महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 22 श्लोक 36-41
द्वाविंश (22) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
जो श्रेष्ठ ब्राहामण अंगोरहित चारो वेदो का अध्ययन करता और छ: कर्म(अध्ययन-अध्यापन, यजन-याजन और दान-पर्तिग्रह) में प्रवत्त रहता है, उसे लोग दान का उतम पात्र मानते हैं। जो ब्राह्मन ऊपर बताये हुए गुणों से युक्त होते हैं, उन्हें दिया हुआ दान महान फल देने वाला है। गुणवान एवं सुयोग्य पात्र को दान देने वाला दाता सहस्त्रगुना फल पाता है। यदि उतम बुद्धि, शास्त्र की विद्वता, सदाचार और सुशीलता आदि उतम गुणोंसे सम्पन्न एक श्रेष्ठ ब्राहामण भी दान स्वीकार कर ले तो वह दाता के सम्पूर्ण कुल का उद्धार कर देता है। अतः ऐसे गुणवान पुरुष को ही गाय,घोड़ा, अन्न,धन तथा दूसरे पदार्थ देने चाहियें। ऐसा करने से दाताको मरने के बाद पश्चाताप नहीं करना पड़ता। एक भी उत्तम ब्राहामण श्राद्धकर्ता के समस्त कुल को तार सकता है। यदि उपर्युक्त बहुत-से ब्राहामण तार दें इसमें तो कहना ही क्या है। अतः सुपात्र की खोज करनी चाहिये। उससे तृप्त होने पर सम्पूर्ण देवता, पितर और ऋषि भी तृप्त हो जाते हैं। सत्पुरुषों द्वारा सम्मानित गुणवान ब्राहामण यदि कहीं दूर भी सुनायी पड़े तो उसको वहां से अपने यहां बुलाकर उसका हर प्रकार से पूजन और सत्कार करना चाहिये।
« पीछे | आगे » |