महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 274-292
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चतुर्दश (14) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
उसकी धार चमक रही थी, उसका मुखभाग बड़ा भयंकर जान पड़ता था । वह सर्पयुक्त कण्ठवाले महादेव जी के अग्रभाग में स्थित था । इस प्रकार शूलधारी भगवान् शिव के समीप वह परशु सैकड़ों प्रज्वलित अग्नियों के समान देदीप्यमान होता था । निष्पाप श्रीकृष्ण ! बुद्धिमान् भगवान् शिव के असंख्य दिव्यास्त्र हैं । मैंने यहां आपके सामने इन प्रमुख अस्त्रों का वर्णन किया है । उस समय महादेवजी के दाहिने भाग में लोकपितामह ब्रहृा मन के समान वेगशाली हंसयुक्त दिव्य विमानपर बैठे हुए शोभा पा रहे थे और बायें भाग में शंख, चक्र और गदा धारण किये भगवान् नारायण गरूडपर विराजमान थे । कुमार स्कन्द मोरपर चढ़कर हाथ में शक्ति और घंटा लिये पार्वती देवी के पास ही खड़े थे । वे दूसरे अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे । महादेवजी आगे मैंने नन्दी को उपस्थित देखा, जो शूल उठाये दूसरे शंकर के समान खड़े थे । स्वायम्भुव आदि मनु, भृगु आदि ऋषि तथा इन्द्र आदि देवता - ये सभी वहां पधारे थे । समस्त भूतगण और नाना प्रकार की मातृकाएं उपस्थित थी । वे सब देवता महात्मा महादेवजी को चारों ओर से घेरकर नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति कर रहे थे । ब्रहृाजी ने रथन्तर सामका उच्चारण करके उस समय भगवान् शंकर की स्तुति की । नारायण ने ज्येष्ठसाम द्वारा देवेश्वर शिव की महिमा का गान किया । इन्द्र ने उत्तम शतरूद्रियका सरस्वर पाठ करते हुए परब्रहृा शिव का स्तवन किया । ब्रहृा, नारायण और देवराज इन्द्र - ये तीनों महात्मा तीन अग्नियों के समान शोभा पा रहे थे । इन तीनों के बीच में विराजमान भगवान् शिव शरद्-ऋतु के बादलों के आवरण से मुक्त हो परिधि (घेरे)-में स्थित हुए सूर्य देव के समान शोभा पा रहे थे ।केशव ! उस समय मैंने आकाश में सहस्त्रों चन्द्रमा और सूर्य देखे । तदनन्तर मैं सम्पूर्ण जगत् के पालक महादेवजी की स्तुति करने लगा । उपमन्यु बोले - प्रभो ! आप देवताओं के भी अधिदेवता हैं । आपको नमस्कार है । आप ही महान् देवता हैं, आपकों नमस्कार है । इन्द्र आपके ही रूप हैं । आप ही साक्षात् इन्द्र हैं तथा आप इन्द्रका -सा वेश धारण करने वाले हैं । इन्द्र के रूप में आप ही अपने हाथ में वज्र लिये रहते हैं । आपका वर्ण पिंगल और अरूण है, आपको नमस्कार है । आपके हाथ में पिनाक शोभा पाता है । आप सदा शंख और त्रिशूल धारण करते हैं । आपके वस्त्र काले हैं तथा आप मस्तक पर काले घुंघराले केश धारण करते है, आपको नमस्कार है । काला मृगर्च आपका दुपट्टा है। आप श्रीकृष्णाष्टमी व्रत में तत्पर रहते हैं । आपका वर्ण शुक्ल है । आप स्वरूप से भी शुक्ल (शुद्ध) हैं तथा आप श्वेत वस्त्र धारण करते हैं। आपको नमस्कार है । आप अपने सारे अंगों में श्वेत भस्म लपेटे रहते हैं। विशुद्ध कर्म में अनुरक्त हैं। कभी-कभी आप रक्त वर्ण के हो जाते हैं और लाल वस्त्र धारण कर लेते हैं। आपको नमस्कार है । रक्ताम्बरधारी होने पर आप अपनी ध्वजा-पताका भी लाल ही रखते हैं । लाल फूलों की माला पहनकर अपने श्रीअंगों में लाल चन्दन का ही लेप लगाते है। किसी समय आपकी अंगकान्ति पीले रंग की हो जाती है। ऐसे समय में आप पीताम्बर धारण करते हैं । आपको नमस्कार है ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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