महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 425-429
चतुर्दश (14) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
ब्राहृाणों के समुदाय, देवता, असुर, नाग, पिशाच, पितर, पक्षी, राक्षसगण, समस्त भूतगण तथा महर्षि भी उस समय भगवान शिव को प्रणाम करने लगे । मेरे मस्तक पर ढेर-के-ढेर दिव्य सुगन्धित पुष्पों की वर्षा होने लगी तथा अत्यंत सुखदायक हवा चलने लगी । जगत् के हितैषी भगवान शंकर ने उमादेवी की ओर देखकर मेरी ओर देखा और फिर इन्द्र पर दृष्टिपात करके स्वयं मुझसे कहा – ‘शत्रुहन् श्रीकृष्ण ! मुझमें जो तुम्हारी पराभक्ति है, उसे सब लोग जानते हैं, अब तुम अपना कल्याण करो, क्योंकि तुम्हारे उपर मेरा विशेष प्रेम है । ‘सत्पुरूषों में श्रेष्ठ ! यदुकुल सिंह श्रीकृष्ण ! मैं तुम्हें आठ वर देता हूं । तुम जिन परम दुर्लभ वरों को पाना चाहते हो, उन्हें बताओ’ ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में मेघवाहनपर्व आख्यानविषयक चौदहवां अध्याय पूरा हुआ ।
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