महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 24 श्लोक 1-12
चतुर्विंश (24) अध्याय: अनुशासन पर्व (दान धर्म पर्व)
ब्रह्म हत्या के समान पापों का निरूपण
युधिष्ठिर ने पूछा- भरतवंशी नरेश! अब आप मुझे यह ठीक-ठीक बताने की कृपा करें कि ब्राह्मण की हिंसा न करने पर भी मनुष्य को ब्रह्महत्या का पाप कैसे लगता है? भीष्म जी ने कहा- राजेन्द्र! पूर्वकाल में मैंने एक बार व्यास जी को बुलाकर उनसे जो प्रश्न किया था (तथा उन्होंने मुझे उसका जो उत्तर दिया था), वह सब तुम्हें बता रहा हूं। तुम यहां एकाग्रचित होकर सुनो। मैंने पूछा था-मुने! टाप वसिष्ठ जी के वंशजों में चौथी पीढ़ी के पुरुष हैं। कृपया मुझे यह ठीक-ठीक बताइये कि ब्राह्मण की हिंसा न करने पर भी किन कर्मों के करने से ब्रह्महत्या का पाप लगता है? राजन! मेरे द्वारा इस प्रकार पूछने पर पराशन-पुत्र धर्म निपुण व्यास जी ने यह संदेह रहित परम उत्तम बात कही-भीष्म! जिसकी जीविकावृत्ति नष्ट हो गयी है, ऐसे ब्राह्मण को भिक्षा देने के लिये स्वयं बुलाकर जो पीछे देने से इनकार कर देता है, उसे ब्रह्म हत्यारा समझो। भरतनन्दन! जो दुष्ट बुद्धि वाला मनुष्य तटस्थ रहने वाले विद्वान ब्राह्मण की जीविका छीन लेता है, उसे भी ब्रह्म हत्यारा ही समझना चाहिये। पृथ्वीनाथ! जो प्यास से पीड़ित हुई गौओं के पानी पीने में विघ्न डालता है, उसे भी ब्रह्मघाती जानें। जो मनुष्य उत्तम कर्म का विधान करने वाली श्रुतियों और ऋषि प्रणित शास्त्रों पर बिना समझे-बूझे दोषारोपण करता है, उसको भी ब्रह्मघाती ही समझो। जो अपनी रूपवती कन्या की बड़ी उम्र हो जाने पर भी उसका योग्य वर के साथ विवाह नहीं करता, उसे ब्रह्म हत्यारा जानें। जो पाप परायण मूढ़ मनुष्य ब्राह्माणों को अकारण ही मर्मभेदी शोक प्रदान करता है, उसे ब्रह्मघाती जानें। जो अन्धे, लूले और गूंगे मनुष्यों का सर्वस्व हर लेता है, उसे ब्रह्मघाती जानें। जो मोहवश आश्रम, वन, गांव अथवा नगर में आग लगा देता है, उसे भी ब्रह्मघाती ही समझना चाहिये।
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