महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 151 श्लोक 17-23

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एकपन्चाशदधिकशततम (151) अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर: एकपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-23 का हिन्दी अनुवाद


उन्हीं महात्माओं के शप से समुद्र का पानी पीने योग्य नहीं रहा। उनकी क्रोधाग्नि दण्डकारण्य में आज तक शान्त नहीं हुई। वे देवताओं के भी देवता, कारण के भी कारण और प्रमाण के भी प्रमाण हैं। भला कौन मनुष्य बुद्धिमान् होकर भी ब्राह्मणों का अपमान करेगा। ब्राह्मणों में कोई बूढ़े हों या बालक सभी सम्मान के योग्य हैं। ब्राह्मण लोग आपस में तप और विद्या की अधिकता देखकर एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। विद्याहीन ब्राह्मण भी देवता के समान और परम पवित्र पात्र माना गया है। फिर जो विद्वान है उसके लिये तो कहना ही क्या है। वह महान् देवता के समान है और भरे हुए महासागर के समान सद्गुण सम्पन्न है। ब्राह्मण विद्वान हो या अविद्वान् इस भूतल का महान् देवता है। जैसे अग्नि पन्चभू-संस्कारपूर्वक स्थापित हो या न हो, वह महान् देवता ही है। तेजस्वी अग्निदेव श्मशान में हों तो भी दूषित नहीं होते। विधिवत् हविष्य से सम्पादित होने वाले यज्ञ में तथा घर में भी उनकी अधिकाधिक शोभा होती है। इस प्रकार यद्यपि ब्राह्मण सब प्रकार के अनिष्ट कर्मों में लगा हो तो भी वह सर्वथा माननीय है। उसे परम देवता समझो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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