महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 23 श्लोक 16-29
त्रयोविंश (23) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
नरेश्वर! जो शूद्रों का यज्ञ कराते, उनको पढ़ाते अथवा स्वयं उनके शिष्य बनकर उनसे शिक्षा लेते या उनकी दासता करते हैं, वे भी निमंत्रण देने योग्य नहीं हैं। भरतनन्दन! जो ब्राहामण वेतन लेकर पढ़ाता है और वेतन देकर पढ़ता है, वे दोनों ही वेद को बेचनेवाले हैं; अतः वे श्राद्ध में सम्मिलित करने योग्य नहीं हैं। राजन! जो ब्राहामण पहले समाज का अगुआ रहा हो और पीछे उसने शूद्र-स्त्री से विवाह कर लिया हो, वह ब्राहामण सम्पूर्ण विद्याओं का ज्ञाता होने पर भी श्राद्ध में बुलाने योग्य नहीं है। नरेश्वर! जो ब्राहामण अग्निहोत्र नहीं करते, जो मुर्दा ढोते, चोरी करते और जो पापों के कारण पतित हो गये हैं, वे भी श्राद्ध में बुलाने योग्य नहीं हैं। भारत! जिनके विषय में पहले से कुछ ज्ञात न हो, जो गांव के अगुआ हों तथा पुत्रिका[१]-धर्म के अनुसार ब्याही गयी स्त्री के गर्भ से उत्पन्न होकर नाना के घरमें निवास करते हों, ऐसे ब्राहामण भी श्राद्ध में निमंत्रण पाने के अधिकारी नहीं हैं। राजन! जो ब्राह्माण रूपए या पैसा बढ़ाने के लिये लोगों को ब्याज पर ऋण देता हो अथवा जो सस्ता अन्न खरीदकर उसे महंगे भाव पर बेचता और उसका मुनाफा खाता हो अथवा प्राणियों के क्रय-विक्रय से जीविका चलाता हो, ऐसे ब्राह्माण श्राद्ध में बुलाने योग्य नहीं हैं। जो स्त्री की कमाई खाते हो, वेश्या का पति हो और गायत्री-जप एवं संध्या-वन्दन से हीन हो, ऐसे ब्राह्माण भी श्राद्ध में सम्मिलित होने योग्य नहीं हैं। भरतश्रेष्ठ! देवयज्ञ और श्राद्धकर्म में वर्जित ब्राह्माण का निर्देश किया गया। अब दान देने और लेने वाले ऐसे पुरुषों का वर्णन करता हूं जो श्राद्ध में निषिद्ध होने पर भी किसी विशेष गुण के कारण अनुग्रहपूर्वक ग्राहय माने गये हैं। उनके विषय में सुनो। राजन! जो ब्राह्माण व्रत का पालन करने वाले, सदगुण-सम्पन्न, क्रियानिष्ठ और गायत्रीमंत्र के ज्ञाता हों, वे खेती करने वाले होने पर भी उन्हें श्राद्ध में निमंत्रण दिया जा सकता है। तात! जो कुलीन ब्राह्मण युद्ध में क्षत्रिय धर्म का पालन करता हो, उसे भी श्राद्ध में निमंत्रित करना चाहिये; परंतु जो वाणिज्य करता हो उसे कभी श्राद्ध में सम्मिलित न करें। राजन! जो ब्राह्मण अग्निहोत्री हो, अपने ही गावं का निवासी हो, चोरी न करता हो और अतिथि सत्कार में प्रवीण हो, उसे भी निमंत्रण दिया जा सकता है। भरतभूषण नरेश! जो तीनों समय गायत्री-मंत्र का जप करता है, भिक्षा से जीविका चलाता है और क्रियानिष्ठ है, वह श्राद्धमें निमंत्रण पाने का अधिकारी है। राजन्! जो ब्राह्मण उन्नत होकर तत्काल ही अवनत और अवनत होकर उन्नत हो जाता है एवं किसी जीवकी हिंसा नहीं करता है, वह थोड़ा दोषी हो तो भी उसे श्राद्धमे निमंत्रण देना उचित है। भरतश्रेष्ठ! जो दम्भरहित, व्यर्थ तर्क-वितर्क न करनेवाला तथा सम्पर्क स्थापित करनेके योग्य घरसे भिक्षा लेकर जीवन-निर्वाह करनेवाला है, वह ब्राह्मण निमंत्रण पानेका अधिकारी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ * जब कोई अपनी कन्या को इस शर्त पर ब्याहता है कि ’इससे जो पहला पुत्र होगा, उसे मैं गोद ले लूंगा और अपना पुत्र मानूंगा’ तो उसे ’पुत्रिकाधर्म' के अनुसार विवाह कहते हैं। इस नियम से प्राप्त होने वाले पुत्र श्राद्ध का अधिकारी नहीं है।