महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 154 श्लोक 18-32

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चतुष्पन्चाशदधिकशततम (154) अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर: चतुष्पन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-32 का हिन्दी अनुवाद


‘वरूण! तुम मेरे कहने से मेरी पत्नी को छोड़ दो। तुमने क्यों उसका अपहरण किया है? तुम लोगों के लिये लोकपाल बनाये गये हो, लोक-विनाशक नहीं। सोम ने अपनी कन्या मुझे दी है, वह मेरी भार्या है। फिर आज तुमने उसका अपहरण कैसे किया?’ नारदजी ने उतथ्य के कथनानुसार जलेश्वर वरूण से यह कहा कि ‘आप उतथ्य की स्त्री को छोड़ दीजिये, आपने क्यों उसका अपहरण किया है?’। ‘नारदजी के मुख से उतथ्य की यह बात सुनकर वरूण ने उनसे कहा- ‘यह मेरी अत्यन्त प्यारी भार्या है। मैं इसे छोड़ नहीं सकता’।‘वरूण के इस प्रकार उत्तर देने पर नारदजी उतथ्य मुनि के पास लौट गये और खिन्न से होकर बोले-‘महामुने! वरूण ने मेरा गला पकड़कर ढकेल दिया है। वे आपकी पत्नी को नहीं दे रहे हैं, अब आपको जो कुछ करना हो, वह कीजिये’। ‘नारदजी की बात सुनकर अंगिरा के पुत्र उतथ्य क्रोध से जल उठे। वे महान् तपस्वी तो थे ही, अपने तेज से सारे जल को स्तम्भित करके पीने लगे। ‘जब सारा जल पीया जाने लगा, तब सुहृदों ने जलेश्वर वरूण से प्रार्थना की तो भी वे भद्रा को न छोड़ सके। ‘तब ब्राह्मणों में श्रेष्ठ उतथ्य ने कुपित होकर पृथ्वी से कहा- ‘भद्रे! तू मुझे वह स्थान दिखा दे जहाँ छः हजार बिजलियों का प्रकाश छाया हुआ है’। ‘समुद्र के सूखने या खिसक जाने से वहाँ का सारा स्थान ऊसर हो गया। उस देश से होकर बहने वाली सरस्वती नदी से द्विजश्रेष्ठ उतथ्य ने कहा- ‘भीरू सरस्वति! तुम अदृश्य होकर मरू प्रदेश में चली जाओ। शुभे! तुम्हारे द्वारा परित्यक्त होकर यह देश अपवित्र हो जाय’। ‘जब वह सारा प्रदेश सूख गया, तब जलेश्वर वरूण भद्रा को साथ लेकर मुनि की शरण में आये और उन्होंने आंगिरस को उनकी भार्या दे दी। ‘हैहयराज! अपनी उस पत्नी को पाकर उतथ्य बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने सम्पूर्ण जगत् तथवरूण को जल के कष्ट से मुक्त कर दिया। ‘नरेश्वर! अपनी उस पत्नी को पाकर महातेजस्वी धर्मज्ञ उतथ्य ने वरूण से जो कुछ कहा, वह सुनो। ‘जलेश्वर! तुम्हारे चिल्लाने पर भी मैंने तपोबल से अपनी इस पत्नी को प्राप्त कर लिया।’ ऐसा कहकर वे भद्रा को साथ ले अपने घर को लौट गये। ‘राजन्! ये ब्राह्मणशिरोमणि उतथ्य ऐसे प्रभावशाली हैं। यह बात मैं कहता हूँ। यदि उतथ्य से श्रेष्ठ कोई क्षत्रिय हो तो तुम उसे बताओ’।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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