महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 155 श्लोक 19-26
पन्चपन्चाशदधिकशततम (155) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
‘फिर सरोवर के जल को सौ योजन ऊँचे उछालते तथा हाथ में महाघोर पर्वत, परिघ एवं वृक्ष लिये हुएवे देवताओं पर टूट पड़ते थे। उन दानवों की संख्या दस हजार की थी। जब उन्होंने देवताओं को अच्छी तरह पीडि़त किया, तब वे भागकर इन्द्र की शरण में गये। ‘इन्द्र को भी उन दैत्यों से भिड़कर महान् क्लेश उठाना पड़ा, अतः वे वसिष्ठजी की शरण में गये। तब उन भगवान् वसिष्ठ मुनि ने, जो बड़े ही दयालु थे, देवताओं को दुखी जानकर उन्हें अभयदान दे दिया और बिना किसी प्रयत्न के ही अपने तेज से उन समस्त खली नाम के दानवों को दग्ध कर डाला। ‘इतना ही नहीं- वे महातपस्वी मुनि कैलास की ओर प्रस्थित हुई गंगा नदी को उस दिव्य सरोवर में ले आये। गंगाजी ने उसमें आते ही उस सरोवर का बाँध तोड़ डाला। गंगा से सरोवर का भेदन होने पर जो स्त्रोत निकला, वही सरयू नदी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जिस स्थान पर खली नामक दानव मारे गये, वह देश खलिन नाम से विख्यात हुआ।‘इस प्रकार महात्मा वसिष्ठ ने इन्द्रसहित देवताओं की रक्षा की और ब्रह्माजी ने जिनके लिये वर दिया था, ऐसे दैत्यों का भी संहार कर डाला।‘निष्पाप नरेश! मैंने ब्रह्मर्षि वसिष्ठजी के इस कर्म का वर्णन किया है। मैं कहता हूँ, ब्राह्मण श्रेष्ठ है। यदि वसिष्ठ से बड़ा कोई क्षत्रिय है तो बताओ’।
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