महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 52 श्लोक 21-39
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द्विपञ्चाशत्तम (52) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
‘यदि आप लोगों को जंचे तो मैं एक नियम लागू करूंगा। उसमें आप दोनों पति-पत्नि को सर्वथा सावधान रहकर बिना किसी हिचक के मेरी सेवा करनी होगी। मुनि की यह बात सुनकर राज दम्पति को बड़ा हर्ष हुआ। भारत। उन दोनों ने उन्हें उत्तर दिया, ‘बहुत अच्छा, हम आपकी सेवा करेंगे’ । तदन्तर राजा कुशिक महर्षि च्यवन को बड़े आनन्द के साथ अपने सुन्दर महल के भीतर ले गये। वहां उन्होंने मुनि को एक सजा-सजाया कमरा दिखाया, जो देखने योग्य था । उस घर को दिखाकर वे बोले- ‘तपोधन। यह आपके लिये शैय्या बिछी हुई है। आप इच्छानुसार यहां आराम कीजिये। हम लोग आपको प्रसन्न रखने का प्रयत्न करेंगे’ । इस प्रकार उनमें बाते होते-होते सूर्यास्त हो गया। तब महर्षि ने राजा को अन्न और जल ले आने की आज्ञा दी ।उस समय राजा कुशिक ने उनके चरणों में प्रणाम करके पूछा-‘महर्षे। आपको कौन-सा भोजन अभीष्ट है? आपकी सेवा में क्या-क्या सामान लाऊं?’ । भरतनन्दन। यह सुनकर वे बड़ी प्रसन्नता के साथ राजा से बोले- ‘तुम्हारे यहां जो भोजन तैयार हो, वही ला दो’। नरेश्वर। मुनि ने उस कथन का आदर करते हुए ‘जो आज्ञा’ कहकर गये और जो भोजन तैयार था, उसे लाकर उन्होंने मुनि के सामने प्रस्तुत कर दिया । प्रभो।तदनन्तर भोजन करके धर्मज्ञ भगवान च्यवन ने राजदम्पत्ति से कहा- ‘अब मैं सोना चाहता हूं मुझे नींद सता रही है’ । इसके बाद मुनिश्रेष्ठ भगवान च्यवन शयनागार में जाकर सो गये और पत्नि सहित राजा कुशिक उनकी सेवा में खड़े रहे । उस समय भृगु पुत्र ने उन दोनों से कहा- तुम लोग सोते समय मुझे जगाना मत। मेरे दोनों पैर दबाते रहना और स्वयं भी निरन्तर जागते रहना । धर्मज्ञ राज कुशिक ने निःशंक होकर कहा, ‘बहुत अच्छा’। रात बीता, सबेरा हुआ, किंतु उन पति-पत्नि ने मुनि को जगाया नहीं । महाराज। वे दोनों दम्पत्ति मन और इन्द्रियों को वश में करके महर्षि की आज्ञा आज्ञानुसार उनकी सेवा में लगे रहे । उधर ब्रह्मर्षि भगवान च्यवन राजा को सेवा का आदेश देकर इक्कीस दिनों तक एक ही करवट से सोते रह गये । कुरूनन्दन। राजा और रानी बिना कुछ खाये-पीये हर्ष पूर्वक महर्षि की उपासना और आराधना में लगे रहे।बाईसवें दिन तपस्या के धनी महातपस्वी च्यवन अपने आप उठे और राजा से कुछ कहे बिना ही महल से बाहर निकल गये। राजा-रानी भूख से पीड़ितऔर परिश्रम से दुर्वल हो गये थे। तो भी वे मुनि के पीछे-पीछे गये, परंतु उन मुनि श्रेष्ठ ने इन दोनों की ओर आंख उठाकर देखा तक नहीं। राजेन्द्र वे भृगुकुल शिरोमणि राजा-रानी के देखते-देखते वहां से अन्तर्धान हो गये। इससे अत्यन्त दुःखी हो राजा पृथ्वी पर गिर पड़े। दो घड़ी में किसी तरह अपने को संभालकर वे महा तेजस्वी राजा उठे और महारानी को साथ लेकर पुनः मुनि को ढूंढने का महान प्रयत्न करने लगे ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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