महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 38 श्लोक 19-30

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अष्‍टत्रिंश (38) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्‍टत्रिंश अध्याय: श्लोक 19-30 का हिन्दी अनुवाद

जो जवान हैं, सुन्‍दर गहने और अच्‍छे कपड़े पहनती हैं, ऐसी स्‍वेच्‍छाचारिणी स्त्रियों के चरित्र को देखकर कितनी ही कुलवती स्त्रियाँ भी वैसी ही बनने की इच्‍छा करने लगती हैं। जो बहुत सम्‍मानित और पति की प्‍यारी स्त्रियाँ हैं, जिनकी सदा अच्‍छी तरह रखवाली की जाती है वे भी घर में आने-जाने वाले कुबडों, अन्‍धों, गूँगों और बौनों के साथ भी फँस जाती हैं। महामुनि देवर्षे ! जो पंगु हैं अथवा जो अत्‍यन्‍त घृणित मनुष्‍य हैं, उनमें भी स्त्रियों की आसक्ति हो जाती है। इस संसार में कोई भी पुरुष स्त्रियों के लिये अगम्‍य नहीं है। ब्राम्हन ! यदि स्त्रियों को पुरुष की प्राप्ति किसी प्रकार भी संभव न हो और पति भी दूर गये हों तो वे आप में ही कृत्रिम उपायों से ही मैथुन में प्रवृत हो जाती हैं। पुरुषों के न मिलने से, घर के दूसरे लोगों के भय से तथा वध और बन्‍धन के डर से स्त्रियाँ सुरक्षित रहती हैं। स्त्रियों का स्‍वभाव चंचल होता है। उनका सेवन बहुत ही कठिन काम है। इनका भाव जल्‍दी किसी के समझ में नहीं आता; जैसे विद्वान पुरुष की वाणी दुर्बोध होती है। अग्नि कभी ईंधन से तृप्‍त नहीं होती, समुन्‍द्र कभी नदियों से तृप्‍त नहीं होता, मृत्‍यु समस्‍त प्राणियों को एक साथ पा जाये तो भी उनसे तृप्‍त नहीं होती; इसी प्रकार सुन्‍दर नेत्रों वाली युवतियॉं पुरुषों से कभी तृप्‍त नहीं होतीं। देवर्षे! सम्‍पूर्ण रमणियों के सम्‍बन्‍ध में दूसरी भी रहस्‍य की बात यह है कि किसी मनोरम पुरुष को देखते ही स्‍त्री की योनि गीली हो जाती है। सम्‍पूर्ण कामनाओं का दाता तथा मनचाही करने वाला पति भी यदि उनकी रक्षा में तत्‍पर रहने वाला हो तो वे अपने पति के शासन को भी सहन नहीं कर सकतीं। वे न तो काम-भोग की प्रचुर सामग्री को, न अच्‍छे-अच्‍छे गहनों को और न उत्तम घरों को ही उतना अधिक महत्‍व देती हैं, जैसा कि रति के लिये किये गये अनुग्रह को। यमराज, वायु, मृत्‍यु, पाताल, बड़वानल, छुरे की धार, विष, सर्प और अग्नि-ये सब विनाश के हेतु एक तरफ और स्त्रियाँ अकेली एक तरफ बराबर हैं। नारद! जहाँ से पाँचों महाभूत उत्‍पन्‍न हुए हैं, जहाँ से विधाता ने सम्‍पूर्ण लोकों की सृष्टि की है तथा जहाँ से पुरुषों और स्त्रियों का निर्माण हुआ है, वहाँ से स्त्रियों में ये दोष भी रचे गये हैं (अर्थात ये स्त्रियों के स्‍वाभाविक दोष हैं)।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्व में पंचचूड़ा और नारदका संवादविषयक अड़तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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