद से ही संभव हुआ है । इन्‍द्र ! चेतन और अचेतन आदि समस्‍त पदार्थों में 'यह ऐसा है' इस प्रकार जो लक्षण देखा जाता है, वह सब अव्‍यक्‍त, मुक्तकेश एवं सर्वव्‍यापी महादेवजी के ही प्रभाव से प्रकट है, अतएव सब कुछ महेश्‍वर से ही उत्‍पन्‍न हुआ है- ऐसा समझो । भगवान् देवराज! भूलोक से लेकर महर्लोक तक समस्‍त लोक-लोकान्‍तरों में, पर्वत के मध्‍य भाग में, सम्‍पूर्ण द्वीप स्‍थानों में, मेरूपर्वत के वैभवपूर्ण प्रान्‍तों में सर्वत्र ही तत्‍वदर्शी पुरूष महादेवजी की स्थिति बताते हैं । शुक्र ! यदि तेजस्‍वी देवगण महादेवजी के सिवा दूसरा कोई सराहा देखते हैं तो असुरों द्वारा कुचले जाने पर वे उसी की शरण में क्‍यों नहीं जाते हैं ?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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