महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 26 श्लोक 97-106
षड्-विंश (26) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
ब्राहमन्! मैंने अपनी बुद्धि से सर्वथा विचार कर यहां गंगाजी के गुणों का एक अंशमात्र बताया है। मुझ में कोई इतनी शक्ति नहीं हैं कि मैं यहां उनके सम्पूर्ण गुणों का वर्णन कर सकूं। कदाचित् सब प्रकार के यत्न करने से मेरू गिरि के प्रस्तरकरणों और समुद्र के जलविन्दुओं की गणना की जा सके; परंतु यहां गंगाजल के गुणों का वर्णन तथा गणना करना कदापि सम्भव नहीं है। अतः मैंने बड़ी श्रद्धा के साथ जो ये गंगाजी के गुण बताये हैं, उन सब पर विश्वास करके मन, वाणी, क्रिया, भक्ति और श्रद्धा के साथ आप सदा ही उनकी आराधना करें। इस से आप परम दुर्लभ उतम सिद्धि प्रा़प्त करके इन तीनों लोकों मे अपने यश का विस्तार करते हुए शीघ्र ही गंगाजी की सेवा से प्राप्त हुए अभीष्ट लोकों में इच्छानुसार विचरेंगे। महान् प्रभावशाली भगवती भागीरथी आपकी और मेरी बुद्धि को सदा स्वधर्मानुकूल गुणों से युक्त करें। श्रीगंगाजी बड़ी भक्तवत्सला है। वे संसार में अपने भक्तों को सुखी बनाती है। भीष्म जी कहते है-युधिष्ठिर! वह उतम बुद्धिवाला परम तेजस्वी सिद्ध शिलोंछवृतिद्वारा जीविका चलाने वाले उम ब्राहमण से त्रिपथगा गंगाजी के उपर्युक्त सभी यथार्थ गुणों का नाना प्रकार से वर्णन करके आकाश में प्रविष्ट हो गया। वह शिलोंछवृतिवाला ब्राहमण सिद्ध के उपदेश से गंगाजी के माहात्म्यको जानकर उनकी विधिवत् उपासना करके परम दुर्लभ सिद्धि को प्राप्त हुआ। कुन्तीनन्दन! इसी प्रकार तुम भी पराभक्ति के साथ सदा गंगाजी की उपासना करो। इससे तुम्हें उमत सिद्धि प्राप्त होगी। वैषम्पायनजी कहते है- जनमेयजय! भीष्मजी के द्वारा कहे हुये श्रीगंगाजी की स्तुति से युक्त इस इतिहास को सुनकर भाइयों सहित राजा युधिष्ठिर को बड़ी प्रसन्नता हुई। जो गंगाजी के स्तवन से युक्त इस पवित्र इतिहास का श्रवण अथवा पाठ करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जायेगा।
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