महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 33 श्लोक 18-27

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त्रयस्त्रिंश (33) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: त्रयस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 18-27 का हिन्दी अनुवाद

राजन! मैं तुमसे यह सच्‍ची बात बता रहा हूँ कि जो मूढ़ मानव ब्राहामणों की निन्‍दा करते हैं वे नष्‍ट हो जाते हैं- इसमें संशय नहीं है। निन्‍दा और प्रशंसा में निपुण तथा लोगों के यश और अपयश बढ़ाने में तत्‍पर रहने वाले द्विज अपने प्रति सदा द्वेष रखने वालो पर कुपित हो उठते हैं। ब्राम्हण जिसकी प्रशंसा करते हैं, उस पुरुष का अभ्‍युदय होता है और जिसको वे शाप देते हैं, उसका एक क्षण में पराभव हो जाता है। शक, यवन और काम्‍बोज आदि जातियाँ पहले क्षत्रिय ही थीं, किंतु ब्राम्हणों की कृपा दृष्टि से वञ्चित होने के कारण उन्‍हें वृषल (शूद्र और म्‍लेच्‍छ) होना पड़ा। विजयी वीरों में श्रेष्‍ठ! द्रविड़, कलिंग, पुलिन्‍द, उशीनर, कोलिसर्प और माहिषक आदि क्षत्रिय जातियाँ भी ब्राहाणों की कृपा दृष्टि न मिलने से ही शूद्र हो गयी। ब्राम्हणों से हार मान लेने में ही कल्‍याण है, उन्‍हें हराना अच्‍छा नहीं है। जो इस सम्‍पूर्ण जगत को मार डाले तथा जो ब्राम्हण वध करे, उन दोनों का पाप समान नहीं है। महर्षियों का कहना है कि ब्रम्‍हहत्‍या महान दोष है। ब्राहामणों की निन्‍दा किसी तरह नहीं सुननी चाहिये। जहाँ उनकी निन्‍दा होती हो, वहाँ नीचे मुँह करके चुपचाप बैठे रहना या वहाँ से उठकर चल देना चाहिये। इस पृथ्‍वी पर ऐसा कोई मनुष्‍य न तो पैदा हुआ है और न आगे पैदा होगा ही जो ब्राम्हण के साथ विरोध करके सुखपूर्वक जीवित रहनेका साहस करे। राजन! हवा को मुट्ठी में पकड़ना, चन्‍द्रमा को हाथ से छूना और पृथ्‍वी को उठा लेना जैसे अत्‍यन्‍त कठिन काम हैं, उसी तरह इस पृथ्‍वी पर ब्राहामणों को जीतना दुष्‍कर है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तर्गत दानधर्मपर्व में ब्राम्हण की प्रशंसा नामक तैंतीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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